लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

नेपाल की नई सरकार

दुनिया में आमतौर पर दो पड़ोसी देशों के बीच संबंध व्यापारिक और कूटनीतिक होते हैं। सीमाएं जुड़ी हुई होती हैं लेकिन भारत और नेपाल के बीच संबंध इन सबसे अलग हैं।

दुनिया में आमतौर पर दो पड़ोसी देशों के बीच संबंध व्यापारिक और कूटनीतिक होते हैं। सीमाएं जुड़ी हुई होती हैं लेकिन भारत और नेपाल के बीच संबंध इन सबसे अलग हैं। नेपाल और भारत में रोटी-बेटी की सांझ है। धार्मिक, सांस्कृतिक और खानपान की साझा विरासत इतनी मजबूत है कि संबंधों में उतार-चढ़ाव आते भी हैं तो लोगों के सीधे जुड़े होने के कारण विवाद सुलझ भी जाते हैं। नेपाल कभी हिंदू राष्ट्र था। हिंदू देवी-देवताओं की तरह राजा को पूजा जाता था। तब से ही दोनों देशों के बीच भाईचारा रहा। लेकिन 2008 में चले जन आंदोलन से राजशाही खत्म हुई और देश में बहुदलीय व्यवस्था कायम हुई। वहां लोकतंत्र तो आया लेकिन राजनीतिक स्थिरता नहीं आई। नेपाल की जनक्रांति दरअसल चीन समर्थक माओवादियों की बंदूक से निकली थी इसलिए नेपाल पर कम्युनिस्ट चीन का प्रभाव बढ़ता ही चला गया। इसलिए नेपाल के घटनाक्रम पर भारत की पैनी नजर रहती है। नेपाल में हुए चुनावों के बाद अब तस्वीर साफ हो चुकी है। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और सीपीएल माओवादी सैंटर के अध्यक्ष पुष्पकमल दहल प्रचंड देश में नई सरकार बनाने के लिए तैयार हो गए हैं। दोनों ही नेता देश में नई बहुमत वाली सरकार के हिस्से के रूप में सत्तारूढ़ पांच दलों के गठबंधन को जारी रखने पर सहमत हो गए हैं। पांच दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन ने 82 सीटें जीतकर बहुमत हासिल कर लिया है। जबकि केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले सीपीएल-यूएमएल गठबंधन ने 52 सीटें हासिल की हैं। यह स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष मतदान और अनुपातिक चुनाव के नतीजे पूरे आने के बाद भी सत्तारूढ़ देउबा गठबंधन के पास बहुमत रहेगा। केपी ओली की पार्टी को हार मिलने से न केवल उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा है बल्कि इससे चीन को भी बड़ा आघात माना जा रहा है। आमतौर पर नेपाल के साथ भारत के रिश्ते मधुर ही रहे हैं लेकिन केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में बनी सरकार के समय भारत के साथ नेपाल के संबंध काफी बिगड़े या यूं कहिए कि चीन के इशारे पर माहौल को जानबूझ कर बिगाड़ा गया। ओली ने नेपाल के हितों को न केवल चीन के हाथों गिरवी रखा बल्कि उन्होंने भारत विरोधी रुख अपनाकर राष्ट्रवाद की एक लहर पैदा करनी चाही लेकिन उनकी सारी चालें विफल हो गईं। संबंधों में कड़वाहट उस समय काफी बढ़ गई जब 2020 में ओली सरकार ने नेपाल के नक्शे में बदलाव किया और भारत की सीमा में स्थित लिपुलेक, काला पानी और लिंपिया धुरा पर अपना अधिकार जताया। ओली ने इन चुनावों में भी यही मुद्दा उछाला और  इस बात का ढिंढोरा पीटा कि उनकी सरकार बनी तो यह इलाके भारत से लिए जाएंगे। ओली के दौर में नेपाल की राजनीति में चीन का दखल काफी बढ़ गया ​था और चीन ने अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते नेपाल को भी मोहरा बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिए थे। ओली ने तो भगवान श्रीराम के जन्म और अयोध्या को लेकर कई ऐसे बयान दिए जिससे उनका ही मजाक उड़ा। पुष्पकमल दहल प्रचंड द्वारा ओली सरकार से समर्थन वापस लेने और सीधे टकराव के बाद राजनीतिक स्थितियां बदली और शेर बहादुर देउबा पांचवीं बार देश के प्रधानमंत्री बने। देउबा का रुख भारत समर्थक माना जाता है। नेपाल की जनता भी देश में चीन की बढ़ती दखलंदाजी से नाराज हो उठी थी। प्रधानमंत्री देउबा ने पिछले वर्ष अप्रैल में जब भारत की यात्रा की तो दोनों देशों के संबंधों को एक बार फिर से आक्सीजन मिली। तब देउबा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के जयनगर से नेपाल के कुर्धा तक ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी। देउबा के दौरे के दौरान ही 132 किलोवाट की डबल सर्किट ट्रांसमिशन लाइन का शुभारंभ भी किया गया। दरअसल नेपाल का स्वाभाविक कारोबारी सांझीदार भारत ही है। नेपाल का सर्वाधिक आयात भारत से ही होता है। चीन ने इसमें भी घुसपैठ करने की कोशिश की लेकिन जरूरी वस्तुओं की सप्लाई में चीन भारत का विकल्प नहीं बन सका। देउबा प्रचंड सरकार का बनना भारत के हित में है। देउबा का समर्थन करने वाले पुष्पकमल दहल प्रचंड का रिश्ता भी भारत से काफी गहरा रहा है। 
इसी साल अपने भारत दौरे के दौरान प्रचंड ने नई दिल्ली में बीजेपी दफ्तर का दौरा किया था, जहां उनका स्वागत बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया था। इस मुलाकात के बाद ही कयास लगाए जा रहे थे कि प्रचंड का अब रुख भारत को लेकर बदल गया है। वहीं, पीएम बनने के बाद शेर बहादुर देउबा भी अपने भारत दौरे के दौरान बीजेपी दफ्तर पहुंचे थे और उन्होंने अपने महज एक साल के कार्यकाल में दो बार पीएम मोदी से मुलाकात की। देउबा के कार्यकाल के दौरान नेपाल सरकार ने चीन के बीआरई प्रोजेक्ट की कुछ परियोजनाओं को रद्द करने का भी काम किया, वहीं चीन के कर्ज के एक बड़े पैकेज को भी ठुकरा दिया था। देउबा सरकार ने लगातार चीन को शक की निगाहों से देखा है, लिहाजा देउबा गठबंधन की सरकार बनना भारत के पक्ष में जरूर है लेकिन फिर भी भारत को नेपाल की नई सरकार को लेकर सतर्क रहना होगा और नेपाल में चीन की गतिविधियों पर नजर रखनी होगी। उम्मीद है कि भरत-नेपाल संबंधों में मधुरता आएगी और ओली सरकार द्वारा भारत के ​खिलाफ किए गए कार्यों पर विराम लगेगा। 
आदित्य नारायण चोपड़ा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

17 − ten =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।