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अब आर्थिक ढांचा केन्द्र में?

पांचवीं बार राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ प्रधानमन्त्री की हुई बैठक का एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है-अर्थव्यवस्था को सुचारू करने की चिन्ता अब केन्द्र में आ चुकी है और लाॅकडाऊन-3 की अवधि समाप्त होने के बाद आगे का जो भी रास्ता होगा वह इसी रोशनी में होगा।

पांचवीं बार राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ प्रधानमन्त्री की हुई बैठक का एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है-अर्थव्यवस्था को सुचारू करने की चिन्ता अब केन्द्र में आ चुकी है और लाॅकडाऊन-3 की अवधि समाप्त होने के बाद आगे का जो भी रास्ता होगा वह इसी रोशनी में होगा। हालांकि आज से नई दिल्ली से 15 रेलगाड़ियां शुरू करके यह संकेत दे दिया गया है कि देश को अब सामान्य कामकाज की तरफ बढ़ना ही होगा और कोरोना वायरस के खतरे से इस तरह जूझना होगा जिससे जीवन की गति थमने न पाये।
भारतवासियों ने लाॅकडाऊन के तहत जिस धैर्य और संयम का परिचय दिया है वह अनूठा इसलिए कहा जायेगा क्योंकि भारत एक बहुराजनीतिक प्रणाली का लोकतान्त्रिक देश है। लाॅकडाऊन की व्यवस्था पर राजनैतिक सर्वसम्मति होना कोई छोटी बात नहीं कही जा सकती परन्तु अब आम जनता अपने काम-धंधे को लेकर चिन्तित हो चुकी है। लगभग दो महीने तक घर में बैठकर अपनी पूंजी के बूते पर परिवार को चलाना औसत भारतीय के लिए एक उपलब्धि मानी जायेगी।
130 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में लाॅकडाऊन के चलते एक भी भारतीय भूखा नहीं सो पाया इसके लिए सरकारी प्रयासों की सराहना की जायेगी। प्रधानमन्त्री की मुख्यमन्त्रियों के साथ यह पांचवीं बैठक थी जो कोरोना के कहर के चलते हुई है। जाहिर है इस वायरस से जूझने के क्रम में अन्य सभी सरकारी गतिविधियां भी ठप्प हैं। सरकार की पूरी ऊर्जा कोरोना से लड़ने में ही खर्च हो रही है जिसकी वजह से भारत जैसा घनी आबादी वाला देश अब लाॅकडाऊन से मुक्ति पाने की अपेक्षा कर रहा है। यह कार्य केवल जन सहयोग से ही किया जा सकता है क्योंकि अन्ततः यह आम आदमी ही है जो कोरोना के खिलाफ सन्नद्ध सिपाही की भूमिका निभा रहा है।
उसकी भूमिका तब तक चालू रहेगी जब तक कि देश के सर से कोरोना का खतरा टल नहीं जाता। इसके साथ ही यह उपलब्धि भी कमतर करके नहीं देखी जानी चाहिए कि अब हर एक सौ कोरोना मरीजों में से 31 ठीक होकर अपने घर जा रहे हैं। हमें पूरी स्थिति का आंकलन आंकड़ेबाजी से नहीं बल्कि व्यावहारिक स्तर पर करना होगा।
यदि कोरोना को हमने 31 प्रतिशत ठीक या भला-चंगा करने की हालत में पहुंचा दिया है तो हमारे चिकित्सक प्रशंसा के पात्र हैं जिन्होंने केवल औषधियों के बूते पर ही यह औसत पाया है। इसका मतलब है कि औषधीय उपचार कारगर हो रहा है। इससे आगे का रास्ता खुलता हुआ दिखाई देता है और हमें प्रेरणा देता है कि हम कोरोना का जोखिम लेकर सामान्य जीवन की तरफ लौट सकते हैं बशर्ते इसे दूर रखने के प्रावधानों जैसे दो गज की दूरी व निजी साफ-सफाई का हमेशा ध्यान रखें।
वस्तुतः यह अब हमारी आदत में शामिल हो जाना चाहिए और सामाजिक शिष्टाचार का अंग बन जाना चाहिए। इसका ध्यान रखे बिना हम काम-धंधे शुरू करने की नहीं सोच सकते। जाहिर है कि प्रधानमन्त्री-मुख्यमन्त्री बैठक देश की सबसे बड़ी और ऊंची नीति-निर्माता बैठक होती है। इस बैठक में नीतिगत निर्णय ही होगा और ऐसा निर्णय होगा जिस पर आम सहमति हो। यह आम सहमति क्या बनी है इसका पता आगामी 17 मई से एक-दो दिन पहले ही चल पायेगा जब आगे के रास्ते के बारे में प्रधानमन्त्री घोषणा करेंगे।
कोरोना के विरुद्ध युद्ध में प्रधानमन्त्री ही स्वयं सिपहसालार रहे हैं और पूरे देश ने उनके निर्देश में अटूट निष्ठा दिखाई है और प्रत्येक राजनैतिक दल ने अपनी सहमति भी व्यक्त की है। इस मुद्दे पर राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं थी मगर प्रवासी मजदूरों की आवा-जाही पर जिस तरह की राजनीति भड़कने का खतरा पैदा हो गया था उसकी संभावना भी अब समाप्त हो गई है क्योंकि मजदूरों के लिए विशेष रेलगाड़ियों की व्यवस्था कर दी गई है।
हालांकि यह आंकलन बाद में होगा कि इस फैसले से किसे लाभ हुआ? परन्तु अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के खातिर हमें कोरोना के साथ जीना सीखना ही होगा क्योंकि आर्थिक भूमंडलीकरण के दौर में आर्थिक संरचना अनिश्चितकाल के लिए इन्तजार नहीं कर सकती। पूरी दुनिया जिस आर्थिक दौड़ में लगी हुई है उसमें दुर्घटनाओं को अवसर में बदलने की प्रतियोगिता भी चल रही है।
भारत तेजी के साथ विकास करने वाला देश है और विदेशी निवेशकों के लिए और आकर्षक बनाना इसका लक्ष्य रहा है क्योंकि प्रगति का नया पैमाना अब विदेशी निवेश ही बन चुका है। पूरे एशिया व अफ्रीका महाद्वीप समेत अन्य विकसित राष्ट्रों तक में जिस तरह चीन ने अपना आर्थिक विस्तार किया है उसे लेकर अमेरिका जैसा देश तक कुलबुलाने लगा है, यही वजह है कि कोरोना वायरस को लेकर चीन के खिलाफ जनचेतना जागृत हो रही है। हो सकता है कि इस मुद्दे पर विश्व पुनः किसी शीत युद्ध में फंस जाये।
अतः कोरोना केवल मृत्यु का खतरा लेकर ही नहीं आया है बल्कि आर्थिक प्रतिद्वन्दिता का नया चरण लेकर भी आया है। भारत को इसी उलझी  दुनिया में अपना नया स्थान बनाना है। इस सिलसिले में प्रधानमन्त्री ने सत्ता में आने के बाद पहले गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन को सम्बोधित करके साफ कर दिया है कि भारत बेखौफ होकर निरपेक्ष विदेश नीति की मार्फत तटस्थता का ऐसा रास्ता खोज सकता है जिसमें इस देश के लोगों की प्रगति का सूत्र छिपा हुआ हो। अतः कोरोना से डरे बिना हमें आर्थिक सौपान पर चढ़ना ही होगा।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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