इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवन में हमारे सामने अनेक चुनौतियां हैं लेकिन फिर भी हम परोपकार को अपने जीवन का ध्येय मानकर जीते हैं और इसी का नाम आदर्श जीवन है। भगवान महावीर ने पूरी दुनिया के समक्ष जो अहिंसा का सबसे बड़ा संदेश दिया है उसका सम्मान भी सारी दुनिया करती है। इससे यह सिद्ध होता है कि दुनिया को प्रेम प्यार से, सांप्रदायिक सद्भाव से और मिलजुलकर आगे बढ़ने से ही जीवन में सुख आ सकता है। जीओ और जीने दो यह सिद्धांत भगवान महावीर ने स्थापित किया था। इसी सिद्धांथ पर दुनिया चल रही है और इसे ही समर्पित है महावीर जयंती जो 4 अप्रैल को पूरे देश में मनाई जाती है। भगवान महावीर भले ही जैन समाज के 24वें तीर्थकर हो सकते हैं परंतु उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए परोपकार का जो उदाहरण दिया उसे पूरी दुनिया आत्मसात कर रही है। समाज के कल्याण के लिए भगवान महावीर ने महज 30 वर्ष की आयु में ही संन्यास ले लिया था। चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को भगवान महावीर जी की जयंती मनाई जाती है और इस वर्ष यह उनका 2621वां जन्म दिवस होगा।
जैन समाज के अगर सिद्धांतों की बात की जाए तो मैं समझती हूं कि ये सब जीवन के उन पांच बिंदुओं में से है जिसकी एक-एक इंसान को, एक-एक परिवार को, एक-एक समाज को और एक-एक राष्ट्र के साथ-साथ समूचे विश्व को आत्मसात करने की आवश्यकता है। भगवान महावीर के संदेशों को एक-दूसरे तक पहुंचाने के लिए विशेष रूप से जैन समाज से जुड़े लोग इस दिन शोभायात्राएं निकालते हैं और जिनमें भगवान महावीर के जीवन काे आदर्श झांकियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जैन धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने की पद्धति है। आज समय की जरूरत भी यही है कि हर व्यक्ति जैन समाज की जीवन पद्धति को आत्मसात करे। इनके जीवन के पांच सिद्धांतों को पंचशील सिद्धांतों के रूप में देखा जाता है। आदर्श जीवन के लिए इनका बहुत महत्व है। हालांकि राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक जीवन में भी कोई भी इन सभी सिद्धांतों को अगर अपने जीवन में यदि उतार लें तो दु:ख, क्लेश और अन्य समस्याएं खत्म हो सकती हैं। भगवान महावीर के पंचशील सिद्धांतों में सर्वप्रथम है सत्य। जीवन में हर किसी को सत्य बोलना चाहिए। सत्य बेबाकी से बोलना चाहिए। इससे यह प्रमाणित होता है कि अगर हम जीवन में सच के मार्ग पर चलें तो हमें कोई समस्या नहीं आ सकती। अगर श्रीमद्भगवत गीता की बात करें तो उसमें भी भगवान श्रीकृष्ण ने सत्य और नीति के मार्ग पर चलने के लिए अर्जुन को उपदेश दिया।
इसी कड़ी में दूसरा पंचशील सिद्धांत जो भगवान महावीर ने दिया वह अहिंसा है। हर सूरत में हमें हिंसा से दूर रहना है। पशु-पक्षियों या प्रकृति के किसी भी जीव के प्रति हिंसा तो दूर हिंसा की भावना भी हमारे हृदय में नहीं होनी चाहिए। प्रेम का यह संदेश सचमुच सुखी जीवन का आधार है। तीसरा संदेश भगवान महावीर ने अपरिग्रह का दिया है। अर्थात किसी भी व्यक्ति को किसी भी खास चीज के लिए बहुत ज्यादा लगाव नहीं हाेना चाहिए अर्थात हमें त्यागशील होना चाहिए। जीवन में त्याग से बड़ा कोई बलिदान नहीं। हमारे सामने आज कुर्सी को लेकर लोग अपने-अपने तर्क देकर द्वंद की बात करते हैं लेकिन श्रीरामचरित मानस में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने सिंहासन का त्याग कर वनगमन स्वीकार किया था। इसी तरह ब्रह्मचर्य अर्थात व्यक्ति को विलाशता से दूर रहकर ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। यह अपने आप में एक संदेश है कि हमें अपने साथी के साथ वफादार रहना चाहिए। भगवान बजरंगबली हनुमान जी पूर्ण ब्रह्मचर्य रहे है। अंत में जिस क्षमा का भगवान महावीर ने उल्लेख किया है यह नाम छोटा हो सकता है लेकिन इसका महत्व बहुत बड़ा है। कहा भी गया है क्षमा वीरस्य भूषणम: अर्थात जो लोग क्षमा करते हैं वे वीर होते हैं या यह भी कह सकते हैं कि बहादुर लोगों का सबसे बड़ा गहना क्षमा है। तो क्षमा का जीवन में महत्व समय-समय पर सिद्ध होता रहता है। आज दुनिया को क्षमा के मार्ग पर चलना चाहिए।
भगवान महावीर की पूजा लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं और सब जानते हैं कि किस प्रकार भगवान महावीर ने कठोर तप करने के बाद अपनी इंद्रियों पर विजय पा ली थी। अपनी इंद्रियों को कंट्रोल करके रखना और दूसरो के भले के लिए तैयार रहना यह एक सच्ची मानवता की भावना है जिसके युगपुरुष भगवान महावीर हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अगर भारत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन के लिए अहिंसा का आह्वान किया था तो यह निश्चित रूप से भगवान महावीर जी के संदेश से प्रेरित हो सकता है। जीवन में प्यार, भाईचारा सांप्रदायिक सद्भाव बहुत जरूरी है। भगवान महावीर से यही संदेश हमें महावीर जयंती पर लेना है। यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो महावीर जयंती सार्थक हो उठेगी।