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गुजरात को नया मुख्यमंत्री

गुजरात में पहली बार के विधायक भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमन्त्री बना कर सत्तारूढ़ भाजपा ने वास्तव में राजनैतिक जगत को आश्चर्य में डाल दिया है। इसका मूल कारण अगले वर्ष के अन्त में राज्य में चुनावों का होना बताया जा रहा है ।

गुजरात में पहली बार के विधायक भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमन्त्री बना कर सत्तारूढ़ भाजपा ने वास्तव में राजनैतिक जगत को आश्चर्य में डाल दिया है। इसका मूल कारण अगले वर्ष के अन्त में राज्य में चुनावों का होना बताया जा रहा है । एक और प्रमुख कारण यह भी माना जा रहा है कि यह राज्य प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी और गृहमन्त्री श्री अमित शाह का गृह राज्य भी है अतः यहां पार्टी किसी प्रकार का जोखिम उठाने का खतरा मोल नहीं लेना चाहती है। इसके साथ ही पुराने अनुभवी नेताओं में से किसी का भी इस पद पर चयन न करके पार्टी ने आन्तरिक गुटबाजी पर भी विराम लगाने का प्रयास किया है। गुजरात पटेलों का गढ़ माना जाता है और राज्य में भाजपा का विस्तार करने में भी इसके पटेल नेता स्व. केशू भाई पटेल की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। राज्य में भाजपा का विस्तार मुख्य रूप से राम मन्दिर निर्माण आन्दोलन के चलते नब्बे के दशक के दौरान स्व. पटेल के नेतृत्व में ही हुआ था।
इससे पहले भाजपा का नम्बर गुजरात में जनता दल से भी नीचे आता था क्योंकि पटेल या पाटीदार समुदाय सहित अन्य ग्रामीण जातियों का समर्थन जनता दल को  मिलता था। उससे पहले राज्य में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतन्त्र पार्टी का कांग्रेस के बाद जबर्दस्त दबदबा था जिसके नेता स्व. मीनू मसानी जैसे दिग्गज राजनीतिज्ञ थे। मीनू मसानी स्वयं पारसी होते हुए भी इसी राज्य से लोकसभा चुनाव भारी बहुमत से जीता करते थे।  वह समय गुजरात की राजनीति का एेसा समय था जब कांग्रेस के स्व. हितेन्द्र देसाई का मुख्यमन्त्री के रूप में यहां सिक्का चला करता था परन्तु 1974 के आते-आते राज्य में छात्र आन्दोलन के चलते यहां राजनीति ने जबर्दस्त करवट ली और विपक्षी एकता के चलते 12 जून 1975 को पहली बार कांग्रेस पार्टी चुनावों में अल्पमत में आयी और कांग्रेस से विद्रोह करके इसे छोड़ने वाले स्व. बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में ही यहां मिलीजुली सरकार बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसके बाद से राज्य की राजनीति में पटेलों का वास्तविक वर्चस्व शुरू हुआ। हालांकि इससे पहले भी कुछ समय तक कांग्रेस के श्री चिमनभाई पटेल मुख्यमन्त्री रहे थे मगर उसके बाद इसी पार्टी ने चिमन भाई पटेल व ग्रामीण जाति के माधव सिंह सोलंकी को मुख्यमन्त्री बनाया जिनकी जगह राम मन्दिर आन्दोलन के प्रभाव के बाद भाजपा के स्व. केशू भाई पटेल ने ली और उसके बाद राज्य में 2001 की आखिरी तिमाही के बाद मोदी युग की शुरूआत हुई। तब से लेकर अब तक राज्य में भाजपा का ही शासन है और 2012 में श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मुख्यमन्त्री पद छोड़ने के बाद श्रीमती आनन्दी बेन पटेल व विजय रूपानी से होते हुए राज्य की बागडोर एक बार फिर पटेल (भूपेन्द्र पटेल) के हाथ में आ गई है। इसका आशय यह भी निकलता है कि भाजपा गुजरात की खेतीहर व ग्रामीण असरदार जातियों के अपने खेमे से बाहर जाने की आशंका को टालना चाहती है।
मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि पटेलों में कितनी उपजातियों होती हैं बल्कि यह कहना चाहता हूं कि गुजरात की राजनीति एक बार फिर करवट लेने के मुहाने पर है जिसे सन्तुलित करने का प्रयास सत्तारूढ़ भाजपा ने किया है। राज्य में भाजपा का असली मुकाबला कांग्रेस से ही होना है और इसके त्रिकोणात्मक होने की संभावना इस हकीकत के बावजूद नहीं है कि सूरत नगर पालिका में आम आदमी पार्टी ने इक्का-दुक्का सफलता प्राप्त की है। हम यह भी देख रहे हैं कि पिछले दो दशकों से भारत के मतदाता किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत देने की मुद्रा में ही रहते हैं। बेशक बिहार इसका अपवाद इस वजह से रहा क्योंकि इस राज्य में विपक्ष के पास कोई अनुभवी सुलझा हुआ नेता नहीं था इसलिए कांटे की टक्कर रही। मगर गुजरात की स्थिति दूसरी है। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा की सीटें कम जरूर हुई थीं मगर भारी विरोध और कांग्रेस द्वारा कड़ी टक्कर दिये जाने के बावजूद इसकी आसान विजय हो गई थी।
प्रधानमन्त्री की लोकप्रियता में राज्य में कोई कमी दर्ज नहीं हुई है और लोग आज भी श्री मोदी को ‘गुजरात का गौरव’ कहना पसन्द करते हैं। भूपेन्द्र पटेल की नियुक्ति इस बात का सबूत है कि पार्टी अपनी जमीनी स्थिति मजबूत करना चाहती है और इस प्रकार करना चाहती है कि उसके नेतृत्व पर कोई अंगुली उठाने की हिम्मत न कर सके। श्री भूपेद्र पटेल की छवि पूरी तरह साफ- सुथरी है और बेदाग है।  2010 में अहमदाबाद नगर पालिका का चुनाव जीतने पर वह इसकी स्थायी समिति के अध्यक्ष बने और उनका काम साफ-सुथरा रहा। इसके बाद 2017 में वह पहली बार विधायक बने और किसी भी विवाद से दूर रहे। श्री पटेल प्रधानमन्त्री व गृहमन्त्री दोनों की पसन्द माने जा रहे हैं इससे भाजपा के भीतर की गुटबाजी को काफूर होने में मदद मिलेगी और चुनावों तक राज्य का शासन बिना किसी झगड़े के चलेगा। इसका प्रभाव आगामी विधानसभा चुनावों पर पड़ना लाजिमी है जिससे भाजपा का रास्ता सुगम होगा। अतः यह कहा जा सकता है कि भूपेन्द्र पटेल की उज्ज्वल छवि को देखते हुए उनका चुनाव किया गया है।

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