राजनीति में बद-कलामी नहीं

राजनीति में बद-कलामी नहीं
Published on

लोकतन्त्र में हिंसा और घृणा फैलाने के लिए कोई स्थान नहीं होता है। इसमें आलोचना करने का स्वतन्त्र अधिकार होता है मगर बदजुबानी या बद-कलामी के लिए भी कोई स्थान नहीं होता परन्तु वर्तमान दौर की राजनीति में हम लगातार देख रहे हैं कि राजनीतिज्ञों की जुबान नियन्त्रण से बाहर होकर समाज में नफरत और हिंसा फैलाने का काम करती रहती है। राजनीतिज्ञों की भाषा लगातार बाजारू होती जा रही है जिसमें व्यक्तिगत हिंसा का भी समावेश होता जा रहा है। हाल ही में महाराष्ट्र के सत्ताधारी भाजपा-शिवसेना (शिन्दे गुट) गठबन्धन के एक विधायक संजय गायकवाड़ ने कांग्रेस के लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी के लिए कहा कि जो कोई भी उनकी जुबान काटेगा उसे वह 11 लाख रुपए का इनाम देंगे। एेसे व्यक्ति को एक क्षण के लिए भी विधायक पद पर रहने का अधिकार नहीं है क्योंकि उसने भारतीय संविधान को सीधे-सीधे तार-तार करने का काम किया है। संविधान की शपथ लेकर विधायक बनने वाले व्यक्ति के खिलाफ न्यायपालिका को तुरन्त संज्ञान लेना चाहिए और वाजिब कानून के तहत सजा सुनानी चाहिए क्योंकि उसने यह बयान एक सार्वजनिक भाषण में दिया है।
इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला पूरे देश में ही लागू है कि नफरत फैलाने वाले बयानों पर राज्य सरकारों व पुलिस को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए मगर अभी तक इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है और बामुश्किल एक थाने में गायकवाड़ के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो सकी है। राहुल गांधी के खिलाफ एेसा बयान देकर गायकवाड़ ने सिद्ध किया है वह भारत की लोकतान्त्रिक राजनीति में हिंसा फैलाना चाहते हैं अतः उनके भविष्य में चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबन्ध लगना चाहिए क्योंकि भारत का संविधान यह स्पष्ट रूप से कहता है कि केवल अहिंसक रास्तों पर विश्वास रखने वाला व्यक्ति या राजनैतिक दल ही भारत की चुनाव प्रणाली में हिस्सा ले सकता है। सवाल यह नहीं है कि राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं जो कि एक संवैधानिक पद है बल्कि असली सवाल यह है कि श्री गांधी भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल एक व्यक्ति हैं। उन्होंने जो भी बयान अपने अमेरिका के दौरे के दौरान दिये हैं उन पर लोकतान्त्रिक दायरे में बहस हो सकती है और अलग-अलग विचारधारा के लोग अपने मत के अनुसार उनकी समीक्षा कर सकते हैं।
हमारी पूरी संसदीय प्रणाली का आधार ही मत भिन्नता पर रखा हुआ है। मगर संजय गायकवाड़ ने कहा कि राहुल गांधी ने आरक्षण समाप्त करने की बात कही। एेसी बात सुनकर केवल रोया ही जा सकता है क्योंकि राहुल गांधी तो आरक्षण को तब तक अन्तनकाल तक जारी रखना चाहते हैं जब तक कि भारतीय समाज में समानता न आ जाये। अमेरिका में जाकर भी उन्होंने यही कहा और राय व्यक्त की कि आरक्षण तभी समाप्त किया जा सकता है जब भारतीय समाज से गैर बराबरी मिट जाये और सभी जाति वर्ग के लोगों के बीच समानता आ जाये। मगर गायकवाड़ ने तालिबानी तेवरों में राहुल गांधी की जुबान पर ही इनाम की घोषणा कर डाली। कयामत यह है कि वह महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री एकनाथ शिन्दे की पार्टी के विधायक हैं अतः श्री शिन्दे को ही इस मामले में तुरन्त कार्रवाई करनी चाहिए थी। भारत तो वह देश है और इसके लोकतन्त्र का वह खूबसूरत इतिहास है जिसमें राजनैतिक भाषा के संयम पर विशेष ध्यान दिया जाता था और राजनैतिक नेताओं को यदि लगता था कि उनमें से ​िकसी ने यह सीमा लांघने का प्रयास किया है तो वह खुलकर उस नेता की निन्दा करने से दूर भी नहीं रहते थे। इस मामले में 1969 में हुई वह घटना मील का पत्थर है जब दो विपक्ष के नेताओं में से ही एक ने दूसरे की भाषा के अनियन्त्रित हो जाने पर आलोचना की थी। इस वर्ष स्व. प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ (अब भाजपा) पार्टी के नये-नये अध्यक्ष बने थे।
देश में स्व. इन्दिरा गांधी की सरकार थी। इंदिरा सरकार तब चीन से 1962 में और पाकिस्तान से 1965 में युद्ध होने की वजह से तीसरी पंचवर्षीय योजना समय पर नहीं ला पाई थी। स्व. वाजपेयी हास्य व व्यंग्य की भाषा के महारथी माने जाते थे। उन्होंने 1969 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के मध्यावधि चुनावों के प्रचार के दौरान सार्वजनिक सभाओं में जब यह कहा कि हम सरकार से मांग करते हैं कि पंचवर्षीय योजना लाओ तो वह कहती है कि योजना 'प्रसव' में है। हम कहते हैं कि जल्दी खींचों तो वह कहती है कि दर्द होता है। श्री वाजपेयी ने तुरन्त भूल सुधार किया और फिर कभी इस प्रकार का वक्तव्य नहीं दिया। मगर यहां तो मामला ही पूरा गड़बड़ाया लगता है। केन्द्र की सरकार में राज्यमन्त्री रवनीत सिंह बिट्टू भाजपा में आकर श्री राहुल गांधी को आतंकवादी बता रहे हैं। अभी तक वह कांग्रेस में ही रहे और राहुल गांधी के आगे-पीछे चक्कर काट कर ही तीन बार कांग्रेस पार्टी से लोकसभा के सदस्य बने। राजनैतिक दल बदल लेने से क्या व्यक्ति का भाषा बोध भी बदल जाता है? इस देश में लोकतन्त्र उस महात्मा गांधी की देन है जो कहा करते थे कि वह अपने विरोधी के विचार उसे अपने से ऊंचे आसन पर बैठाकर सुनना पसंद करेंगे। मगर क्या सितम है कि यहां जुबान काटने की बात हो रही है।

Related Stories

No stories found.
logo
Punjab Kesari
www.punjabkesari.com