नीतीश और बिहार के चुनाव

नीतीश और बिहार के चुनाव
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बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल(यू) के सर्वेसर्वा श्री नीतीश कुमार देश के एकमात्र एेसे राजनीतिज्ञ कहे जा सकते हैं जिनके अगले राजनैतिक दांव के बारे में कोई भी राजनैतिक विश्लेषक विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता। रंग बदलने में नीतीश बाबू का कोई सानी नहीं माना जाता और हर मोड़ पर मुख्यमंत्री का पद अपने पास रखने में कोई जवाब भी नहीं समझा जाता। कभी वह भाजपा के साथ होते हैं तो कभी इंडिया गठबन्धन के साथ गलबहिया करते नजर आते हैं। सत्ता की राजनीति में वह जरह तरह से बेजोड़ समझे जाते हैं कि अपने दाएं हाथ को भी बाएं हाथ की कारगुजारियों की खबर तक नहीं होने देते। उनका यही निराला चरित्र उन्हें राजनीति में पलटूराम भी बनाता है मगर बिहार की राजनीति में उन्हें अप्रासंगिक बनाने की हिम्मत किसी भी राजनैतिक दल में नहीं है क्योंकि अपने अति पिछड़ों का वोट बैंक इस तरह तैयार किया हुआ है कि वह किसी अन्य पार्टी के पास जाने को तैयार नहीं होता। पिछड़ों में अति पिछड़ा वर्ग को पहचान देने का काम नीतीश बाबू ने ही अपनी राजनीति में किया और आज वही उनकी सबसे बड़ी सम्पत्ति है।
हाल ही में दिल्ली में अपनी पार्टी की राष्ट्रीय समिति की बैठक कर नीतीश बाबू ने फैसला किया कि उनकी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राज्यसभा सदस्य श्री संजय झा होंगे। संजय झा की पृष्ठभूमि भारतीय जनता पार्टी की है। वह 2012 से पहले भाजपा के साथ ही थे। उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर नीतीश बाबू ने भाजपा आलाकमान को संदेश दे दिया है कि वह निकट भविष्य में अब पलटी नहीं मारेंगे और भाजपा के साथ ही बने रहेंगे, बशर्ते  बिहार की राजनीति में भाजपा उन्हें खुला हाथ दे। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि नीतीश बाबू ने केन्द्र की राजनीति में अपने 12 सांसदों का समर्थन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बिना किसी शर्त के दिया है। जद (यू ) के लल्लन सिंह को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जो मत्स्य पालन विभाग दिया गया है वह किसी भी मायने में महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता। साथ ही राज्यमंत्री के रूप में जद (यू) सांसद को कृषि मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है।
कृषि मंत्री मध्य प्रदेश के नेता शिवराज सिंह के बनने के बाद अन्य राज्य मंत्रियों का कोई खास महत्व नहीं माना जाता है। समझा जा रहा है कि नीतीश बाबू केन्द्र में भाजपा को पूरा समर्थन इसीलिए दे रहे हैं जिससे भाजपा बिहार में उनके साथ यही रवैया अपना सके। हालांकि राज्य विधानसभा में भाजपा के विधायकों की संख्या जद (यू) के विधायकों से ज्यादा है मगर राज्य की राजनीति में भाजपा की अपने दम पर ज्यादा ताकत नहीं समझी जाती है। इसका नजारा 2015 में सामने आ गया था जब नीतीश बाबू की पार्टी ने लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबन्धन करके चुनाव लड़ा था तो भाजपा की केवल 45 सीटें ही आई थीं। इस हकीकत को भाजपा भी पहचानती है और वह नीतीश बाबू का साथ छोड़ना नहीं चाहती है। मगर भाजपा आंखें मंूद कर नीतीश बाबू पर यकीन भी नहीं करना चाहती है क्योंकि 2020 का विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ लड़ने के बावजूद नीतीश बाबू ने भाजपा का साथ छोड़कर लालू जी से हाथ मिला लिया था।
हाल के लोकसभा चुनावों में जद (यू) व भाजपा गठबंधन ने राज्य की 40 में से 31 सीटों पर सफलता प्राप्त की है जिससे नीतीश बाबू गद्-गद् बताये जाते हैं, अतः उनकी योजना बताई जा रही है कि वह विधानसभा चुनाव जल्दी चाहते हैं। बिहार में कायदे से विधानसभा चुनाव अगले साल अक्तूबर महीने तक होने हैं। मगर सूत्रों की मानें तो नीतीश बाबू चाहते हैं कि चुनाव इसी साल के भीतर हो जाने चाहिए जिससे उनकी सत्ता बनी रहे क्योंकि फिलहाल माहौल जद (यू)-भाजपा गठबन्धन के पक्ष में है। अगले साल तक देरी हो जाने से माहौल बदल भी सकता है। इसके लिए नीतीश बाबू बिहार के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर रहे हैं और जातिगत जनगणना के मुद्दे पर अपने पक्ष को मजबूत कर रहे हैं। पटना उच्च न्यायालय ने उनकी पिछली महागठबन्धन सरकार द्वारा दिया गया 65 प्रतिशत पिछड़ी जाति का आरक्षण रद्द कर दिया है। इसके खिलाफ वह सर्वोच्च न्यायालय में जाने की योजना बना रहे हैं। जाहिर है कि यह मामला लम्बा खिंचेगा मगर उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने का श्रेय उन्हीं की सरकार को मिलेगा।
इसके चलते वह राज्य में विधानसभा चुनाव करा लेना चाहते हैं। वह चुनौती देने में देरी नहीं करना चाहते क्योंकि यदि उन्होंने इसमें देरी की तो उच्च न्यायालय के फैसले को लालू जी की पार्टी राजद सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे सकती है। पिछली महागठबन्धन सरकार के उपमुख्यमन्त्री लालू जी के सुपुत्र श्री तेजस्वी यादव ने घोषणा कर दी है कि यदि नीतीश सरकार सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नहीं देती है तो उनकी पार्टी देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा आरक्षण के मुद्दे पर खटखटायेगी। नीतीश बाबू बहुत चतुर सत्ता के खिलाड़ी माने जाते हैं अतः वह एेसा कोई मौका हाथ से नहीं जाने देंगे जिससे उनके विरोधियों को वरीयता मिले। नीतीश बाबू जो चौपर बिछा रहे हैं उससे यही आभास होता है कि वह बिहार विधानसभा के चुनाव जल्दी करायेंगे। मुख्यमन्त्री रहते वह समय से पहले विधानसभा भंग करने की सिफारिश राज्यपाल से कर सकते हैं, बशर्ते कि भाजपा उनका साथ दे।
 आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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