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पंजाब प्रयोगशाला नहीं!

पंजाब की सियासत में तूफान मचा हुआ है। पंजाब जैसे पाकिस्तान की सीमा से लगे सीमांत राज्य में न तो राजनीतिक उठापटक बर्दाश्त की जा सकती है न ही इस संजीदा राज्य को राजनीतिक प्रयोगशाला बनाया जा सकता है।

पंजाब की सियासत में तूफान मचा हुआ है। पंजाब जैसे पाकिस्तान की सीमा से लगे सीमांत राज्य में न तो राजनीतिक उठापटक बर्दाश्त की जा सकती है न ही इस संजीदा राज्य को राजनीतिक प्रयोगशाला बनाया जा सकता है। पंजाब का इतिहास बताता है कि यहां हर समय राजनीतिक स्थिरता का माहौल रहा  है, चाहे सत्ताधारी राजनीतिक दल बदलते रहे हों परन्तु शासकीय स्तर पर​ स्थिरता का माहौल कमोबेश बना रहा है। 1967 में जब भारत के 9 राज्यों में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था तो पहली बार इस राज्य को अकाली दल और जनसंघ ने गठजोड़  करके सरकार बनाई थी, जो लगभग एक वर्ष भी नहीं चल पाई थी और लक्ष्मण सिंह गिल ने अकाली दल से विद्रोह करके इस सांझा सरकार को गिरा दिया था। इसके बाद लक्ष्मण सिंह गिल की सरकार भी कुछ महीने ही चली। आतंकवाद के काले दिनों में पंजाब में राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया। सिद्धार्थ शंकर रे से लेकर अर्जुन सिंह तक पंजाब के राज्यपाल भी रहे। बेअंत सिंह सरकार के आने पर आतंकवाद पर काबू पाया गया और धीरे-धीरे राज्य में जनजीवन सामान्य हो गया। उसके बाद शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस की सरकारें बारी-बारी से सत्ता में आती रहीं। पंजाब में राजनीतिक स्थिरता का ही माहौल रहा। 
वर्तमान में राज्य विधानसभा में कांग्रेस का पूर्ण बहुमत होने के बावजूद जिस प्रकार राजनीतिक रूप से अस्थिरता का माहौल है वह चिंता का विषय है और इसका मुख्य कारण कोई और नहीं बल्कि कल तक सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे नवजोत सिंह सिद्धू स्वयं हैं। यह पंजाब की राजनीति का ऐसा अध्याय है जो इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला। इससे यह स्पष्ट होता है कि बदलते दौर की राजनीति निजी स्वार्थों के जाल में पूरी तरह फंस चुकी है,​ जिसकी वजह से कांग्रेस ने अपने पुराने वफादार कर्मठ नेता कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को गंवा दिया और राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी के लिए मुश्किलों का अम्बार खड़ा कर दिया। नवजोत सिंह सिद्धू की मुख्यमंत्री चन्नी से मुलाकात हो गई है। अब सिद्धू के स्वर काफी धीमे नजर आए। अब सुलह सफाई का मार्ग ढूंढ भी लिया जाए लेकिन कांग्रेस को डैमेज हो चुका है।
पंजाब की सियासत में इस समय कांग्रेस में ही तीन गुट बन गए हैं। एक नवजोत सिंह सिद्धू, दूसरा चरणजीत चन्नी का ग्रुप और तीसरा कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के समर्थकों का ग्रुप। कांग्रेस में पूरी तरह से अराजकता का माहौल है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने दो दिन दिल्ली में रहकर अटकलबाजियों को पूरी हवा दे दी है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने गृहमंत्री अमित शाह से लम्बी मुलाकात की। इसके बाद से ही पंजाब की सियासत में चक्रवात आ गया। यद्यपि बैठक के बाद कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने यही जानकारी दी कि उन्होंने गृहमंत्री से किसान आंदोलन को लेकर चर्चा की और उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करके संकट को हल करने का आग्रह किया। इसके साथ ही कैप्टन ने अपने सभी राजनीतिक विकल्प खुले रखे। राजनीति सम्भावनाओं का खेल होती है। इस तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं की  कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भाजपा में शामिल हो सकते हैं या फिर भाजपा के करीब हो सकते हैं। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मिले। इस बैठक में सीमांत राज्य पंजाब की सुरक्षा को लेकर भी चर्चा हुई। हालांकि कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ने साफ किया कि कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें अपमानित किया। अब अपमान सहन नहीं होता। उन्होंने कहा कि मैं कांग्रेस छोड़ रहा हूं। इसके साथ ही उन्होंने भाजपा सहित किसी भी पार्टी में शामिल होने से इंकार किया। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भाजपा के साथ जाते हैं तो उससे भाजपा को अगले साल होने वाले चुनाव में आसानी होगी। 
अभी किसान आंदोलन के कारण भाजपा और उसके नेताओं के किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक क्षेत्रों में इस बात की चर्चा है कि हो सकता है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह राज्य स्तर पर अपनी पार्टी की स्थापना करें और आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा से वह गठबंधन करें। पंजाब की उलझी सियासत ने कांग्रेस के जी-23 के नेताओं ने भी सवाल खड़े कर दिए। भविष्य में पंजाब की सियासत क्या करवट लेती है इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन कांग्रेस को जितना नुक्सान नवजोत सिंह सिद्धू ने पहुंचाया है उसकी भरपाई नहीं हो सकती। क्रिकेट हो या राजनीति बगावत करना ही नवजोत सिंह सिद्धू का इतिहास रहा है। पंजाब देश पर जान कुर्बान करने वाले लोगों का राज्य रहा है। इनकी राजनीति राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में शुरू से ही महत्वपूर्ण रही है। पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता राज्य के लिए जोखिमपूर्ण है। पाकिस्तान पंजाब को 
राजनीतिक अस्थिरता के दौर में अपने मनसूबे पूरे करने के लिए साजिशो रच सकता है। पंजाब के सीमांत क्षेत्रों में उसके ड्राेन हथियार और ड्रग्स गिराते रहते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से पंजाब बहुत ही संवेदनशील हो चुका है। पंजाब प्रयोगशाला नहीं है और न ही इसे बनाया जा सकता है, जो ऐसा कर रहे हैं उनका फैसला जनता करेगी।

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