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कंगना ही नहीं हर महिला सम्मान की अधिकारी...

इस देश का इतिहास नारी के लिए हमेशा से ही विवादास्पद रहा है। उसे हमेशा ही अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है लेकिन यह नारी का धर्म है और आप इसे स्वाभिमान भी कह सकते हैं और साथ ही देश का गौरव भी कि अग्निपरीक्षा को स्वीकार भी किया गया है। यह युग अब जा चुका है। आज का दौर कलयुग का है या फिर वह लोकतंत्र है जहां संविधान में एकदेश के विधान में पुरुष और महिलाओं के बीच में समानता की बात कही गयी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी है। आप अपनी बात अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि आप मर्यादा भूल जाएं। हिमाचल प्रदेश से मुंबई नगरी पहुंचकर बॉलीवुड में अपने टैलेंट के दम पर एक अलग पहचान बनाने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत का कसूर इतना है कि उसने बॉलीवुड के एक उभरते हुए सितारे सुशांत राजपूत की, आत्महत्या को लेकर जांच करने की बात कही। उसने यह भी कहा कि यह एक मर्डर हो सकता है क्योंकि रिया चक्रवर्ती जैसे ऐसे कौन लोग हैं जो प्रोड्यूसरों, डायरेक्टरों से मिलकर उभरते हुए कलाकारों को फिल्मों में काम से रोकते हैं। यह बात अकेली कंगना की नहीं बल्कि लाखों बुद्धिजीवियों के अलावा बिहार सरकार ने भी कही और तभी सुशांत राजपूत की आत्महत्या की सीबीआई जांच चल रही है। इतना ही नहीं ईडी और एनसीबी ने भी एक्शन लेकर आखिरकार रिया को सलाखों के पीछे भिजवा दिया है। मैं फिर से अपने विषय कंगना प्रकरण पर आ रही हूं अगर महाराष्ट्र में आपकी सरकार है तो क्या आप इस मामले में कंगना रनौत को गाली देंगे। इतनी भी मर्यादा भूल जायेंगे कि वह एक बेटी है। मामले को राजनीति से जोडऩा ना मेरी फितरत है और ना मुझे पसंद ही है। मैं केवल नारी के सम्मान की बात कर रही हूं कि देश में पीएम मोदी जी की सरकार है जो बेटियों को एक अलग पहचान और उनके सम्मान के लिए जानी जाती है। बेटियों की अस्मिता के गुनाहगारों को फांसी इसी मोदी शासन में हुई है। सत्ता के नशे में चूर होकर क्या किसी के पक्ष या विपक्ष में बोलने वाले को मंत्री या सत्ता से जुड़े लोग अपना दुश्मन मानकर उससे बदला लेंगे। कंगना के साथ यह राजनीतिक बदला था या कुछ ओर लेकिन जिस तरह से उसका घर मुंबई के महानगर शासन ने तोड़ा और फिर सत्तारूढ़ पार्टी ने अपने अखबार में लिख दियाकि हमने बदला ले लिया तो आप इसे क्या कहेंगे? 

अगर कंगना गलत है या उसकी बात किसी को भी पसंद नहीं  रही तो सबका मौलिक अधिकार है, उसका खंडन करना या उसको नकारना, परन्तु सब भारतीय संस्कृति की मर्यादा में रहकर होना चाहिए। अगर बड़े ठाकरे साहब होते तो ऐसा नहीं होता।

इस मामले में आज जरूरत इस बात की है कि महिलाओं पर टिप्पणी करने वाले नेताओं के उदाहरण इस देश में बहुत से दिये जा सकते हैं। बड़बोले नेताओं की कोई कमी नहीं। महिला ही एक ऐसी चीज है जो चाहे जब चाहे उसके बारे में अभद्र टिप्पणियां कर देता है। यह सब रोका जाना चाहिए। नैतिकता यही कहती है कि बेटी की उम्र के बराबर वाली लड़की से ऐसा ही बर्ताव किया जाना चाहिए जो आप अपनी बेटी से करते हैं। आप उसे गाली तो नहीं देंगे। सोशल मीडिया पर जंग छिड़ गयी है। मेरा खुद का व्हाट्सऐप बॉक्स कंगना के समर्थन और विरोध को लेकर भर चुका है। लोग मुझसे राय मांग रहे हैं। सब कुछ राजनैतिक हो चुका है। लेकिन फिर भी मुख्य बात यह है कि हर किसी को मर्यादा में रहना चाहिए। 

जीवन के किसी भी क्षेत्र में जब आप मर्यादा का हनन करते हैं तो नुकसान ही होता है। होना तो यह चाहिए कि कोरोना के प्रकोप के बीच महाराष्ट्र और मुंबई मौत और संक्रमण के मामले में नंबर वन बन चुके हैं वहां की सरकारों को वहां के नेताओं को कोरोना के ऊपर लगाम कसते हुए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए लेकिन बड़े-बड़े महापुरुषों के नाम पर पार्टियों के नाम रखने वाले लोग सत्ता में आते ही महिलाओं की इज्जत करना भूल जाते हैं। ये हालात अच्छे नहीं है। कंगना रनौत ने, एक बेटी ने राजनीति के धुरंधर समझे जाने वाले को सही चेतावनी दी है कि यह वक्त का पहिया है जो घूमता रहता है कि अगर आज मेरा घर टूटा है तो कल तेरा घमंड टूटेगा। उस लड़की ने अपनी मेहनत के दम पर घर बनाया था और आपने उसे अवैध निर्माण की श्रेणी में रखते हुए तोड़ डाला। मुंबई में सोशल मीडिया पर जो वायरल हो रहा है तो वह अवैध निर्माण भी तोड़े जाएं जो अन्य लोगों या फिर अपराधियों के हैं लेकिन जो हां में हां मिलाएं उसे छोड़ दो और बाकियों के घर तोड़ दो। यह नीति नहीं चलनी चाहिए। साथ ही नेताओं से हाथ जोड़कर अपील है कि बेटियों की सुरक्षा के साथ-साथ उनकी इज्जत को भी ध्यान में रखते हुए उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणियां न की जाएं। भारत की संस्कृति को नारी के स्वरूप को और गंदा न करते हुए यह समझ लें कि नारी दुर्गा है, वह भवानी है और जब अपनी पर आती है तो फिर दैत्यों की खैर नहीं। समय का पहिया चल रहा है। नारी का अपमान करने की कोशिश और उसके खिलाफ अभद्र भाषा पर लगाम कसने का समय आ गया है। और महिलाओं, बेटियों को भी अपनी मर्यादा में रहकर काम करना और बोलना चाहिए।