लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

पंजाब के नए मंत्री

विधानसभा चुुनावों से पहले उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ और पंजाब में चन्नी मंत्रिमंडल में विस्तार किया गया।

विधानसभा चुुनावों से पहले उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ और पंजाब में चन्नी मंत्रिमंडल में विस्तार किया गया। चन्नी मंत्रिमंडल का विस्तार कैप्टन अमरिन्दर सिंह के इस्तीफे के बाद नाटकीय घटनाक्रम के बीच हुआ जबकि योगी कैबिनेट का विस्तार बहुप्रतीक्षित था। यद्यपि नए बने मंत्रियों के साथ लगभग चार महीने का ही समय है, उनके पास अपनी कारगुजारी का प्रदर्शन करने के लिए ज्यादा समय नहीं है। फिर भी चुनावों में इनके चेहरों का इस्तेमाल किया जाएगा। मंत्रिमंडल विस्तार से एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों का सारा अंकगणित जातीय प्रतिनिधित्व पर केंद्रित है।
पंजाब मंत्रिमंडल विस्तार में जातीय संतुलन बैठाने का प्रयास किया गया है। पंजाब में खेतिहर मजदूरों में बहुसंख्या दलित जातियों की है। इस समय किसान आंदोलन भी चल रहा है,  जिसकी खासियत खेतिहर मजदूरों को अपने साथ जोड़ने की रही है। जनता में अब नई चेतना पैदा हो चुकी है, उनके लिए मुख्यमंत्री दलित हो या जाट उसमें फर्क नहीं पड़ता। सवाल यह है कि कोई भी सरकार जनता की आकांक्षाओं की कसौटी पर कितना खरा उतरती है। क्या सरकार ने अपने वादे पूरे किये हैं? क्या उनका जीवन पहले से सहज हुआ या दूभर। इसी बीच महज प्रतिकात्मक के प्रतिनिधित्व की राजनीती  का कोई महत्व नहीं रह जाता। असल सवाल नीति और कार्यक्रमों का है। चन्नी मंत्रिमंडल विस्तार से कुछ घंटे पहले रेत घोटाले में चर्चित हुए मंत्री को दोबरा मंत्रिमंडल में शामिल करने का खुला विरोध किया गया। इसके बावजूद दागी को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। कैप्टन सरकार में मंत्री रहे दो पूर्व विधायकों ने अपनी उपलब्धियां बताते हुए हाईकमान से ही सवाल कर डाला कि आखिर उनका कसूर क्या है? उन्होंने यह भी सवाल किया कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह से नजदीकियों के चलते उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर सजा दी गई है। इसके साथ ही पंजाब मंत्रिमंडल विस्तार पर असंतोष भी सामने आ गया। पंजाब की कांग्रेस की राजनीति अभी बदहाली से जूझ रही है। जो कुछ भी हो रहा है  उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस ने कहीं सेल्फ गोल तो नहीं कर दिया। छह माह तक चुनाव विशेषज्ञ कह रहे थे कि आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की ही जीत होगी लेकिन आज कोई ​कांग्रेसी विधायक भी निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि चुनाव में क्या होगा। इसमें कोई संदेह नहीं की कैप्टन अमरिन्दर सिंह दिग्गज नेता हैं, कांग्रेस को कामयाबी भी उन्हीं के चलते मिली थी। क्योंकि वे स्वायत्त रवैया अपना रहे थे इसलिए और ऐसा लग रहा था कि वह कांग्रेस आलाकमान से अलग होकर काम कर रहे थे। इसी कड़ी में नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी में लिया गया था लेकिन पार्टी की आंतरिक स्थिरता की बजाय तनातनी शुरू हो गई। तनातनी के परिणामस्वरूप कैप्टन को इस्तीफा देना पड़ा। राज्य में पहली बार कोई दलित मुख्यमंत्री बना है लेकिन जाट सिख समुदाय की प्रतिक्रिया क्या होगी, यह देखना होगा। हमेशा जाट सिख ही शासन करते आए हैं। सुखजिन्दर सिंह रंधावा मुख्यमंत्री नहीं बन सके क्योंकि सिद्धू उन्हें नहीं चाहते थे। सुनील जाखड़ भी इसलिए नहीं बन सके क्योंकि राज्य में पार्टी को हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं चाहिए। पंजाब कांग्रेस में पार्टी के भीतर अनेक खेमे हो गए हैं जिससे साफ है कि चुनावों तक कोई एकजुटता नहीं हो सकती। बहुत कुछ कैप्टन अमरिन्दर सिंह के अगले कदम पर भी निर्भर करता है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी के भीतर के टकराव के ध्रुवों को कैसे संभालते हैं। पार्टी के ध्रुवों के टकराव के पीछे महत्वाकांक्षाओं का टकराव नजर आ रहा है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह सार्वजनिक रूप से घोषणा कर चुके हैं कि वे सिद्धू को मुख्यमंत्री बनने नहीं देने के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं। कांग्रेस ने जातीय संतुलन बनाकर सामाजिक समीकरण के लिहाज से एक साहसी दाव खेला है, मगर नीतिगत सवाल यह है कि चन्नी सरकार जनता को कोई सही संदेश दे पाएगी। 
जहां तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल विस्तार का सवाल है, इसमें भी ‘कास्ट कैमर’ हावी रहा है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद को मंत्री बनाकर ब्राह्मण चेहरे को प्रतिनिधित्व दिया गया है। तीन दलित और तीन ओबीसी मंत्री लिए गए हैं। सहयोगी छोटे दलों को संतुष्ट करने का प्रयास किया गया है। उधर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दृष्टिगत भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा कैंपेन टीम की घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने काम में लग चुके हैं। योगी आदित्यनाथ बिना किसी लाग लपेट के लव जिहाद, धर्मांतरण, जनसंख्या नियंत्रण सरीखे कानूनों के सहारे हिंदुत्व को धार देने में जुट गए। भाजपा के लिए राम मंदिर मील का पत्थर साबित होगा। राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए समर्थन निधि अभियान की सफलता किसी से ​छिपी हुई नहीं है। भाजपा का एजेंडा हिंदुत्व से लेकर राष्ट्रवाद तक होगा। इसलिए मंत्रिमंडल में 7 नए चेहरों को शामिल करने का कोई महत्व नहीं है। योगी अपने आप में पार्टी को चुनाव जिताने में सक्षम हैं। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sixteen − 9 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।