आज सारा विश्व कोरोना की आपदा से जूझ रहा है। कोई भी ऐसा व्यापार, काम या समाजसेवा नहीं जो इससे प्रभावित न हो। एक तो बीमारी का डर ऊपर से उसके बाद सब पर उसके प्रभाव का डर। आने वाले समय में किस तरह की आर्थिक स्थिति होगी यह सोचकर मन अशांत हो जाता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, प्रतिपक्ष के राजनीतिज्ञ, सब इस स्थिति से निपटने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री को तो अमेरिका भी फोलो कर रहा है। वह बार-बार देश को सम्बोधित कर जनता को एक पर्सनल टच दे रहे, प्रोत्साहित कर रहे हैं, हौंसला दे रहे हैं। एक देश के मुखिया की जिम्मेवारी निभा रहे हैं।
अश्विनी जी मेरे कंधों पर भी पंजाब केसरी की जिम्मेवारी डाल गए हैं, जिसे मैं और मेरे तीनों आज्ञाकारी सपुत्र आदित्य नारायण चोपड़ा, अर्जुन चोपड़ा और आकाश चोपड़ा तथा पंजाब केसरी का मेहनती वफादार स्टाफ बड़ी मुश्किलों से जूझते हुए अच्छी तरह से निभाने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे लिए यह समय कड़े इम्तिहान की घड़ी है। अपने जीवन साथी का बिछुड़ना, रिश्तेदारों का तंग करना, फिर कोरोना का कहर किसी भी आपदा से कम नहीं। जहां रिश्तेदार जो इसे फायदे का बिजनेस न समझ कर अपने शेयर बेचकर चले गए थे, श्री अश्विनी कुमार जी के दुनिया से विदाई के बाद आज अपने हकों के दावे ठोंक रहे हैं। शायद मैं शोक के कारण बिस्तर से उठ न पाती परन्तु चारों तरफ की मुश्किलों ने मुझे ‘उठो काम करो तब तक न रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो’ काम करने के लिए जुनून भरा।
जब देखा कि अखबार भी अन्य व्यापारों की तरह मुश्किलों का सामना कर रहा है जिसे टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान, जैसे बड़े अखबार उभारने की कोशिश कर रहे हैं, प्रचार कर रहे हैं कि अखबार से कोरोना नहीं फैलता आदि… तो मैंने भी सोचा कि मेरा भी हिन्दी मीडियम का राष्ट्रीय अखबार होने के नाते फर्ज बनता है कि इस मुद्दे पर काम करूं, लिखूं। जब एक दम कोरोना का कहर आया तो डरकर पाठकों ने शुरू-शुरू में अखबार लेने से मना कर दिया। समाचार पत्र वितरकों ने उठाने को न कर दिया। कई सोसाइटी के बाहर लिखा गया कि कृपया अखबार न लाएं।
लोग अखबार लेने से डरने लगे कि मालूम नहीं किन-किन हाथों से लग कर आता है आदि-आदि। हमारे पाठकों के फोन हमारे आफिस में आने लगे कि क्या करें हमें तो पंजाब केसरी पढ़े बगैर चैन नहीं मिलता, कोई कहता दिनचर्या शुरू नहीं कर पाते। एक वरिष्ठ नागरिक ने यहां तक कहा कि मेरा तो कई सालों से तब तक पेट नहीं साफ होता जब तक मैं इसे पढ़ता नहीं। पाठकों का जब यह फीडबैक मुझे मिला तो मैंने ठान लिया कि जितना हो सकेगा मैं अपने पाठकों तक अखबार पहुंचाऊंगी। कइयों को मैंने ई-पेपर पढ़ने की सलाह दी, कई वरिष्ठों को ई-पेपर के बारे समझ नहीं आ रही थी तो मैंने अपने पंजाब केसरी के पीडीएफ उनको भेजने शुरू किए। यहां तक कि दूसरे राज्यों हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान आदि के लोग बहुत खुश हुए, धन्यवाद दिया। ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि जितनी देर तक अखबार हाथ में नहीं आता तब तक आनंद नहीं आता। एक विश्वास नहीं बनता। सारा दिन टीवी पर एक ही तरह की खबर देखकर दिल भर जाता है। अभी भी टीवी का अपना अलग आनंद होता है और सोशल मीडिया की फेक न्यूज देखकर हम डर जाते हैं। अखबार सूचना का एक जिम्मेदार माध्यम होता है जो हर तरह की न्यूज देता है। सुबह-सुबह पढ़ कर चैन आ जाता है। अखबार में सारी न्यूज पढ़ ली और उसके बाद टीवी पर चाहे फिल्म देखें, नाटक देखें कोई मुश्किल नहीं होती क्योंकि अखबार पढ़ने से हमारे अन्दर बेस बन जाता है। अब धीरे-धीरे