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उत्तर और दक्षिण कोरिया – ‘दुश्मनी’ खत्म!

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दुनिया की राजनीति में ऐसे मौके गिने-चुने ही आए हैं, जब दो राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात पूरी दुनिया के इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई। ऐसी ही मुलाकातों ने कई बार दुनिया का भविष्य निर्धारित किया है। कई बार मुलाकातों के असफल होने पर युद्ध की घोषणाएं भी हुईं तो कई बार विश्व युद्ध जैसे भयावह युद्धों पर विराम भी लगा। कई बार द्विपक्षीय संघर्ष की नींव भी पड़ी तो कई बार शांति स्थापना को लेकर समझौते भी हुए। दुनिया ने बर्लिन की दीवार भी गिरती देखी है और जर्मनी का मेल-मिलाप भी देखा। अब दुनिया के दो प्रमुख देश उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया नजदीक आ रहे हैं। एक-दूसरे को दुश्मन मानने का सिलसिला तोड़ रहे हैं। इसकी ताजा ​मिसाल दक्षिण कोरिया से मिली है। दक्षिण कोरिया ने अपने द्विवार्षिक रक्षा दस्तावेज से इस बार उत्तर कोरिया के लिए ‘दुश्मन’ शब्द हटा दिया है। पहली बार 1995 में दक्षिण कोरियाई दस्तावेज में उत्तर कोरिया को प्रमुख दुश्मन बताया गया था। यह शब्द कोरियाई देशों के बीच शत्रुता का एक कारण रहा है। उत्तर कोरिया इसे एक उकसावे भरा कदम बताता रहा है। उसका मानना है कि दुश्मन शब्द दर्शाता है कि दक्षिण कोरिया का व्यवहार कितना द्वेषपूर्ण है।

दक्षिण कोरिया ने अन्ततः उत्तर कोरिया के लिए दुश्मन शब्द हटाकर उसकी तरफ दोस्ताना व्यवहार बढ़ाने की पहल कर दी है। यह कदम भी ऐसे समय उठाया गया है जब जल्द ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के बीच परमाणु कार्यक्रम पर अंतर्राष्ट्रीय गतिरोध समाप्त करने के लिए बैठक होने वाली है। उत्तर और दक्षिण कोरिया में आपसी दुश्मनी के कारण शीतयुद्ध से जुड़े हुए हैं। शीतयुद्ध के जमाने से वर्तमान तक कोरियाई प्रायद्वीप की शक्ल के निर्धारण में महाशक्तियों की भूमिका रही है। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की पराजय के बाद जापान के उपनिवेशों की बंदरबांट शुरू हुई तो जापान के कई उपनिवेशों में एक बड़ा उपनिवेश कोरियाई प्रायद्वीप ही था। महाशक्तियों ने उपनिवेशों पर कब्जा करना शुरू किया। कोरिया दो हिस्सों में बंट गया। पहले उत्तर कोरिया में साम्यवादी नेता किम इल सुंग को सोवियत संघ का समर्थन मिला और वहां अगस्त 1948 में सरकार का गठन हुआ आैर दक्षिण कोरिया में साम्यवाद विरोधी नेता सिंगयान री को अमेरिका का समर्थन मिला। इस समय तक शीतयुद्ध की बाकायदा घोषणा हो चुकी थी आैर पूरी दुनिया में साम्यवाद और पूंजीवाद के बीच प्रतिस्पर्धा का दौर कायम हो चुका था। दोनों देश अमेरिका और रूस के लिए अखाड़ा बन गए।

1948 में ही उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में युद्ध शुरू हो गया। 5 वर्ष तक चले युद्ध में 50 लाख लोग मारे गए। 1953 में युद्ध समाप्त हुआ तो समझौते के तहत दोनों देशों के बीच 250 किलोमीटर लम्बी पट्टी का निर्माण किया गया जिसे कोरिया विसैन्यीकृत जोन घोषित किया गया। उत्तर कोरिया को युद्ध के दौरान चीन के माओ शासन ने मदद की। तब से लेकर दोनों देशों में तनातनी होती रही लेकिन दोनों देशों में संवाद की स्थिति उस समय बनी जब पिछले वर्ष फरवरी में दक्षिण कोरिया में शीतकालीन खेलों का आयोजन किया गया और उद्घाटन समारोह में उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन की बहन ने कई अधिकरियों के साथ भाग लिया। फिर 27 अप्रैल 2018 को दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे इन और किम जोंग उन में उसी गांव में मुलाकात हुई जहां कोरिया युद्ध का संघर्षविराम हुआ था। इसी मुलाकात ने डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन की बैठक की जमीन तैयार की। फिर सिंगापुर में ट्रंप और किम की बैठक भी हुई और युद्ध की आशंका टल गई। बैठक से पहले उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध तक का वातावरण बन चुका था।

उत्तर कोरिया लगातार मिसाइल परीक्षण कर रहा था आैर अमेरिका उसे लगातार धमकियां दे रहा था। पिछले कुछ समय से उत्तर कोरिया में आर्थिक संकट और वैश्विक स्थितियों के चलते उसे अमेरिका से बातचीत को विवश होना पड़ा। पहले किम और मून जे इन की मुलाकात पर दुनिया की निगाहें थीं, फिर दुनिया की निगाहें ट्रंप-किम की बैठक पर लगी रहीं। उत्तर कोरिया ने परमाणु कार्यक्रम बन्द करने का वायदा किया तो पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली। उत्तर कोरिया ने खुद को हथियारों की खान बना लिया जबकि दक्षिण कोरिया में प्रगति आसमान पर है। आज दक्षिण कोरिया की कंपनियों को दुनिया का बच्चा-बच्चा जानता है। यह देश दु​नियाभर के लिए सांता क्लॉज बन चुका है जबकि उत्तर कोरिया आर्थिक संकट से जूझ रहा है। आखिर सीमित संसाधनों से दक्षिण कोरिया ने तरक्की कैसे की? उससे हमें भी सीखना होगा। आज की दुनिया में कोई तानाशाह अपने देश का विकास नहीं कर सकता। उत्तर कोरिया के लोगों का जीवन दूभर हो चुका है। अगर उत्तर कोरिया हथियार बनाना छोड़ आर्थिक प्रगति की ओर ध्यान दे तो वहां के लोगों का जीवन सुधर सकता है। फिलहाल उम्मीद जगी है, उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया से सहयोग भी मिल सकता है।

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