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अब तीसरी लहर की आशंका !

कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश में जिस तरह कोहराम मचाया है उसकी सबसे बड़ी गवाह स्वयं गंगा नदी है जिसके तट से लेकर जल तक में कल तक लाशें दबी व तैरती मिल रही थीं।

कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश में जिस तरह कोहराम मचाया है उसकी सबसे बड़ी गवाह स्वयं गंगा नदी है जिसके तट से लेकर जल तक में कल तक लाशें दबी व तैरती मिल रही थीं। यह मंजर हमें चेता कर चला गया कि महामारी के मामले में गफलत बरतने का अंजाम क्या हो सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने जब यह कहा कि दूसरी लहर के कहर की वजह हमारी गफलत है हमें तीसरी लहर के कयासों से पहले से ही अपने होश-ओ-हवास को दुरुस्त रखना होगा और एेसे पुख्ता इन्तजाम करने होंगे कि कोरोना हमारी तैयारियों से तौबा करने लगे। मगर यह कार्य विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के जबानी जमा-खर्च से नहीं होगा बल्कि जमीन पर चीखें मारती हकीकत को समझने से होगा। हकीकत यह है कि आज हर भारतीय के दरवाजे पर कोरोना दस्तक देकर उसकी रातों की नींदें उड़ा रहा है। सबसे पहले हमें इस माहौल को बिदा करने की व्यवस्था करनी होगी और तब सोचना होगा कि तीसरी लहर की आहट होने से पहले ही हम पुख्ता दम हो जायें। यह काम सब भारतवासियों को मिल कर ही करना होगा क्योंकि कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोगों को आंख में काली फंगस की बीमारी जिस तरह पांव पसार रही है उससे एक नई समस्या खड़ी हो सकती है। इसकी तरफ प्रधानमन्त्री ने भी आज ध्यान आकृष्ट कराया है। उन्होंने कोरोना को बहुरूपिया भी बताया और कहा कि यह रूप बदलने में माहिर है अतः हमें रात- दिन चौकन्ना होकर इससे लड़ना होगा। 
मगर असली सवाल यह है कि हम तीसरी लहर को आने से रोकोगे कैसे? इसका केवल एक ही उपाय है कि भारत के दो साल के बच्चे से लेकर बूढे़ आदमी तक को वैक्सीन लगाई जाये। क्योंकि तीसरी लहर का सबसे ज्यादा प्रकोप किशोरों और बच्चों पर पड़ने की आशंका ही वैज्ञानिक व्यक्त कर रहे हैं। भारत की 139 करोड़ की आबादी में से अभी तक केवल 18.5 करोड़ लोगों को ही वैक्सन लग पाई है । 18 से 45 वर्ष तक के युवाओं को विगत 1 मई से जो वैक्सीन लगाने की शुरूआत की गई थी उसके तहत अभी तक एक करोड़ से कम लोगों को वैक्सीन लगी है। इससे देश में खासकर युवा वर्ग में निराशा का वातावरण बन रहा है। इस वातावरण को हमें हर हालत में तोड़ना होगा और तय करना होगा कि अधिकतम अगले वर्ष के जनवरी महीने तक हर युवा के भी वैक्सीन लग सके। 
हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारे किशोरों की पढ़ाई का पूरा साल बेकार चला गया है। बच्चों का बचपन जैसे उनसे छिन गया है और वे घरों में ही कैद होकर रह गये हैं। भारत के 40 प्रतिशत के करीब परिवार एक कमरे के मकान में रहते हैं। इनके बच्चों की मनः स्थिति का अंदाजा बड़े-बड़े बंगलों या खुले घरों में रहने वाले लोग कभी नहीं लगा सकते। कोरोना ने हमारे बच्चों का बचपन छीन कर सबसे बड़ा अमानवीय कृत्य किया है अतः उसे परास्त करने के लिए हमें अभी से पक्के इन्तजाम करने होंगे। आज पूरे देश की जरूरत कोरोना से निजात पाने की है न कि इस पर राजनीति करने की। क्योंकि यदि तीसरी लहर आ गई तो यह पूरी की पूरी पीढ़ी को ही बर्बाद कर सकती है। हमें अपनी पुरानी गलतियों से इस तरह सबक सीखना होगा कि आगे किसी को भी हम पर अंगुली उठाने की हिम्मत न हो। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन यह आंकलन करता है कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर राजनीतिक व धार्मिक कार्यक्रमों की वजह से आयी तो हमें केवल राजनीतिक मोर्चे पर ही नहीं बल्कि धार्मिक मोर्चे पर भी आत्म संयम रखते हुए अपने-अपने भगवान या अल्लाह को अपने दिलों में बसा कर ही उसकी इबादत करनी होगी। हमें धर्म और अध्यात्म के रहस्यों के भौतिकतावादी सच के मर्म को समझते हुए ही अपने व्यवहार में वक्त के मुताबिक परिवर्तन लाना होगा और इसकी हकीकत मिर्जा गालिब ने अपने इस शेर में लिख कर अपने  वक्त में पूरी दुनिया के धार्मिक विद्वानों व मीमांसकों को चकरा दिया था,
‘‘न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता 
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता?’’   
अतः सबसे पहले हमें अपना अस्तित्व अर्थात आदमी का वजूद बचाये रखने की जरूरत है। तीसरी लहर से पहले हमें दूसरी लहर से उबरने की जरूरत है और इसके लिए जरूरी है कि वैक्सीन लगाने के कार्यक्रम को तूफानी गति से पूरा किया जाये। मगर वैक्सीन की किल्लत होने से राज्य सरकारें 18 से 45 वर्ष तक के लोगों को टीका लगाना बन्द कर रही है। अब जरूरत यह है कि वैक्सीन की प्राप्ति के लिए सभी विकल्पों को खोल दिया जाये और यह न देखा जाये कि स्वास्थ्य संविधान की किस सूची में आता है। वक्त की मांग यही है।

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