महाशक्ति अमेरिका ने भारत को नाटो देशों के बराबर दर्जा दे दिया है। रूस के साथ भारत के रिश्ते पहले से ही काफी प्रगाढ़ हैं। रूस भारत के साथ कई परमाणु और रक्षा परियोजनाओं में सहयोग कर ही रहा है। एशिया प्रशांत देशों के साथ कोई भी सम्बन्ध भारत और रूस के हितों को ध्यान में रखकर ही बनता है। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने भारत को रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम नहीं खरीदने का दबाव बनाया था।
जी-20 सम्मेलन से पूर्व अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो को भारत भेजकर दबाव डालने की कोशिश भी की लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने द्विपक्षीय बातचीत में दो-टूक कह दिया था कि भारत अपने हितों को सर्वोपरि रखेगा। इसका अर्थ यही था कि अमेरिका से मैत्री की एवज में भारत अपने विश्वसनीय मित्र रूस को नहीं छोड़ सकता। डोनाल्ड ट्रंप शासनकाल में भारत को नाटो देशों के बराबर दर्जा दिए जाने से यह साबित हो गया है कि अमेरिकी सियासत और डिप्लोमेसी में भारत की स्थिति बेहद मजबूत हुई है।
भारत को नाटो देशों के बराबर दर्जा देने का प्रस्ताव पारित होते ही सबसे ज्यादा चिन्ता पाकिस्तान को हुई। चीन भी अमेरिका के इस कदम से खुश नहीं है। प्रस्ताव पारित होने के बाद अमेरिका भारत के साथ नाटो के अपने सहयोगी देशों इस्राइल और दक्षिण कोरिया की तर्ज पर ही डील करेगा। वित्त वर्ष 2020 के लिए नेशनल डिफेंस आथराइजेशन एक्ट को अमेरिकी सीनेट ने पिछले सप्ताह मंजूरी दी थी। अब इस विधेयक में संशोधन प्रस्ताव को भी स्वीकृति मिल गई है। विधेयक में कहा गया है कि हिन्द महासागर में भारत के साथ मानवीय सहयोग, आतंक के विरुद्ध संघर्ष, काउंटर पाइरेसी आैर मैरी टाइम सिक्योरिटी पर काम करने की जरूरत है।
2016 में अमेरिका ने भारत को अपना बड़ा रणनीतिक सांझीदार माना था। अब नाटो देशों के बराबर दर्जा मिलने का अर्थ यही है कि भारत उससे हथियारों और तकनीक की खरीद कर सकता है। भारत को अतिसंवेदनशील सैन्य सामग्री हासिल होगी। अमेरिका की नाटो देशों की सूची में इस्राइल, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया आदि शामिल हैं। अब इस सूची में जुड़ने वाला भारत एकमात्र एशियाई देश है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से प्रधानमंत्री पद सम्भाला है तब से दुनिया में भारत की विश्वसनीयता आैर साख बढ़ी है।
भारत का रुतबा लगातार बढ़ रहा है आैर भारत एक विश्व शक्ति बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत को कूटनीति में एक के बाद एक उपलब्धियां हासिल हो रही हैं। भारत ने दो कट्टर दुश्मन देशों इस्राइल और फलस्तीन में जबर्दस्त संतुलन स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बारी-बारी से दोनों देशों की यात्रा की थी। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं था कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विमान इस्राइल जाने के लिए फलस्तीन के आकाश में उड़ रहा था तब उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रही थी इस्राइल की वायुसेना। अमेरिका और रूस के सम्बन्ध भी काफी कटुतापूर्ण हैं।
दोनों में जबर्दस्त टकराव चल रहा है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कौशल ही है कि अब दोनों देश भारत के साथ सहयोग कर रहे हैं। ब्रिक्स सम्मेलन में रूस ने भारत का साथ देकर चीन की हेकड़ी गुम कर दी थी, उसी तरह पाकिस्तान के गहरे मित्र रहे अमेरिका ने भी उसका साथ छोड़ दिया। अमेरिका का भारत की तरफ मुड़ना भी बड़ी उपलब्धि है। अमेरिका ने पाकिस्तान को हर मंच पर अकेला छोड़ दिया है। भारत कई वर्षों से पाकिस्तान के आतंकवाद या छद्म युद्ध से पीड़ित है और समूचे विश्व से पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने की गुहार लगाता रहा लेकिन हमारी किसी ने नहीं सुनी थी।
उलटा अमेरिका की सरकारें पाकिस्तान को डॉलरों से पोषित करती रहीं। अब जाकर अमेरिका की आंखें खुुलीं तो उसे पाकिस्तान की असलियत का पता चला। अंतर्राष्ट्रीय जगत में कभी भारत की आवाज सुनी नहीं जाती थी लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक स्वर से निन्दा करने लगी है। आतंक के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा और ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं।
सार्क में पाकिस्तान को छोड़कर सभी सदस्य देश अफगानिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, भूटान आैर मालदीव सभी हमारे साथ हैं। पाकिस्तान को विश्व बिरादरी में आज एक भी ऐसा देश नहीं मिल रहा जो खुलकर उसका साथ दे सके। चीन भले ही अपने फायदे के लिए पाकिस्तान का साथ दे रहा है लेकिन मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में अड़ंगे डालने के बावजूद चीन को अन्ततः मजबूर होना पड़ा। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी भारत का स्थान महत्वपूर्ण आैर सामरिक क्षेत्र में भी भारत ने अपनी ताकत का अहसास दुनिया को करा दिया है।