दिल्ली यूनिवर्सिटी ने स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए अपनी पहली कट आफ लिस्ट जारी कर दी। इसके जारी होने के साथ ही यह साफ हो गया है कि इस बार दाखिलों के लिए संग्राम होगा। कट आफ लिस्ट में सभी रिकार्ड टूट गए हैं। शैक्षणिक सत्र के लिए जारी कट आफ लिस्ट में प्रतिष्ठित कालेजों में बीए आनर्स, पॉलिटिकल साइंस, बीए आनर्स इकोनामिक्स, बीए आनर्स साइकोलॉजी की कट आफ सौ फीसदी निर्धारित की गई है। कुछ कालेजों में 99 फीसदी तो कहीं 95 फीसदी है।
हर बार जैसे-जैसे सीबीएसई बोर्ड की 12वीं कक्षा का स्कोर बढ़ता है, दिल्ली यूनिवर्सिटी के कालेजों में सीट मिलना मुश्किल हो जाता है। एडमिशन के लिए यूनिवर्सिटी को सिर्फ चार बैस्ट मार्क्स को जोड़ना होता है। जब 90 प्रतिशत और 95 प्रतिशत अंक पाने वाले छात्र कम होते हैं तब पहली कट आफ लिस्ट को जारी होने के बाद कालेज में उपलब्ध सीटों को भर लिया जाता रहा। 60 फीसदी कार्सों के लिए तीसरी लिस्ट की जरूरत ही नहीं पड़ती। पिछले कुछ वर्षों में स्टेट बोर्ड के आवेदनकर्ताओं की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है।
इस साल जुलाई महीने में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 12वीं क्लास के नतीजों का ऐलान किया था। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी कट आफ लिस्ट जारी करने की तैयारियों ने जोर पकड़ लिया था। सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में इस वर्ष 88.78 प्रतिशत स्टूडेंट पास हुए। सीबीएसई ने इस वर्ष कोई मेरिट लिस्ट जारी नहीं की है लेकिन बोर्ड जल्द ही यूनिवर्सिटी के साथ रिजल्ट सांझा करेगा जिससे कट आफ लिस्ट तैयार की जा सके।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के 61 कालेजों में विभिन्न कोर्सों के लिए 67 हजार सीटें हैं जबकि एडमिशन के लिए आवेदकों की संख्या 3,54,003 है। इसका अर्थ यही है कि काफी संख्या में छात्रों को दिल्ली के कालेजों में दाखिला नहीं मिलेगा। 2512 लड़कियों और 2988 लड़कों, जिन्होंने सौ फीसदी अंक प्राप्त किये हैं, दाखिले के लिए पहले पात्र हैं।
कोरोना काल ने हर किसी को प्रभावित किया है। स्कूल-कालेज बंद रहने से पढ़ाई हुई नहीं। परीक्षाएं भी टालनी पड़ीं। स्कूली छात्रों के पाठ्यक्रम भी पूरे नहीं हुए यद्यपि ऑनलाइन शिक्षा शुरू की गई लेकिन इससे स्कूलों जैसा वातावरण सृजित ही नहीं हो सकता। जैसे-तैसे परीक्षा के परिणाम घोषित कर दिये गए। ऑनलाइन क्लासें विकल्प के तौर पर उभरी जरूर लेकिन उनकी भी अपनी सीमाएं हैं। लोगों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि अगर हमने ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहित किया तो बच्चे घरों में रहेंगे और समुदाय से कट जाएंगे। बच्चों को बौद्धिक रूप से निर्भर बनाना, सामुदायिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार करना स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों का काम है। अरस्तु जैसे विद्वानों का मानना था कि सामुदायिक जीवन में पूर्ण सक्रिय भागीदारी और भूमिका निभाये बिना कोई परिपूर्ण मानव बनने की आशा नहीं कर सकता। इसलिए बच्चों का स्कूल और कालेज जाना बहुत जरूरी है।
कोरोना काल ने बहुत कुछ बदला। शिक्षा का ढांचा बदला, परीक्षा की प्रणाली बदली। परिणामों की प्रणाली बदली लेकिन सवाल यह है कि क्या दिल्ली के छात्रों को दिल्ली के अच्छे कालेजों में एडमिशन मिलेगा? कट आफ लिस्ट के अनुसार 95 फीसदी से कम अंक पाने वाले कालेज-कालेज भटकेंगे या फिर उन्हें दूसरे राज्यों में एडमिशन के लिए जाना होगा। कोरोना काल में सब कुछ बदला तो फिर दाखिला प्रक्रिया को भी आसान बनाया जाना चाहिए। देशभर के छात्रों को दिल्ली के अच्छे कालेजों में प्रवेश मिलता है लेकिन दिल्ली के छात्रों को कर्नाटक, महाराष्ट्र या अन्य राज्यों में एडमिशन के लिए भटकना पड़ता है। छात्रों की चिंताएं बढ़ गई हैं। दिल्ली देशभर के छात्रों के लिए पसंदीदा डेस्टीनेशन बन गया। दूसरी ओर कई निजी विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों की फीस सुनकर इतनी ज्यादा हैरानी होती है कि ये व्यापार के रूप में काम कर रहे हैं। इनका काम समाज के सभी वर्गों को समान शिक्षा का अवसर देना है और उन्नत, काबिल तथा कौशलपूर्ण नागरिक तैयार करना है। महंगी शिक्षा गुणवत्ता की गारंटी नहीं है। क्या सिर्फ महंगे संस्थान से शिक्षा प्राप्त करके ही अच्छी नौकरी मिलती है? कम अंक प्राप्त करने वाले या गरीब परिवारों के बच्चों को कौन सी शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। उच्च शिक्षा के लिए सरकार को चाहिए कि दिल्ली में नये कालेज स्थापित किये जाएं ताकि हर किसी को अपनी मनपसंद के विषय में दाखिला मिल सके। शिक्षा ही मनुष्य के जीवन का ऐसा आधार है जो समाज के सभी क्षेत्रों में सर्वोच्च पद पर अग्रसर होने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। शिक्षा का अर्थ केवल पढ़ना-लिखना ही नहीं है बल्कि अधिकारों, जिम्मेदारी, कर्त्तव्य भावना, कौशल विकास और समुदाय के विकास की भागीदारी की भावना पैदा करना है परंतु दिल्ली में बच्चों के नर्सरी से लेकर कालेज तक में दाखिले के लिए अभिभावकों को जूतियां रगड़नी पड़ती हैं। कोरोना से प्रभावित लोगों को अपने बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए सहज तरीकों का इंतजार है। कुछ ऐसे रास्ते निकाले जाने चाहिएं जिनसे उनका जीवन आसान हो जाए और सभी को समान शिक्षा मिले।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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