लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

नई चौकड़ी : राजनीतिक भूचाल

दुनिया में बहुत कुछ बदल रहा है। नए समीकरण बन रहे हैं। नए-नए सामरिक गठबंधन हो रहे हैं। पहले अरब देशों की इस्राइल से काफी दूरियां थीं लेकिन अब अरब देशों में इस्राइल की एंट्री के बाद बहुत कुछ नया हो रहा है।

दुनिया में बहुत कुछ बदल रहा है। नए समीकरण बन रहे हैं। नए-नए सामरिक गठबंधन हो रहे हैं। पहले अरब देशों की इस्राइल से काफी दूरियां थीं लेकिन अब अरब देशों में इस्राइल की एंट्री के बाद बहुत कुछ नया हो रहा है। अब भारत, इस्राइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका की नई चौकड़ी बनी है। इन चार देशों के गुट को कूटनीतिक क्षेत्रों में न्यू क्वाड या नया क्वाडिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग कहा जा रहा है। विदेश मंत्री एम. जयशंकर इस्राइल दौरे पर हैं और उन्होंने अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी विलंकन, संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह बिन जायर अल तहयान और इस्राइल के विदेश मंत्री येर लेयिड के साथ बातचीत की। बैठक में एशिया और मध्यपूर्व में अर्थव्यवस्था के विस्तार, राजनीतिक सहयोग, व्यापार और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। इस मुलाकात को मध्यपूर्व में एक नए सामरिक और राजनीतिक ध्रुव के तौर पर देखा जा रहा है। इस्राइल का कहना है कि उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए चार देश सामने आए हैं लेकिन अभी क्वाड में से किसी ने उनके देश से सम्पर्क नहीं साधा, मगर वे इसके लिए किसी से भी बातचीत को तैयार हैं। इस्राइल का यह भी कहना है कि वह क्वाड से वैक्सीन, तकनीक, जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा को लेकर जुड़ना चाहेगा। इसका अर्थ यह है कि नई चौकड़ी में भविष्य में अन्य देश भी जुड़ सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस्राइल और अमेरिका दोनों चाहते हैं कि भारत मिडल ईस्ट में अहम भूमिका निभाए। ऐसी सम्भावनाएं बन रही हैं कि मिडल ईस्ट की नई स्थितियों में भारत को कैसे शामिल किया जा सकता है। आमतौर पर यह क्षेत्र धमकियों और चुनौतियों से भरा है। कूटनीतिक क्षेत्रों का कहना है कि नई चौकड़ी एक राजनीतिक भूचाल के समान है।
इस्राइल में नफाताली बेनेट के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद भारत के साथ उसकी यह पहली उच्चस्तरीय बातचीत हुई है। इससे पहले बेजामिन नेतन्याहू सरकार के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घनिष्ठता के चलते दोनों देशाें के रिश्तों में खासी मजबूती आई है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पहल से भारत और इस्राइल के संबंध और भी मजबूत हुए हैं।
भारत की​ विदेश नीति 90 के दशक तक इस्राइल के प्रति भेदभाव की रही और हमने फिलिस्तीन के मुक्ति संग्राम का खुलकर समर्थन किया मगर इसमें कोई दोष नहीं था, क्योंकि यासर अराफात के नेतृत्व में फिलिस्तीन के लोग भी अपने जायज हकों के लिए लड़ रहे थे और वह स्वतंत्र देश का दर्जा चाहते थे। भारत ने इस संघर्ष में कूटनीतिक स्तर पर उनका साथ दिया। फिलिस्तीन के अस्तित्व में आने के बाद विश्व परिस्थितियों में काफी अंतर आया और इस्राइल के साथ अरब देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय निगरानी में कई बार शांति प्रयास किए गए। बदलती दुनिया में इस्राइल की स्थिति में परिवर्तन आना लाजिमी था और इस माहौल  में भारत के राष्ट्रहितों में परिवर्तन भी आया। अतः 90 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के शासनकाल में हमने इस्राइल के साथ कूटनीतिक संबंधों की शुरूआत की। आज इस्राइल दुनिया का सामरिक उद्योग क्षेत्र का महारथी है और उसे आतंकवाद के​ विरुद्ध युद्ध लड़ने का माहिर भी माना जाता है। कृषि और विज्ञान के क्षेत्र में इस छोटे से देश ने जबर्दस्त तरक्की तब की जबकि यह चारों तरफ से अरब देशों जैसे सीरिया, जोर्डन, मिस्र, लेबनान और फिलिस्तीन से घिरा हुआ है। यह बात अब​ छिपी हुई नहीं रही कि कारगिल युद्ध के दौरान हमें सैन्य सामग्री इस्राइल से ही ​मिली थी। उसके बाद इस्राइल से हमने लक्ष्यभेदी युद्ध सामग्री हासिल की। भारत की अपनी चिंताएं बहुत बड़ी हैं। एक तरफ चीन है और दूसरी तरफ पाकिस्तान।
भारत के संयुक्त अरब अमीरात से मजबूत व्यापारिक रिश्ते चल रहे हैं। अब अमेरिका हमारा घनिष्ठ मित्र है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत मध्यपूर्व में क्या भूमिका​ निभाए। क्योंकि ईरान के साथ संबंध आड़े आ जाते हैं। खाड़ी देशों से भारत के संबंध काफी मजबूत हैं लेकिन भारत की सामरिक मौजूदगी नहीं है जबकि अमेरिका,​ ​ब्रिटेन और फ्रांस के वहां अपने सैन्य बेस माैजूद हैं। अगर भारत को आगे बढ़ना है तो भारत को भी सामरिक समझौते करने होंगे। अरब देशों से जम्मू-कश्मीर में 370 हटाने के बाद बहुत ही संतुलित प्रतिक्रियाएं आई थीं और सभी ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया था। 
चीन पहले से ही ‘क्वाड’ से परेशान है और इस नए ‘क्वाड’ से चीन को पहले से भी ज्यादा परेशानी होगी। अरब देशों में भारत का दबदबा बढ़ा तो यह हमारे लिए बहुत फायदेमंद रहेगा। इस तरह का गठबंधन भारत के ​लिए सामरिक रूप से और कूटनीतिक तौर पर काफी लाभदायक रहेगा। भारत भी मध्यपूर्व में नई भूमिका​ ​निभाने के​ मौके तलाश कर रहा था, जो उसे अब मिलने की उम्मीद है। भारत को चीन और पा​किस्तान की चुनौतियों का सामना करने के ​लिए सामरिक रूप से मजबूत होना है और इस्राइल इसमें अहम भूमिका​ निभा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seventeen − eight =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।