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कोरोना का निजामुद्दीन रुख ?

राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में हुए एक धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों की वजह से भारत के विभिन्न प्रान्तों में कोरोना वायरस के फैलने का खतरा अचानक ही एक चुनौती बन कर सामने आया है।

राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में हुए एक धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों की वजह से भारत के विभिन्न प्रान्तों में कोरोना वायरस के फैलने का खतरा  अचानक ही एक चुनौती बन कर सामने आया है। मुस्लिम धर्म के अनुयािययों  के एक सम्मेलन तबलीग-ए-मरकज में कई अन्य एशियाई देशों के नागरिकों ने भी हिस्सा लिया और वे बाद में भारत के विभिन्न राज्यों में भी गये। 
तबलीगी जमात संगठन का यह सम्मेलन निजामुद्दीन की एक मस्जिद में हुआ जिसे इसका  ‘हेड क्वार्टर’ या केन्द्र (मरकज) माना जाता है। इसके साथ ही इस सम्मेलन में भारत के ही कई प्रान्तों के लोगों ने हिस्सा लिया और बाद में वे अपने शहरों या कस्बों में गये। इनमें कोरोना के मरीज पाये जाने से पूरे देश की राज्य सरकारों के कान खड़े हो गये। विदेशी नागरिकों में धर्मोपदेशक भी बताये जाते हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश के नगीना शहर की मस्जिद से लेकर नवी मुम्बई की मस्जिद तक में अपना बसेरा किया। इस मरकज में शामिल होने के लिए विदेशों से बहुत पहले से लोग आने लगे थे। यह धार्मिक सम्मेलन कई दिन तक चला जिसमें भारत के राज्यों के लोग भाग लेने आते रहे और वापस अपने शहरों को जाते रहे।
गम्भीर तथ्य यह है कि इंडोनेशिया से लेकर सऊदी अरब व फिलपींस आदि के मुस्लिम नागरिकों ने पर्यटक के तौर पर लिये गये वीजा  से इस मरकज में हिस्सा लिया और धर्मोपदेशक  तक की भूमिका भारत में आकर निभाई। इनमें कोरोना वायरस के फैलने की घटना तब सामने आयी जब तेलंगाना के उन पांच नागरिकों की इस वायरस से मृत्यु होने की खबर आयी जिन्होंने इस धार्मिक समागम में शिरकत की थी। इसके साथ जम्मू- कश्मीर राज्य में जिस एक व्यक्ति की मृत्यु कोरोना की वजह से हुई है उसने भी इस मरकज में हिस्सा लिया था।
विगत दिन तक मरकज स्थल पर 1700 व्यक्ति इकट्ठा थे जिनमें कोरोना के पाये जाने के आसार बहुत बढ़ गये हैं क्योंकि दिल्ली के ही उन 24 लोगों को कोरोना से संक्रमित पाया गया है जिन्होंने इस मरकज में हिस्सा लिया था। चिन्ता की बात यह है कि आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व अंडमान निकोबार तक में इस समागम में हिस्सा लेने वाले नागरिक संदिग्ध हो गये हैं और उनकी जांच आवश्यक हो गई है। हालांकि कहा जा रहा है कि लाॅकडाऊन की पहली आहट 22 मार्च को होने से पहले ही समागम समाप्त हो गया था और इसके आयोजकों ने लाॅकडाऊन लागू होने के बाद दिल्ली पुलिस को सूचना दे दी थी कि मरकज में भारी संख्या में लोग इकट्ठा हैं और उन्हें अपने गन्तव्यों तक जाने की इजाजत दी जानी चाहिए मगर लाॅकडाऊन में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की मनाही हो गई और पुलिस ने इसी निर्देशिका का पालन किया अर्थात जो जहां है वह वहीं रहे लेकिन दिल्ली में जो 25 मामले वायरस से संक्रमित होने के ताजा मिले उनमें से 18 उन लोगों के हैं जो निजामुद्दीन इलाके में रहते हैं। इससे इस संक्रमण के फूट पड़ने का खतरा पैदा हो गया है और दिल्ली सरकार व दिल्ली पुलिस ने चौरफा एहतियात से काम करना शुरू कर दिया है और मरकज में ठहरे हुए सभी 1600 के लगभग व्यक्तियों की चिकित्सीय जांच की कार्रवाई शुरू कर दी है।
  अब पूरे देश की राज्य सरकारों के लिए यह गंभीर चुनौती है कि वे उन सभी लोगों का सही-सही पता लगाये जिन्होंने इस समागम में हिस्सा लिया था क्योंकि कोरोना वायरस सम्पर्क में आने से ही फैलता है। नवी मुम्बई की जिस मस्जिद में फिलीपींस के कुछ लोग गये थे उसके मौलाना समेत कई अन्य लोगों को संक्रमित पाया गया है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के नगीना कस्बे की मस्जिद में इंडोनेशिया के कुछ नागरिक गये थे। स्थानीय पुलिस ने उनकी जांच की व्यवस्था कर ली है मगर मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों से इस मरकज में शामिल होने गये उन एक सौ के लगभग लोगों को कैसे ढूंढा जायेगा जो समागम में शामिल होकर स्थानीय समाज में घुल-मिल गये? यदि इनमें से किसी को कोरोना होता है तो उसके फैलने की संभावना को रोका नहीं जा सकता। यह ऐसी गलती हुई है जिसका खामियाजा समाज के बेकसूर लोगों को भुगतना पड़ सकता है। 
अतः धार्मिक आयोजनों के नाम पर लोगों का बेपरवाह होकर इकट्ठा होना कोरोना को दावत देने के अलावा कुछ और नहीं कहा जा सकता। कुछ हिन्दू संगठन  नवरात्रों में मन्दिरों के कपाट बन्द होने पर रोष प्रकट कर रहे हैं और ग्रामीण व कसबाई इलाकों में लोगों को गुमराह करने की कोशिशें कर रहे हैं। इनकी कार्रवाइयों का सख्त संज्ञान लिये जाने की जरूरत है। राम नवमी पर अयोध्या में भी किसी प्रकार का समारोह आयोजित करना आत्मघाती साबित हो सकता है। धर्म व्यक्ति के जीवन में वही होता है जो समयानुरूप गति की वकालत करता है। इसी वजह से यह उल्लिखित है ‘धारयति स धर्मः’  अर्थात जो धारण करने योग्य हो वही धर्म होता है। धर्म हमें वैज्ञानिकता की तरफ ले जाता है क्योंकि इसमें ज्ञान ( इल्म) को सबसे बड़ी ताकत कहा गया है। इस्लाम में भी इल्म की अहमियत हर दर्जा बताई गई है। बल्कि यह तो कहता है कि ‘पहले समझो फिर यकीन करो’ अर्थात अन्धविश्वासी कदापि न बनो।

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