कई वर्षों तक अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलना बड़ी बात है। भारत में क्रिकेटर मैदान के अंदर और बाहर जिस तरह के दबाव में रहते हैं, उसे देखते हुए इतना लम्बे समय तक खेलना आसान नहीं होता। इसलिए क्रिकेट में मेहनत की जरूरत होती है। अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने वाले महान खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धोनी यानी माही का क्रिकेट के लिए प्यार, जुनून और अनुशासन की वजह से वह इतने साल क्रिकेट खेल सके। किसी भी खिलाड़ी का करियर उसकी मानसिक मजबूती पर निर्भर होता है। महेन्द्र सिंह धोनी मानसिक रूप से अत्यंत मजबूत और आत्मविश्वास से लवरेज दिखाई दिए। आज हम उनकी मानसिक मजबूती, क्रिकेट के प्रति उनके जुनून और जज्बे को सलाम करते हैं। क्रिकेट के प्रति मेरा लगाव स्वाभाविक रहा है क्योंकि मेरे पिता अश्विनी कुमार के हाथों ने कलम थापने से पहले बल्ले और गेंद को थाम रखा था। वह अक्सर बतौर क्रिकेटर अपने अनुभव हमसे सांझा करते रहते थे। वह अक्सर कहा करते थे कि महान कप्तान, महान खिलाड़ी, महान विकेटकीपर कोई भी हो लेकिन हर खिलाड़ी का वक्त होता है। महेन्द्र सिंह धोनी के अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने से डेढ़ घंटे बाद क्रिकेट करियर में उनके गहरे मित्र रहे क्रिकेटर सुरेश रैना ने भी क्रिकेट से रिटायर होने की घोषणा कर दी। निश्चित रूप से दोनों के लिए यह भावुक क्षण होंगे। इस बात को स्वीकार करना ही होगा कि हर खिलाड़ी का अपना एक दौर होता है। उनके जीवन में कई शानदार पल आए होंगे। उनमें से एक था 2007 में दक्षिण अफ्रीका में जीता गया पहला आईसीसी टी-20 विश्व कप और दूसरा साल 2011 में जीता गया वर्ल्ड कप। जब टीम टी-20 विश्व कप जीतकर मुम्बई पहुंची थी तो एयरपोर्ट से लेकर कई किलोमीटर तक सड़क के दोनों किनारों पर भीड़ जमा थी। यह दृश्य हम सबको याद है। दूसरा पल आईसीसी विश्व कप के फाइनल के दृश्य भी कभी भुलाए नहीं जा सकते। धोनी के नाम कई रिकार्ड हैं। उनकी कप्तानी में ही भारतीय क्रिकेट टीम पहली बार टैस्ट क्रिकेट में भी आईसीसी की नम्बर एक रैंकिंग वाली टीम बनी।
कोई उनमें महान विवियन रिचर्ड का अक्स देखता तो कोई उन्हें दिग्गज आस्ट्रेलियाई विकेट कीपर बल्लेबाज गिलक्रिस्ट से एक कदम आगे विलक्षण क्रिकेटर करार देता। क्रिकेट प्रेमियों और क्रिकेट पंडितों के दिलों में उन्होंने इतनी गहरी पैठ बना ली थी कि धोनी ने कम समय में ही लोकप्रियता का वह पायदान लांघ दिया था जो कई क्रिकेटरों को समूचे करियर में नसीब नहीं होता। लगातार चमकते सफर के बाद धोनी सचिन तेंदुलकर, वीरेन्द्र सहवाग और राहुल द्रविड़ सरीखे धुरंधरों की पांत में खड़े दिखाई देने लगे थे। जीवटता के धनी उस मंच पर खड़े हो गए जहां उन्हें भारतीय क्रिकेट का सचिन तेंदुलकर का क्लोन करार दिया गया। ब्रिटिश मीडिया ने धोनी को सचिन तेंदुलकर का उत्तराधिकारी करार दे दिया था। अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी और विकेट के पीछे चीते सी फुर्ती के चलते सिर्फ दो वर्ष के करियर में धोनी