शेख हसीना की सत्ता परिवर्तन के बाद पिछले काफी दिनों से बंगलादेशी हिंदुओं के साथ जो बर्बरता और अमानवीय व्यवहार दुनिया देख रही है, उस पर न तो 'अवार्ड वापसी गैंग, न ही 'लुटियंस गैंग', न ही 'मोमबत्ती गैंग' की ओर से सड़क पर आने और जलसे-जुलूस की तो बात ही छोड़िए, इनकी तो जुबान ही नहीं खुली है। बड़े खेद का विषय है, इसके साथ ही साथ, इंडी गठबंधन, विपक्ष और वामपंथ को भी सांप सूंघ गया है। बंगलादेशी हिंदू भी इन्सान हैं और अपने देश की उन्नति में उनका बराबर का हाथ है। जिस प्रकार का हृदय विदारक दृश्य बलात्कारियों द्वारा हिंदू युवतियों, घरों और मंदिरों को आग लगाने और बर्बाद करने के समाचार और वीडियो आ रहे हैं, उन से भारत में बड़ी चिंता है और यहां की संसद में भी इस मुद्दे को उठाया गया था।
जिस प्रकार से कांग्रेस नेता, सलमान खुर्शीद ने भारत में एक समाज को भड़काने की धमकी दी थी कि जो बंगलादेश में हो रहा है, वह भारत में भी हो सकता है, एक अराजकतावादी और देशद्रोह की भावना से दूषित है और जिसके लिए उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा-कश्मीर में सब कुछ सामान्य दिख सकता है। यहां सब कुछ सामान्य लग सकता है। हम जीत का जश्न मना रहे होंगे, हालांकि निश्चित रूप से सब कुछ सही नहीं है। इस पर अपना रोष प्रकट करते हुए उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि कुछ लोग भारत की तुलना बंगलादेश से कर रहे हैं, जो कि अत्यंत चिंताजनक पहलू है।
भारत जैसे शांतिप्रिय देश में, इस प्रकार की भड़कीली बयानबाजी का कोई स्थान नहीं है। इससे पूर्व भी वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी के िववादास्पद बयानों पर बतौर बंगाल राज्यपाल अपना रोष प्रकट करते रहे हैं।
भाजपा जो कि सत्तारूढ़ है, उसने सलमान के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई और पार्टी प्रवक्ता, संबित पात्रा ने इस बयान को देश विरोधी बताते हुए कहा कि जब हम पड़ोसी देशों में ऐसे हालत देख रहे हैं, मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस चाहती है कि भारत में भी ऐसी ही स्थिति हो। खुर्शीद ने एक कार्यक्रम में कहा था कि ऊपरी तौर पर भले ही सब कुछ सामान्य लगे लेकिन बंगलादेश में जो हो रहा है, वह भारत में भी हो सकता है। वास्तव में इस प्रकार के बयानों से मुसलमानों की साख पर भी बट्टा लगता है और सरकार और संगठन सोचते हैं कि सभी मुस्लिम इस प्रकार की विचारधारा रखते हैं, जो कि झूठ है क्योंकि अधिकतर भारतीय मुस्लिम राष्ट्रभक्त और इस सरकार में आस्था रखने वाला है।
सलमान खुर्शीद के बयान का अर्थ यह हुआ कि वह या तो छात्रों या सभी भारत वासियों को इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि वे भी सड़कों पर आ कर अव्यवस्था फैलाएं, तोड़-फोड़ करें आदि। एक ऐसे व्यक्ति को जो सांसद व मंत्री रह चुका है, असदुद्दीन ओवैसी की तरह कानून की पढ़ाई विदेश से कर चुका है, बार-एट-लॉ हा, इस प्रकार की भड़काने वाली भाषा शोभा नहीं देती। ऐसी भाषा शायद उन्होंने इस लिए भी बोली कि वह इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के अध्यक्ष होने का चुनाव भी लड़ रहे हैं और उन्हें इस प्रकार के ग़ैर जिम्मेदाराना बयान से शायद गद्दी हासिल हो जाए। परिपक्व विचारधारा वाले तो उन्हें वोट नहीं देंगे मगर उन्हीं की सोच पर चलने वाले अवश्य उन्हें वोट दे सकते हैं।
