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अर्थव्यवस्था में नया संचार

किसान आंदोलन को लेकर चिंताए जरूर हैं लेकिन कृषि सैक्टर को लेकर खुशगवार खबरें भी सामने आ रही हैं।

किसान आंदोलन को लेकर चिंताए जरूर हैं लेकिन कृषि सैक्टर को लेकर खुशगवार खबरें भी सामने आ रही हैं। अच्छी खबर यह है कि पिछले वर्ष अप्रैल से लेकर दिसम्बर तक कृषि उत्पादों के निर्यात में 9.8 फीसदी की बढ़ौतरी हुई है। कोरोना वायरस के दस्तक देते ही लॉकडाउन की प्रक्रिया मार्च से शुरू हो गई थी। तब से प्रत्येक सैक्टर ठंडा पड़ गया था। कुल मिलाकर भारत का ओवरआल निर्यात में 15.5 फीसदी ​निर्यात कम हुुआ लेकिन भारत का कृषि सैक्टर पूरी तरह से अप्रभावित रहा। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल से दिसम्बर तक देश की सभी वस्तुओं का निर्यात 238.27 विलियन डालर से घटकर 201.30 विलियन डालर रहा, लेकिन इसी अवधि में कृषि उत्पादों का निर्यात 26.34 विलियन डालर से बढ़कर 28.91 विलियन डालर का हो गया अगर अकेले अनाज की बात करें तो अनाज का निर्यात इसी अ​वधि में 53 प्रतिशत बढ़कर 48832 करोड़ तक पहुंच गया। बासमती चावल का ​निर्यात 5.31 फीसदी बढ़ कर 22,038 करोड़ हो गया, जबकि गैर बासमती खंड का निर्यात 122.61 प्रतिशत बढ़कर 22856 करोड़ का हो गया। गेहूं का निर्यात बढ़कर 1,870 करोड़ का हो गया, जबकि बाजरा और मक्का जैसे अनाजों का निर्यात भी बढ़ा।
कोरोना महामारी में यह अब साफ हो गया है कि अन्नदाता की मेहनत ही जीने का सहारा बन सकती है। घरों में बंद रहे देशवासियों को भरपेट भोजन ​किसानों के भरोसे ही मिल सका है। कोरोना महामारी ने यह भी साबित कर दिया कि देश और दुनिया में किसी क्षेत्र पर सर्वाधिक निर्भरता है तो वह कृषि क्षेत्र पर है। यह अन्नदाता की मेहनत का ही परिणाम रहा कि देश में खाद्यान्नों के भंडार भरे रहे। आज दिग्गज अर्थशास्त्री भी स्वीकार करने लगे हैं कि यदि अर्थव्यवस्था को उबारना है तो इसके लिए कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना होगा। यही कारण है कि लाकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जो भी पैकेज सरकार द्वारा घोषित किया गया, उसमें कृषि को विशेष महत्व ​दिया गया। लाकडाउन के दौरान देश के करीब 80 करोड़ लोगों तक गेहूं, चावल, दाल आदि मुफ्त उपलब्ध कराया गया। सरकार ने लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए कृषि क्षेत्र को जल्द राहत देकर बचाया। फसल की कटाई से लेकर मंडियों से खरीद तक मजबूत नेटवर्क प्रभावी रहा। यही कारण है कि रबी में ही केवल गेहूं की सरकारी खरीद से देश के किसानों के हाथों तक 75 हजार करोड़ रुपए पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में सीधे किसानों के खातों में पैसा गया है।
किसान आंदोलन की हताशा के बीच वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों में दो और बड़ी बातें दिखाई दी हैं। मानसून और शरद ऋतु में अच्छी वर्षा से इस बार भी बम्पर फसल होने की सम्भावनाएं हैं। दूसरा वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादों की कीमतें साढ़े 6 वर्ष के बाद काफी ऊंची हैं। इन दोनों से ही किसानों को फायदा होगा और अर्थव्यवस्था में नई जान पड़ेगी। भारत के मुकाबले कृषि उत्पादन करने वाले अर्जेंटीना, ब्राजील, उक्रेन, थाइलैंड और वियतनाम में मौसम खुष्क रहा है। विश्व का सबसे बड़ा गेहूं ​निर्यात रूस, सोयाबीन और मक्का का उत्पादन करने वाले अर्जेंटीना ने कृषि उत्पादों पर टैक्स अस्थाई तौर पर निलम्बित कर दिए आैर निर्यात बंद कर दिया है। ऐसे में भारत का निर्यात बढ़ने की सम्भावनाएं हैं। आपदा को अवसर में बदला है तो केवल भारत के अन्नदाता ने। भारत के सकल ​निर्यात कारोबार में कृषि क्षेत्र का अतुलनीय योगदान रहा तो इसका श्रेय केन्द्र सरकार भी दिया जाना जरूरी है। लाकडाउन के दौरान रक्षा मंत्री होने के बावजूद अपनी कृषि पृष्ठभूमि को देखते हुए श्री राजनाथ सिंह ने विशेष बैठक करके किसानों को खेती करने के लिए खेतों तक जाने की विशेष अनुमति दिलवाई थी। किसान भी इससे पीछे नहीं रहे और उन्होंने दिन-रात मेहनत कर देश के खाद्यान्न भंडार भर दिए।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्वीकार किया है कि देश की तरक्की में किसानों का महत्वपूर्ण योगदान है। सरकार किसानो को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशे कर रही है। खेती किसान के लिए  महज कारोबार नहीं है, उसके लिए  भावनात्मक विषय है। इसी के चलते किसानों का जज्बा हमेशा बुलंद रहता है।

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