भारत और नेपाल के बीच रोटी और बेटी का रिश्ता है लेकिन चीन के उकसावे में आकर रिश्तों में तनाव पैदा कर रहा है। भारत से नेपाल की मित्रता भौगोलिक संबंधों के कारण भी है लेकिन इन दिनों नेपाल लगातार भारत विरोधी कदम उठा रहा है। तनावपूर्ण संबंधों के बीच नेपाल फिर लड़खड़ाने लगा है। नेपाल की सियासत में भी संकट काफी गहरा चुका है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की कुर्सी पर लगातार खतरा मंडरा रहा है और उनके विरोधी उनके इस्तीफे लेने पर अड़ गए हैं।
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री प्रणा कमल दहल प्रचंड ने उनसे इस्तीफा मांग लिया है। नेपाल ने जब से भारत के साथ नक्शे का बखेड़ा शुरू किया है, तभी से ही नेपाल में राजनीतिक संकट है। के.पी. शर्मा ओली की पार्टी के ही नेता उनका विरोध कर रहे हैं और भारत के साथ संबंध खराब करने का आरोप लगा रहे हैं। कुछ दिन पहले के.पी. शर्मा ओली ने आरोप लगाया था उन्हें पद से हटाने के लिए भारत और नेपाल में साजिश रची जा रही है। ओली ने सीधे-सीधे भारत पर आरोप लगाया कि काठमांडौ में भारतीय दूतावास की गतिविधियों और अलग-अलग होटलों में चल रही बैठकों में उनके खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने के.पी. के आरोपों को बेबुनियाद बताया है। विपक्षी नेताओं ने उनसे कहा है कि या तो वह भारत पर लगाए आरोप साबित करे या फिर गद्दी छोड़ें।
कभी के.पी. शर्मा ओली भारत के बहुत करीब माने जाते थे लेकिन अब वह भारत के खिलाफ हो गए हैं और चीन की गोद में बैठकर खेल रहे हैं। 2015 में नेपाल का नया संविधान लागू हुआ तो संविधान के मुताबिक प्रधानमंत्री सुशील कोइराला को इस्तीफा देना पड़ा था। नए प्रधानमंत्री नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के के.पी. शर्मा ओली बने, उन्हें दूसरी पार्टियों का समर्थन हासिल था लेकिन जुलाई 2016 में जब दूसरी पार्टियों ने उनसे समर्थन वापिस खींच लिया तो उनकी सरकार अल्पमत में आ गई थी और के.पी. को इस्तीफा देना पड़ा था। तब भी उन्होंने इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। नेपाल के नए संविधान को लेकर भारत ने आपत्ति जताई थी। भारत का स्टैंड यह था कि इसमें मधेसी और थारू लोगों की मांग को शामिल नहीं किया गया। इस संविधान को लेकर मधेसी और दूसरे अल्पसंख्यकों ने नेपाल सीमा को बंद कर दिया तो ओली सरकार ने अनर्गल प्रचार किया कि इसके लिए भारत जिम्मेदार है। भारत और नेपाल में पैट्रोल, दवाइयां और दूसरी कई तरह सप्लाई पूरी तरह बंद हो गई थी। 135 दिन तक चली आर्थिक नाकेबंदी के बाद नेपाल और भारत के रिश्ते तलख हो गए थे। ओली ने नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं का कार्ड खेलना शुरू कर दिया। ये वो समय था जब नेपाल भूकम्प के प्रभावों से जूझ रहा था। 2017 में के.पी. शर्मा ओली पुनः प्रधानमंत्री बने। वे भारत विरोधी भावनाओं का ज्वार पैदा कर चुनाव जीते। नेपाल ने उत्तराखंड से लिप्रलेख दर्रे तक बनाई सड़क पर भी आपत्ति जताई। दरअसल के.पी. शर्मा राष्ट्रवाद की भावना के सहारे सियासी हालात से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। लिम्पियापुरा, कालापानी और लिप्रलेख को नेपाल का हिस्सा दिखाकर ऐसी चाल चली कि उनके प्रतिद्वंद्वियों प्रचंड और माधव कुमार नेपाल को उनका साथ देने को मजबूर होना पड़ा। नेपाल को चीन के करीब ले जाने में के.पी. की बड़ी भूमिका रही है। नेपाल की अन्दरूनी सियासत के चलते वहां राजनीतिक अस्थिरता ही रही है। यह कोई छिपा हुआ नहीं है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में भी तीव्र मतभेद हैं और ऐसी स्थिति में भारत का हौव्वा खड़ा करना एक इमोशनल कार्ड है। के.पी. शर्मा इस बात को समझ नहीं रहे हैं कि अगर भारत से संंबंध टूटते हैं तो नेपाल की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित होगी। भारत-नेपाल सीमा सील होने से नेपाल का पर्यटन उद्योग लड़खड़ाने लगा। सोनोली से सटे नेपाल के बेलहिया, लुविनी पोखरा, काठमांडौ आदि प्रमुख पर्यटन केन्द्र पर वीरानी छा गई है। नेपाल में पर्यटन सबसे बड़ा व्यवसाय है।
भारत-नेपाल संबंध और बिगड़े तो नेपाली अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाएगी। दोनों देशों के व्यापार में 40 फीसदी कमी आ चुकी है। नेपाल के कसीनों भारतीयों से गुलजार रहे थे और कसीनों में रोज 40 करोड़ तक का कारोबार होता था। अब वह भी खाली पड़े हैं। नेपाल को भारत विरोध का खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। चीन नेपाल की ऐसी मदद नहीं कर सकता जितनी भारत कर सकता है। अगर वह करेगा तो नेपाल की जमीन ही हड़पेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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