भारत के लिए मालदीव आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम देश है। मालदीव हिन्द महासागर में स्थित 1200 द्वीपों का देश है, जो भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है। मालदीव के समुद्री रास्ते से ही निर्बाध रूप से चीन, जापान और भारत को ऊर्जा की सप्लाई होती है। इसी तरह श्रीलंका भी भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। दोनों ही देशों में चीन की मौजूदगी भारत के लिए चिन्ता की बात रहती है। मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं। मालदीव के साथ नई दिल्ली के धार्मिक, भाषाई और व्यावसायिक सम्बन्ध हैं।
1965 में आजादी के बाद मालदीव को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में भारत शामिल था। बाद में 1972 में मालदीव में अपना दूतावास खोला था। वर्ष 1988 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप कर तत्कालीन राष्ट्रपति मोमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। विद्रोह की स्थिति को देखते हुए अब्दुल गयूम ने भारत से मदद मांगी थी। उनके मदद मांगने के 9 घंटे के भीतर ही भारतीय सैनिकों ने मालदीव की राजधानी माले में कदम रखे थे और कुछ ही घंटों बाद विद्रोह शांत हो गया था और मालदीव के राजनीतिक और सामाजिक हालात बदल गए थे लेकिन वो साल 1988 था, उसके बाद मालदीव के राजनीतिक हालात काफी बदल गए।
जैसे-जैसे चीन की सामरिक शक्ति बढ़ी, उसने अलग-अलग देशों में अपना वर्चस्व बढ़ाना शुरू किया। उसने भारत के पड़ोसी देशों में काफी निवेश किया। पाकिस्तान, मालदीव नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका में उसने जमकर निवेश किया। चीन की विस्तारवादी नीतियां इस बात का प्रमाण हैं कि चीन पहले निवेश करता है और फिर उनकी जमीन हड़प लेता है, जैसा कि वह पाकिस्तान और श्रीलंका में कर चुका है। चीन एक बार घुसा तो फिर जाने का नाम नहीं लेता जबकि भारत ने किसी भी देश में आज तक कोई भूभाग नहीं हड़पा। राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के शासनकाल में उन्होंने मालदीव को पूरी तरह चीन की झोली में डाल दिया था। उन्होंने भारतीय परियोजनाओं को रद्द किया और यहां तक कि उन्होंने भारत द्वारा उपहार में दिए गए हैलिकॉप्टर भी वापस ले जाने को कहा था।
देश के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को निर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। यामीन तानाशाह बन गए थे। उन्होंने राजनीतिक विरोधियों को जेलों में डाल दिया था। यामीन पूरी तरह चीन की कठपुतली बन गए थे। दरअसल चीन ने यामीन को राष्ट्रपति का चुनाव जिताने में मदद की थी और यामीन ने सत्ता में आते ही चीन के ‘मैरी टाइम सिल्क रूट प्रोजैक्ट’ का समर्थन किया, जिसका भारत लगातार विरोध करता आ रहा था। राजनीतिक हालात बदले और मालदीव में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद की पार्टी सत्ता में आ गई। इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति बन गए। मालदीव की जनता ने लोकतंत्र के पक्ष में वोट किए और चीन समर्थक तानाशाह को करारी शिकस्त दी।
उसके बाद भारत और मालदीव के सम्बन्ध सामान्य होने शुरू हुए। लगातार दूसरी बार प्रचंड विजय हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पहली यात्रा के लिए मालदीव और श्रीलंका को चुना है। नरेन्द्र मोदी ने मालदीव को चुनकर अपनी नेबरहुड पॉलिसी को एक बार फिर दर्शा दिया है। प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में पिछली बार की तरह सार्क की बजाय बिम्सटेक देशों के समूह के नेताओं को बुलाया गया जिनमें थाइलैंड और म्यांमार जैसे देश शामिल हैं लेकिन मालदीव नहीं है इसलिए प्रधानमंत्री ने मालदीव को महत्व देना उचित समझा। प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण में जाकर एक कूटनीतिक संदेश दिया था।
नरेन्द्र मोदी का सबसे बड़ा कार्य मालदीव में चीन के प्रभाव को कम करना है। भारत मालदीव में लोकतंत्र बहाली के बाद पूरी उदारता से उसे वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। इससे मालदीव को चीन के कर्ज के जाल से मुक्त होने में मदद मिल रही है। मालदीव ने अपने सर्वोच्च सम्मान से प्रधानमंत्री को सम्मानित किया है। भारत मालदीव के साथ हिन्द महासागर में नई रणनीति तैयार करना चाहता है। भारत को अगर मजबूत करना है तो मालदीव का साथ जरूरी है। अगर चीन वहां मजबूत हुआ तो भारत कमजोर होगा। सुरक्षा के नजरिये से पाकिस्तान, चीन और मालदीव का जो त्रिकोण बना था उसे तोड़ना भी जरूरी है। प्रधानमंत्री ने मालदीव की धरती पर खड़े होकर राष्ट्र प्रायोजित आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान और चीन दोनों पर निशाना साधा है।
जहां तक श्रीलंका का सम्बन्ध है, भारत से उसके रिश्ते काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। वहां की जनता भी चीन के इरादों को भांप चुकी है। श्रीलंका में हाल ही में हुए बम धमाकों के बाद वहां राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। बम धमाकों में 11 भारतीयों की मौत हुई है। ईस्टर के मौके पर हुए बम धमाकों की जिम्मेदारी आईएस ने ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना से आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा की है। उन्होंने श्रीलंका में विपक्ष के नेताओं से भी मुलाकात की। श्रीलंका में भी उनका मकसद चीन के प्रभाव को कम करना और पाक प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध जनमत तैयार करना रहा। नरेन्द्र मोदी ने मालदीव और श्रीलंका की यात्रा कर ‘पड़ोस पहले’ की नीति को प्रतिबिंबित कर दिया है। उम्मीद है कि दोनों देशों से हमारे सम्बन्ध काफी आगे बढ़ेंगे।