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महामारी में एनजीओ पर पैनी नजर

पूरा देश कोरोना वायरस से एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहा है। इस महामारी से लड़ने के लिए जहां जज्बे की जरूरत है, वहीं धन की भी जरूरत है। धन का इस्तेमाल भी जरूरतमंदों के लिए होना चाहिए।

पूरा देश कोरोना वायरस से एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहा है। इस महामारी से लड़ने के लिए जहां जज्बे की जरूरत है, वहीं धन की भी जरूरत है। धन का इस्तेमाल भी जरूरतमंदों के लिए होना चाहिए। सभी धार्मिक संगठन आज लाखों गरीबों को हर रोज खाना दे रहे हैं तो यह उन लोगों की भावनाओं के अनुरूप है, जिन्होंने मानव कल्याण के लिए अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान में दिया हुआ है। देशभर में अनेक एनजीओ हैं जो कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के दौरान मानव की सेवा में कार्य कर रहे हैं, लेकिन देश में संचालित एनजीओ हमेशा संदेह के घेरे में रहे हैं। उनकी गतिविधियां कई बार संदिग्ध पाई गईं क्योंकि उनके कामकाज में पारदर्शिता नहीं थी।
एनजीओ को प्राप्त धन से कुछ लोगों ने अपने बड़े एम्पायर खड़े कर लिए हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान गृह मंत्रालय ने 14,500 एनजीओ का पंजीकरण रद्द किया है। पिछले तीन वर्षों के दौरान 6,600 संगठनों का लाइसैंस एफसीआरए के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर रद्द किया जा चुका है। इन एनजीओ को एफसीआरए के तहत ही विदेशों से दान लेने की स्वीकृति प्रदान की जाती है। वर्ष 2018-19 के दौरान एफसीआरए के तहत पंजीकृत एनजीओ को कुल 2,244,77 करोड़ विदेशी फंड के रूप में प्राप्त हुआ जबकि 2017-18 में एनजीओ को केवल 16,902 करोड़ रुपए ही ​िमले थे। 
गृह मंत्रालय ने सभी एनजीओ से कहा है कि वह कोरोना वायरस महामारी से जूझने के लिए किए जा रहे प्रयासों से हर माह सरकार को अवगत कराएं। सभी एनजीओ, जिन्हें एफसीआरए के प्रावधानों के अनुरूप विदेशों से फंड मिलता है, उन्हें कोरोना महामारी पर अपनी गतिविधियों की आनलाइन रिपोर्ट देनी होगी। सरकार देखना चाहती है कि एनजीओ  कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सरकारी और स्थानीय प्रशासन के अलावा क्या भूमिका निभा रहे हैं। इससे पहले गृह मंत्रालय ने सभी एनजीओ को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वह बेरोजगार लोगों, बेघर दिहाड़ीदार मजदूरों को शैल्टर और सामुदायिक रसोई स्थापित कर उनके लिए भोजन की व्यवस्था करने में सहयोग करें। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनेक एनजीओ सहायता करने के लिए आगे भी आए हैं। व्यक्तिगत रूप से भी लोग यथासम्भव सहायता कर रहे हैं। स्पष्ट है कि महामारी से  लम्बी लड़ाई कोई भी सरकार अकेले नहीं लड़ सकती, उसे समाज का सहयोग चाहिए।
कई मामलों में गैर सरकारी संगठन देश विरोधी कामों तक में लिप्त पाए गए तो कई ऐसे संगठन भी हैं जिनका संचालन ​किसी निजी कम्पनी से भी गया गुजरा है। मानवता के कल्याण के लिए देश-विदेश से दान तो ले लिया जाता है लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल अपनी भलाई और मलाई का जुुगाड़ करने के लिए किया जाता है। एनजीओ के गोरखधंधे में बहुत बड़े-बड़े लोग शामिल हैं इसलिए इन पर हाथ डालना मुश्किल होता है। कई मामलों में गृहमंत्रालय ने कड़ी कार्रवाई की है। एक प्रतिष्ठित समाजसेवी के ट्रस्ट का एफसीआरए लाइसैंस इसलिए रद्द किया गया क्योंकि उसको  जो धन विदेश से दान स्वरूप मिला, उसे व्यक्तिगत तौर पर खर्च किया गया। जिस उद्देश्य के लिए पैसा आया था उसके लिए कोई काम नहीं ​किया गया और एफसीआरए के नियमों का उल्लंघन किया गया। 
देश में कुडनकुलम परमाणु संयंत्र की स्थापना के खिलाफ आंदोलन को हवा एक एनजीओ ने ही दी थी। इसके बाद ही एनजीओ के कार्यालय सील किए गए थे। ग्रीनपीस संगठन पर कई बार अंगुलियां उठी हैं। पहले एनजीओ में से दस फीसदी भी आयकर रिटर्न नहीं भरते थे लेकिन सरकार ने नियम सख्त किए हैं। एनजीओ के नाम पर अनेक लोगों ने मोटी कमाई की है। कुछ ने धर्मांतरण का खेल खेला। मानवाधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाले संगठन मानव के ही सबसे बड़े शोषक बन कर उभरे। महिला कल्याण, समाज कल्याण, महिला सशक्तिकरण, बेसिक शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों में अनियमितताओं का बोलबाला रहा। कुछ एक संगठनों का काम काफी सराहनीय रहा क्योंकि उनका काम बोलता भी है और दिखाई भी दे रहा है।
एनजीओ सामाजिक कार्यों के लिए बनाए जाते हैं, इसका विकास अमेरिका से हुआ। अमेरिका में सरकार बहुत से सामाजिक कार्य स्वयं करने की जगह इन संगठनों के माध्यम से अनुदान देकर कराती है। अन्य देशों ने भी इसी मॉडल को अपनाया लेकिन भारत में कुछ संगठन राष्ट्रीय हितों के लिए नुक्सानदेह साबित हुए और न्होंने सार्वजनिक हितों को प्रभावित किया या देश की सुरक्षा, वैज्ञानिक, सामरिक और आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की कोशिश की। जब कुछ एनजीओ ने देश में आंदोलनों को हवा दी तो यह स्पष्ट हो गया कि विदेशी शक्तियां उनका उपयोग एक प्राक्सी के रूप में कर रही हैं और वे भारत को अस्थिर करना चाहती हैं। देेश भर में एनजीओ पर पैनी नजर रखना जरूरी है। सरकार किसी के काम में बाधक नहीं है लेकिन संगठनों को अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए। काम किया है तो सामने आना ही चाहिए। एनजीओ जब अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट सरकार को देंगे तो इस बात का आकलन हो जाएगा कि क्या उन्होंने वास्तव में मानव कल्याण के कार्य किए हैं या फिर फोटो खिंचवाई आैर अखबारों में छपवाई, काम खत्म।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com­ 

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