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नेपाल के फैसले से तल्खी

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यूं तो भारत और नेपाल सम्बन्ध बहुत प्राचीन हैं। दोनों देशों में रोटी-बेटी के सम्बन्ध हैं। दोनों देशों के लोग बिना किसी रोक-टोक के आते-जाते हैं, रोजमर्रा की चीजें खरीदते हैं, साथ ही एक-दूसरे के पूरक हैं और शादी को लेकर सारे रीति-रिवाजाें को कई पीढ़ियों से निभाते आ रहे हैं। जब से नेपाल में चीन का दखल बढ़ा है तब से वहां बहुत कुछ बदला है। नेपाल में भारत का एकाधिकार भंग हुआ है। यद्यपि भारत ने हमेशा नेपाल को छोटा भाई मानकर हमेशा उसकी मदद की है।

भारत सरकार नेपाल रेल परियोजना समेत कई अन्य परियोजनाओं पर काम कर रही है। बंदूक की क्रांति से हिन्दू राष्ट्र से एक लोकतांत्रिक देश में परिवर्तित हुए नेपाल में क्रांति के बाद भी कई वर्षों तक नया संविधान नहीं बन पाया। संविधान अपनाया गया तो मधेसियों को दूसरे दर्जे का नागरिक माना गया जिसके बाद मधेसी आंदोलन भड़क उठा था। मधेसी मूलतः भारतीय ही हैं और भारत चाहता था कि नेपाल मधेसियों को नेपाली नागरिकों की तरह ही सम्मान दे। इसी मुद्दे पर भारत-नेपाल में तल्खी आ गई थी, जो बाद में दूर हाे गई लेकिन नेपाल की नई सरकार ने भारत पर अपनी निर्भरता घटाना शुरू कर दिया।

अब नेपाल ने भारत विरोधी कदम उठाया है। उसने देश में भारतीय करेंसी यानी 200-500 आैर 2000 के नए नोटों के परिचालन पर रोक लगा दी है। अब केवल 100 रुपए का ही भारतीय नोट चलेगा। 100 रुपए से अधिक के भारतीय नोट रखना, उनके बदले में किसी सामान को लेना या भारत से उन्हें नेपाल में लाना गैर-कानूनी घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं जो भारतीय लोग नेपाल घूमने जाते हैं या निजी कार्यों से वहां जाने के क्रम में भारतीय नोट लेकर जाएंगे, नेपाल में पकड़े जाने पर उन्हें सजा भी हो सकती है। अगर भारतीय नोट लेकर जाते भी हैं तो उन्हें सीमा पर नोटों को नेपाली मुद्रा में परिवर्तित कराना होगा। नेपाल के इस फैसले से दोनों देशों के सम्बन्धों पर काफी असर पड़ेगा। नेपाल सरकार के इस फैसले से काफी उथल-पुथल मच गई है। भारतीय करेंसी पर रोक का असर दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों पर विशेष असर छोड़ रहा है।

बिहार के 7 जिले एेसे हैं, जिनका नेपाल से सीधा व्यावहारिक सम्बन्ध है। यह जिले हैं किशनगंज, अररिया, सुपौल, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण। इन जिलों के लोग बड़ी संख्या में हर दिन नेपाल जाकर खरीद-बिक्री करते हैं। भारतीय नोटों पर रोक के चलते वहां मुद्रा विनिमय का संकट खड़ा हो गया है। भारत में पहले से ही 100 रुपए के नोट काफी सीमित रह गए हैं। 100 रुपए के नए नोट कम निर्गत हो रहे हैं। कुल मिलाकर छोटी करेंसी से वर्तमान दौर में व्यापार करना मुश्किल भरा होगा। नेपाल सरकार ने यह फैसला क्यों लिया आैर वह भी उस समय जब वह वर्ष 2020 को ‘विजिट नेपाल ईयर’ के तौर पर मनाने जा रही है। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2016 में नोटबंदी के बाद नेपाली लोगों को बहुत मार झेलनी पड़ी। उनके नोट बदलने की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई। उलटा भारतीयों ने नेपाल और भूटान जाकर पुरानी भारतीय करेंसी से आभूषण आदि अन्य वस्तुएं खरीदकर अपना काला धन ठिकाने लगाया। नोटबंदी से पहले नेपाल में 500 और 1000 के भारतीय नोटों की अच्छी-खासी संख्या थी। नोटबंदी से पहले लोग 25,000 तक नेपाल ला सकते थे।

इसके अलावा नेपाल के कुल व्यापार का 70 फीसदी भारत से है, इसलिए लोग अपने पास भारतीय नोट रखते थे। नोटबंदी से पहले नेपाल राष्ट्र बैंक की तिजोरी में 8 करोड़ के भारतीय नोट मौजूद थे। आम लोगों के पास कितने नोट मौजूद हैं, इस बारे में कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है। नेपाल के प्रधानमंत्री ने भारत को यह मुद्दा सुलझाने के लिए कहा था। दोनों देशों में आैपचारिक बातचीत भी हुई थी। नेपाल को उम्मीद थी कि भारत उसकी समस्या को दूर करेगा लेकिन नेपालियों के लिए नोट बदलने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। नेपालियों ने पुराने नोट घाटे में बेचे, भारतीय रिश्तेदारों की मदद ली आैर कई तरीके अपनाए। नेपाल को यह भी शिकायत है कि भूटान की 8 अरब की 500 और 1000 रुपए की भारतीय मुद्रा परिवर्तित कर दी तो फिर उनके साथ भेदभाव क्यों किया गया? भारत का कहना है ​िक जब सीमित मात्रा (प्रति व्यक्ति केवल 25,000) में करेंसी ले जाने का प्रावधान था तो इतनी बड़ी संख्या में करेंसी नेपाल में जमा कैसे हो गई? मामला काफी पेेचीदा है। नेपाल की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी हुई है।

नेपाल में जाने वालों में सबसे अधिक संख्या भारतीयों की होती है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो नेपाल का पर्यटन उद्योग प्रभावित होगा आैर पर्यटन कारोबार से जुड़े लोग सड़कों पर आ जाएंगे। इस मामले पर नेपाल टूरिज्म एसोसिएशन और नेपाल सरकार में बातचीत भी चल रही है। नेपाल सरकार ने भी माना है कि इसका प्रभाव पर्यटन उद्योग पर पड़ेगा। भारत में काम करने वाले नेपाली नागरिक भी प्रभावित होंगे। नेपाल सरकार का मानना है कि उसने यह फैसला देशहित में किया है। दोनों देशों में तल्खी नहीं आए इसलिए दोनों देशों को बातचीत कर मसला सुलझाना चाहिए ताकि पर्यटन और व्यापार में सुगमता आ सके।

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