ने न केवल सुपर स्टार की छवि अख्तियार कर ली बल्कि वह टीम इंडिया के नए अवतार के रूप में स्थापित हो चुके थे। किसी भी नम्बर पर खिलाइये, गजब का आत्मविश्वास और गेंदबाजों पर हावी होने की भूख ने इसे आईसीसी क्रिकेट में सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाया तो भारतीय क्रिकेट का यह स्टार सफलता की नई पटकथा लिख चुका था। धोनी की सफलता का सोपान किस तूफानी अंदाज में स्फुटित हुआ, वह रिकार्ड के आइने में देखने से स्पष्ट हो जाता है। प्रतिद्वंद्वी टीमों के रनों के पहाड़ को इस जोशीले बल्लेबाज ने कई बार अपने चौकों और छक्कों की बरसात में डुबोकर बेमानी कर दिया। मैच की अंतिम गेंद पर छक्का लगाकर भारत को विजय दिलाकर धोनी ने भारत को मदमस्त कर दिया था। दरअसल माही के खेल में सबसे बड़ी विशेषता उनकी बल्लेबाजी में गजब की आक्रामकता आैर वक्त की नजाकत के साथ खुद को पिच के लिहाज से ढाल लेना है। जब भी भारतीय टीम को स्लॉग ओवर में धुआंधार बैटिंग की जरूरत होती थी तो माही को बार-बार आजमाया गया। उसने एक बार नहीं दर्जनों बार दिखाया कि टीम इंडिया के खेवनहार की भूमिका में खरा उतरना उनका जुनून था। उन्होंने दिसम्बर 2004 में भारतीय टीम के लिए खेलना शुरू किया था तब से वह लगातार भारतीय टीम का हिस्सा बने रहे। इनकी सफलता का कारण इनका टैस्ट और वनडे दोनों में अच्छा प्रदर्शन करना रहा। लोगों के बीच इनकी पहचान सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज और विकेटकीपर के अतिरिक्त इनके लम्बे कंधे तक बालों के लिए भी थी।
कद्दावर धोनी को नामचीन कम्पनियों के ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर भी काफी काम मिला। ये स्टार कम्पनियों के लिए एक ऐसा बिकाऊ चेहरा बन गया है जो एक अलग अहमियत रखता है। धोनी में ऐसा क्या था जो उन्हें दुनिया के दूसरे खिलाड़ियों और कप्तानों से अलग दिखाता और कैसे वह भारत के सबसे कामयाब कप्तान साबित हुए। धोनी सबसे अलग और निडर कप्तान थे। वह वाकई जीत के लिए खेलते थे, हारने का डर समाप्त करने का ट्रेंड उन्होंने ही शुरू किया। धोनी क्रिकेट की हर फार्मेट में कामयाब रहे। क्रिकेट के क्लब संस्करण में भी वह पूरी तरह सफल रहे। उन्होंने कप्तानी में नए प्रयोग भी किए। नए खिलाड़ियों को पूरा मौका देते थे और उन्हें हर तरह से सहयोग दिया। दरअसल धोनी ने भारतीय क्रिकेट के उस मिथक को तोड़ा, जिसमें माना जाता रहा था कि बड़े शहरों और अभिजात्य वर्ग से होकर टीम इंडिया का रास्ता तय किया जा सकता है। धोनी रांची के एक बेहद सामान्य परिवार से संबंध रखते थे। क्रिकेट स्टार होने के बावजूद उन्होंने अपना देसी लाइफ स्टाइल नहीं छोड़ा। उनका बेहद शांत स्वभाव, कभी तनाव में नहीं आना और न ही कभी उत्तेजित होना खास गुण रहे। धोनी के संन्यास के साथ ही क्रिकेट के एक युग का इतिहास समाप्त हो गया, उस पर यह विराम लग चुका है। उन्होंने भारत को चैम्पियन बनाया और खुद भी चैम्पियन बने। धोनी हमेशा हमारी यादों में बने रहेंगे। अलविदा माही अलविदा!
आदित्य नारायण चोपड़ा
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