केन्द्र में पुनः सत्तारूढ़ होने के बाद मोदी सरकार की 100 दिन की उपलब्धियों के बारे में प्रमुख मन्त्रियों द्वारा जो अभियान चलाया जा रहा है उसे देशवासी सुखद अनुभव के रूप में इसलिए देख रहे हैं क्योंकि 2019 के चुनावों में विजय का वरण करने के बाद प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने उन सभी वादों को एक-एक करके पूरा कर रहे हैं जो उन्होंने चुनावी प्रचार के दौरान किये थे। हकीकत है कि यह पूरा चुनाव श्री मोदी के व्यक्तित्व के चारों तरफ ही लड़ा गया था अतः आम जनता को उनसे ही अपेक्षाएं होनी थीं। इस मोर्चे पर श्री मोदी खरा सोना साबित हो रहे हैं और आम जनजीवन को अधिकाधिक सरल व सुगम बनाने के प्रयास कर रहे हैं।
सामान्यजन के दैनिक जीवन में सरकार के दखल को कम से कम बनाते हुए उन्होंने सबसे बड़ा काम सरकार की हर क्षेत्र में मुस्तैद चुस्ती की उपस्थिति से किया है। बेशक यह कार्य सौ दिनों के भीतर नहीं हुआ है बल्कि पिछले पांच साल के भीतर हुआ है जिससे सामान्य विशेषकर गरीब वर्ग प्रभावित हुआ है और उसके सरकारी काम अब लगातार सरल होते जा रहे हैं। हालांकि सभी क्षेत्रों में रामराज्य आ गया हो ऐसा नहीं कहा जा सकता फिर भी मोटे तौर पर दैनिक जीवन में सुगमता का आभास होने लगा है और सरकार व आम आदमी के बीच दलाली खाने वालों की तादाद कम होने लगी है।
इस सुगमता का असर हमें केन्द्र सरकार की स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) से लेकर आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना तक में दिखाई पड़ता है। बेशक जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त किया जाना बहुत बड़ा ऐतिहासिक फैसला है और इसके प्रभाव से समूचे भारत में कहीं न कहीं भाजपा की लोकप्रियता में वृद्धि भी हुई है परन्तु एक काम मोदी सरकार ने कहीं और बड़ा किया है जो देश की एकता और अखंडता से गहरे तक जुड़ा हुआ है।
यह कार्य उत्तर-पूर्व भारत के आठ राज्यों का राष्ट्रीय एकात्मता की धारा में संवेग के साथ समाहित होना और समन्वित रूप से भारतीय मानचित्र में प्रदर्शित होना है। उत्तर-पूर्व राज्य भारत का हिस्सा होते हुए भी भारत में अजनबी की तरह देखे गये हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यन्त संजीदा इन सभी राज्यों का भारत से आन्तरिक जुड़ाव राष्ट्रीयता के समवेत स्वरों के लिए अत्यन्त आवश्यक था परन्तु इस तरफ पूर्व की सरकारों की नीति भौगोलिक अवरोधों की छाया से थरथराती हुई चली जिसे श्री मोदी ने बहुत सावधानी के साथ एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए इस प्रकार भेदा कि राजनैतिक बदलाव इन राज्यों की स्थिति में मूलभूत बदलाव का परिचायक बन सके।
2016 में यह रणनीति बनाने में भाजपा के अध्यक्ष श्री अमित शाह ने जो फुर्ती दिखाई और दल-बदल से सरकारें तक गठित कराने का जो आरोप माथे पर लेकर उत्तर-पूर्वी राज्यों को भाजपा की रणनीति के केन्द्र में रखा उसके असर से इन सभी राज्यों के मिजाज में अभूतपूर्व परिवर्तन आना शुरू हुआ और हर राज्य के चुनावों में पारंपरिक रूप से शासन करने वाली पार्टी कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा। भाजपानीत एनडीए के साये में उत्तर-पूर्वी राज्यों का प्रथम ‘नार्थ ईस्ट डैमोक्रेटिक एलायंस’ 2016 में बनाकर जिस तरह इस पूरे क्षेत्र में कांग्रेस मुक्त उत्तर-पूर्व को साकार किया गया उसमें इन्हीं राज्यों के लोगों का सबसे बड़ा योगदान रहा।
पिछले लोकसभा चुनावों में भी इन राज्यों की कुल 25 सीटों में से 19 सीटें इसी एलायंस के कब्जे में गईं। जाहिर है यह कार्य तभी संभव हो पाया जबकि कांग्रेस की विचारधारा के विपरीत भाजपा की प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा से उत्तर-पूर्व के लोग प्रभावित हुए और उन्हें लगा कि वैकल्पिक विचारधारा उन्हें भारत में प्रमुखता प्रदान करती है और उनकी विगत से चली आ रही समस्याओं का निराकरण प्रस्तुत करती है। अतः गृहमंत्री श्री अमित शाह का एलायंस की बैठक में इस दौरान उत्तर-पूर्व राज्यों के दौरे पर जाना राजनैतिक घटना नहीं बल्कि राष्ट्रीय घटना कहा जाएगा क्योंकि भारतीय संविधान की धारा 371 को लेकर विपक्षी पार्टियों द्वारा जो कुछ भी अभी तक कहा गया है उससे इन सभी राज्यों की आदिवासी मूलक सांस्कृतिक जमीन में कुलबुलाहट होने का अन्देशा था।
अतः उत्तर-पूर्व की धरती पर खड़े होकर ही गृहमंत्री शाह का यह कहना कि जम्मू-कश्मीर की धारा 370 और उत्तर पूर्वी राज्यों की धारा 371 में जो मूलभूत अन्तर है वह इन राज्यों की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीयता के धरातल पर खड़ा करती है। धारा 370 को एक अस्थायी प्रावधान के रूप में संविधान में जोड़ा गया था जबकि धारा 371 को विशेष राज्यों के लोगों को अधिकार सम्पन्न बनाने की गरज से संविधान का अंग बनाया गया है। पिछले पांच सालों के दौरान उत्तर-पूर्व के सिक्किम समेत सभी आठ राज्य भारतीय रेलवे के मानचित्र पर आ चुके हैं।
इस कार्य को करने में हमने सत्तर साल से ज्यादा का वक्त लिया जबकि भारतीय रेलवे की एक पहचान पूरे भारत को भौगोलिक रूप से जोड़ने की ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी जोड़ने की है। इन राज्यों के जनजाति मूलक स्वरूप की परंपराएं कभी भी राष्ट्रभक्ति या देश प्रेम के विरुद्ध खड़ी नहीं हुई हैं बल्कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने तिरंगा सबसे पहले इसी की धरती पर फहराया था। ये राज्य तो भारतीय के लिए किसी तीर्थस्थल से कम स्थान नहीं रखते हैं। प्रकृति का खजाना अपने आगोश में समेटे ये राज्य भारत के माथे की शोभा से कम नहीं कहे जा सकते। अब समय आ गया है कि हम इस क्षेत्र के वीरगाथा काल का भी अध्ययन करें और भारत को भीतर से पहचानें।