इंडी के कई नेता भी वही विचारधारा रखते हैं, मगर भारत के कानून के साथ समस्या यह है कि यहां, अभिव्यक्ति की आज़ादी के अंतर्गत जिस प्रकार के देश विरोधी जहर को निगला जाता है और देश को जलाने वाली आग को झेला जाता हो, काफी लोग इसका अनुचित लाभ उठा रहे हैं और आए दिन कभी सरकार पर तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले करते रहते हैं। कुछ हद तक मणि शंकर अय्यर ने भी इसी बात को दोहराया। वैसे वे इस प्रकार की भाषा से आए दिन शांत वातावरण को गरमाते रहते हैं।
इन तमाम बातों को लेकर कुछ संगठन कह रहे हैं कि 'अवार्ड वापसी गैंग', 'लुटियंस गैंग', 'मोमबत्ती गैंग', विपक्षी आदि गाज़ा को न्याय दिलाने की बात तो कर रहे हैं, मगर बंगलादेश पर चुप्पी बनाए हुए हैं। वही लोग और संगठन जो बंगलादेश के हिंदुओं को बचाने की बात कर रहे हैं, और सही कर रहे हैं, गाज़ा पर चुप्पी सादे हुए हैं यह भी पूरी तरह से अनुचित है, इस प्रकार की मानसिकता रखने वालों को भी किसी भी दृष्टिकोण से ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। सच्चाई तो यह है कि मानवता पर जहां-जहां ज़ुल्म ढाया जाता है उस पर राजनीति न करते हुए मानवता के आधार पर पर उसका खुलकर विरोध हर प्रकार से होना चाहिए। गाज़ा और बंगलादेश में हो रहे अत्याचार पर पूरे विश्व को आवाज उठानी चाहिए और इसे तुरंत रोकने का प्रयत्न करना चाहिए।
जिस प्रकार से बंगलादेश में हिंदुओं पर ज़ुल्म ढाया जा रहा है, भारत समेत सभी देश चुप हैं। हमने तो भारत में उन लाखों मुस्लिम रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण दे रखी है, जिनको कई वर्ष पूर्व म्यांमार की सेना ने खदेड़ दिया था। सही मायनों में भारत एक वेलफ़ेयर स्टेट है, क्योंकि भारत तो तिब्बत, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान आदि से आए सभी शरणार्थियों को रहने की जगह देता है, जबकि रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को सिवाए बंगलादेश के किसी भी 56 में से एक मुस्लिम देश ने भी शरण नहीं दी, क्योंकि इनमें से एक भी वेलफ़ेयर स्टेट नहीं है। मानवता पर जहां भी अत्याचार होता है, वहां हमें धर्म और राजनीति से ऊपर उठ कर लूटे-पिटे बर्बाद हाल लोगों का ध्यान करना चाहिए।
इन शरणार्थियों को भी इस बात को गांठ में बांध कर रख लेना चाहिए कि जिस देश ने उन्हें शरण दी है, वह उनके लिए भगवान समान है और वहां पर उस देश के विरोध में गतिविधियों से हर हालत में बचना चाहिए, जैसा कि कभी-कभी फ्रांस, बेल्जियम, ब्रिटेन, जर्मनी आदि में देखने में आता है। राष्ट्रभक्त भारतीय मुसलमानों को समय-समय पर इस प्रकार राजनीतिक लोग भड़काने की कोशिश करते हैं मगर वे इस्लामिक हदीस, "हुब्बुल वतनी, निस्फुल ईमान" में विश्वास रखते हैं कि आधा ईमान ही वतन से वफ़ादारी है। सलमान साहब और ओवैसी जैसे नेता आते-जाते रहेंगे, मगर मुस्लिम अपने अल्लाह, हज़रत मुहम्मद (सल्लल.),संविधान और हदीस को ही मानेंगे और दिल से भारत के वफादार हैं और रहेंगे। जयहिन्द
– फ़िरोज़ बख्त अहमद