अब जबकि 2019 के चुनावों के लिए राजनीतिक पिच तैयार हो चुकी है और पार्टियां दल-बल के साथ मैदान में डट चुकी हैं तो अम्पायर भी सही व्यवस्था के लिए तैयार हो चुके हैं। इस दृष्टिकोण से सीईसी सुनील अरोड़ा की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। चुनाव आयोग ने पार्टियों और प्रत्याशियों पर शिकंजा कसते हुए कड़ी व्यवस्था को लागू करने के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं। उन्होंने जो व्यवस्थाएं लागू की हैं उसके तहत साफ कहा है कि मतदाताओं को लोकतंत्र में अपनी भागीदारी निभानी ही होगी। उन्होंने पोलिंग की तारीखों को लोकतंत्र उत्सव का नाम दिया है। लोगों को ज्यादा से ज्यादा पोलिंग के लिए प्रेरित करने को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया है। रेडियो, टीवी पर बाकायदा वोटिंग के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। मतदान वाले दिन लोग कहीं अपने घर पर पिकनिक या छुट्टी न मनाएं, इसके लिए बराबर ठोस व्यवस्था की गई है।
इतना ही नहीं निर्वाचन आयोग ने सभी राज्य निर्वाचन कार्यालयों को लोकसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के नामांकन पत्र दाखिल होने के 24 घंटे के भीतर उनके हलफनामेे व अन्य दस्तावेज आनलाइन अपलोड करने को कहा है। आयोग ने साफ किया है कि इसका पालन नहीं होने पर संबद्ध अधिकारियों को कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है।
सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को जारी निर्देश में कहा गया है कि प्रत्येक उम्मीदवार का नामांकन पत्र दाखिल होने के बाद निर्वाचन अधिकारी को उसके हलफनामों सहित अन्य दस्तावेज यथाशीघ्र वेबसाईट पर अपलोड करने होंगे। हलफनामे अपलोड करने में 24 घंटे से अधिक विलंब नहीं होना चाहिए। निर्वाचन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाते हुए उम्मीदवारों के हलफनामे वेबसाइट के माध्यम से सार्वजनिक करने की प्रक्रिया में होने वाली देरी से बचना ही चुनाव आयोग का मकसद है।
महत्वपूर्ण है कि आयोग ने सात चरण में 11 अप्रैल से 19 मई तक होने वाले मतदान से पहले यह व्यवस्था लागू की है। इसे सुचारू बनाए रखने और उम्मीदवारों के नामांकन दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने में विलंब से बचाने की जिम्मेदारी आयोग ने जिला निर्वाचन अधिकारी के सुपुर्द की है। सब जानते हैं कि उम्मीदवारों को नामांकन पत्र के साथ अपनी और परिवार की सम्पत्ति, आय व आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी हलफनामे के रूप में देनी होती है परन्तु हमारा मानना है कि चुनाव आयोग आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले प्रत्याशियों पर भी नकेल कसे। चुनाव सुधार भी बड़ा मुद्दा होना चािहए। सड़कों पर रोड शो, नारेबाजी व पोस्टर तथा होर्डिंग या रैलियों से लोगों को दिक्कतें तो होती ही हैं। काफी हद तक चुनावों में दिखावेबाजी पर शिकंजा कसा गया है परन्तु बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
विधानसभा चुनावों में वोटिंग कहीं-कहीं 70 प्रतिशत पार कर जाती है परन्तु लोकसभा में यह आंकड़ा बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। यह समय की मांग भी है लेकिन चुनावों में चंदा यानी फंडिंग को लेकर राजनीतिक दलों को पारदर्शिता में उतारने के लिए अभी बहत कुछ किया जाना बाकी है। इस चंदे या फंडिंग को लेकर अदालतबाजी चल रही है। बहुत कुछ कई कमेटियों की मार्फत कहा गया लेकिन ठोस परिणामों का आज भी इंतजार है।
बाहुबलियों को देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मंदिर में प्रवेश से तभी रोका जा सकता है जब बने हुए नियमों का सख्ती से पालन होगा। वोटिंग के लिए लोगों को प्रेरित करने का अभियान सुनील अरोड़ा ने चला रखा है परन्तु भारतीय लोकतंत्र को और सुदृढ़ बनाना होगा तभी इसमें शुचिता आ सकेगी।
संवैधानिक अधिकारों का पालन पूरा देश करे तभी भारतीय लोकतंत्र में लोग अपनी भारतीयता की पहचान कायम रख सकेंगे। सुशासन का मार्ग सुदृढ़ लोकतंत्र से ही निकलता है लेकिन लोकतंत्र आैर राजनीति को अपराधीकरण से मुक्ति दिलाने का संकल्प लेकर एक नजीर प्रस्तुत करना भी मकसद होना चाहिए। यह तभी संभव हो सकेगा जब लोग मतदान कर एक मजबूर नहीं मजबूत सरकार के पक्ष में जनादेश दें। हमारी यही इच्छा है क्योंकि मजबूत सरकार ही देश का स्वाभिमान होती है।