अखबार बंटना शुरू हो गया है लेकिन अभी बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अखबार जो आप सबके हाथ में आता है उसकी लागत लगभग 8 से 9 रुपए होती है। और अधिक भी सकती है, यह पृष्ठों पर निर्भर करता है, जो बिकता 4 से 5 रुपए के बीच है, जिसमें से एजैंट और हाॅकर को कमीशन भी जाता है। अखबार की आमदनी प्रसार (सर्कुलेशन),सरकारी और प्राइवेट विज्ञापन जो आजकल बिल्कुल बंद हैं (प्राइवेट सैक्टर का विज्ञापन तो बहुत ही मुश्किल है) से होती है, सरकारी विज्ञापन का राजस्व भी बहुत कम है, ऊपर से कई नेताओं ने सरकार को सुझाव दे दिया कि अखबारों को विज्ञापन नहीं देने चाहिएं।
उनसे मैं प्रार्थना करना चाहती हूं कि देश भर में मीडिया चाहे इलैक्ट्रोिनक हो या प्रिंट, कोराेना से लड़ रहा है और लाखों लोगों का इससे रोजगार जुड़ा है, इसकी रीढ़ की हड्डी विज्ञापन हैं। अगर रीढ़ की हड्डी न रही तो अखबार कैसे चलेंगे, लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे, विज्ञापन के बिना अपने कर्मचारियों को वेतन कैसे देंगे, अखबारों के साथ परोक्ष और अपरोक्ष रूप से बहुत से लोगों के रोजगार जुड़े होते हैं। आज बड़े से बड़े अखबारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हमारे जैसे अखबारों का तो हाल पूछो ही नहीं।
अगर अखबार चल रहा है तो सिर्फ वफादार कर्मचारियों के खातिर जो आधे तो आ ही नहीं पा रहे क्योंिक कई बहुत दूर हरियाणा, यूपी से आते हैं। कई अन्य स्थानों से हैं जहां का इलाका क्वारंटाइन कर दिया गया है। हमारी गाडियां जिनको ले जाने के लिए जाती हैं वो या जिनके पास खुद का साधन है, वही आ पा रहे हैं। हम उनको समय पर वेतन नहीं दे पा रहे है तब भी उनकी आस्था इतनी जुड़ी हुई है कि वे इसको एक मिशन की तरह लेकर चल रहे हैं कि हमें अखबार को बचाना है। घर तक पहुंचाना है। चाहे रिपोर्टर हैं, डैस्क पर काम करने वाले हैं या प्रशासनिक विभाग का काम करने वाले या सफाई कर्मचारी, सभी ऐसे अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं जैसे सीमा पर सिपाही या अस्पतालों में डाक्टर, नर्स। हमारा स्टाफ आंधी-तूफान में अखबार को सैंटर तक पहुंचाने और सैंटर से पाठक तक पहुंचाने के लिए हॉकर अपनी जान जोखिम में डालता है। इसका एक-एक काम एक यज्ञ की तरह होता है। अगर कोरोना के चलते इस पर असुरक्षित होने के सवाल उठाए जाएं तो वह एक पाप है। प्रसिद्ध विधि विशेषज्ञ अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे तथा तुषार मेहता जैसे विधि विशेषज्ञों ने कह दिया कि अखबार वितरण को रोकना एक अपराध है। यही नहीं स्वामी रामदेव जी ने अखबार को पढ़ते अपनी फोटो शेयर की और संदेश दिया कि देश के सभी अखबार ईमानदारी, सत्यता और पारदर्शिता के साथ काम कर रहे हैं। पंजाब केसरी अखबार तो सत्य का ध्वजवाहक है, जिसने राष्ट्रीयता की खातिर कुर्बानियों की मिसाल स्थापित की है।
कोरोना के चलते हर चीज असुरक्षित है। हर किसी वस्तु को हाथ लगाने से पहले हाथ धोइये और बाद में भी उसी तरह, अगर किसी को आशंका है तो वह भी अखबार को हाथ लगाने से पहले और बाद में हाथ साफ करे, डरे नहीं, क्योंकि अखबार की स्याही और पेपर में कैमिकल इस्तेमाल होते हैं, जिससे वायरस मर जाता है तो यह सेफ है दूसरे, अखबार को सैनेटाइज करके सैंटरों पर भेजने की व्यवस्था की गई है। सुबह उठते ही हम अपनी अखबार के साथ सारे देश की प्रमुख अखबारों को पढ़ते हैं तो हमें सब कुछ सेफ लगता है क्योंकि जानकारी के बिना ज्ञान अधूरा है और ज्ञान के बिना जीवन अधूरा है। वैसे भी अश्विनी जी हमेशा कहते थे कि यह कहावत मशहूर है कि बंदूक निकालो न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो। सो अब कोरोना को भगाना है, अखबार को पढ़वाना है।