आदमी कुछ भी कर ले अपने चरित्र और आचरण से पहचाना ही जाता है। अच्छी बातें कर लेने का मतलब यह नहीं है कि आप बहुत अच्छे हैं। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि बुरी बात करने वाला आदमी अच्छा भी हो सकता है लेकिन हमारा मानना है कि हो सकता है कि कोई आदमी अच्छी बात कर रहा हो और आपको वो बुरी लगे। भारत और पाकिस्तान के बारे में पाकिस्तान एक वो पक्ष है जिसके चाल-चलन और चरित्र को सब जानते और पहचानते हैं। दूसरा पक्ष भारत है जो हर बार अच्छी बात करता है परंतु पाकिस्तान को बुरी लगती है। पाकिस्तान में निजाम बदल गए और वो इमरान खान पीएम बन गए जिन्होंने अपने आलराउंड प्रदर्शन के दम पर पाकिस्तान को वर्ल्ड क्रिकेट कप का ताज उस समय दिलाया था जब वह इससे संन्यास ले चुके थे और तब के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक के अनुरोध के बाद क्रिकेट में दुबारा से उतरे थे। यहां राजनीति में भी ऐसा हुआ। इस बार उनके लिए आर्मी चीफ जनरल बाजवा ने खेल किया।
महान सिख गुरु गुरुनानक देव जी के गुरुद्वारे के लिए कॉरिडोर निर्माण को लेकर देश और विदेश के करोड़ों सिख भाई-बहन इंतजार कर रहे थे। करतारपुर कॉरिडोर को लेकर पहले भारत ने अपने क्षेत्र में इसकी नींव रखी तो उसके बाद पाकिस्तान ने भी यही काम अपने इलाके में दोहरा दिया और दो दिन पहले इमरान साहब ने भारत के साथ दोस्ती को लेकर लंबी-चौड़ी लप्पेबाजी शुरू कर दी। जो शख्स दुश्मनी निभाते रहे हों, आतंकवाद फैलाते रहे हों, इंसानियत का खून बहाते रहे हों वे लोग दोस्ती की बात करें, यह बात कुछ हजम नहीं होती। इतना ही नहीं इसी इमरान खान ने इतने पवित्र मौके पर कश्मीर को लेकर जिस तरह से गेेंदबाजी की वह नो बाल ही कही जाएगी और जो बाकी गेंदें थीं वो भी वाइड ही थीं। सच बात तो यह है कि इमरान खान इस बार खुद बेनकाब हो गए। जनरल जिया-उल-हक से लेकर परवेश मुशर्रफ और उनके बाद नवाज शरीफ हों या इमरान खान, सबके सब अपनी करतूतों की वजह से बेनकाब होते रहे हैं। इसीलिए इमरान का यह कहना कि वह भारत से मजबूत दोस्ती चाहते हैं, इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन उनके दिल में क्या छिपा है वह इमरान ही जानते हैं, क्योंकि इस मौके पर भी उन्होंने कश्मीर का रोना भी रो दिया और कह दिया कि कश्मीर अगर एक समस्या है तो इसका हल मिलकर ढूंढा जाना चाहिए।
गेंद उन्होंने भारत के पक्ष में यह कहते हुए फैंकी िक भारत एक कदम आगे बढ़ेगा तो पाकिस्तान दो कदम बढ़ाएगा। बहुत कुछ करतारपुर कॉरिडोर को लेकर घटता रहा जिसमें पंजाब के बड़बोले मंत्री नवजोत सिद्धू की भूमिका भी रही है तो वहीं भारत की ओर से प्रतिनिधित्व कर रहे दोनों केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी और हरसिमरत कौर ने मर्यादाओं का पूरा पालन किया। अधिकृत रूप से सिद्धू भारतीय पक्ष का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे थे बल्कि आतंकवादी सरगना हाफिज सईद के सहयोगी और खालिस्तान समर्थक गोपाल चावला के साथ फोटो खिंचवाने का काम कर रहे थे। इस मामले में भारत की ओर से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साफ कह दिया था कि करतारपुर कॉरिडोर एक अलग मामला है लेकिन जब तक पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियां बंद नहीं करता तब तक उससे बातचीत का सवाल ही नहीं पैदा होता। इमरान ने एक बाउंसर भी फैंका था कि सार्क सम्मेलन के लिए पीएम मोदी को आमंत्रित किया जाएगा परंतु श्रीमती सुषमा स्वराज ने इस पर छक्का जड़ते हुए साफ कर दिया कि पीएम इस समिट में नहीं जाएंगे। वैसे यह सच है और जगजाहिर है कि पाकिस्तान का खेल न सिर्फ बॉर्डर पार से अकारण फायरिंग का है बल्कि कश्मीर में पत्थरबाजों का सबसे बड़ा संरक्षक भी खुद पाकिस्तान ही है।
बहरहाल अगर बात होनी चाहिए और उसका कोई आधार ही न हो तो हम समझते हैं कि उस बातचीत का कोई फायदा नहीं। कहने वाले कह रहे हैं कि पाकिस्तान कॉरिडोर की नींव रखे जाने के मामले में इतनी जल्दी कैसे मान गया, इसके पीछे भी राज है। दरअसल, ब्रिटेन और कनाडा में अनेक सिख संगठनों के बीच खालिस्तानी सुर उभर रहे थे। इसे ताड़ते हुए और आग में घी डालने के लिए पाकिस्तान ने कॉरिडोर की नींव रख दी। खालिस्तान समर्थक गोपाल चावला का वहां खड़े होना और उसे पाकिस्तान की ओर से सबसे ज्यादा महत्व दिया जाना इमरान खान की दोस्ती भरी बातों की सारी पोल खोल रहा है। हमारा मानना है कि भारत-पाकिस्तान की जनता जानती है और रिश्ते सुधारने का वक्त अभी है ही नहीं, क्योंकि जब दोनों देशाें की जनता के बीच कोई संपर्क ही नहीं है और पाकिस्तान की तरफ से आए दिन अकारण गोलियां चलाई जाती हों और घाटी में सेना पर पत्थर फैंके जाते हों तो बताओ कॉरिडोर से जोड़कर क्या ये सब बंद हो जाएगा? अगर पाकिस्तान यह गारंटी देता है तो हम कह सकते हैं कि कॉरिडोर बनने के बाद रिश्ते सुधरने की उम्मीद बन सकती है। हां, यह एक महत्वपूर्ण कदम जरूर है लेकिन इसकी आड़ में पाकिस्तान जो कुछ कर रहा है उसे आराम से समझा जा सकता है।
भारत ने अाक्रामक तेवर के साथ पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया है कि न सिर्फ पंजाब के श्रद्धालु बल्कि दुनियाभर के श्रद्धालु करतारपुर कॉरिडोर को एक उम्मीद के रूप में देख रहे हैं लेकिन साथ ही इमरान खान से सवाल पूछा जा रहा है कि यहां कश्मीर पर उन्हें बयान देने की क्या जरूरत थी? अगर द्विपक्षीय वार्ता शुरू होती है तो यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वह आतंकवाद खात्मे की गारंटी दे तो उसके एक कदम बढ़ने और भारत के दो कदम बढ़ने की बात संभव है। इसका हर किसी को इंतजार है।