लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

एनआरसी : असम सरकार का रिवर्स गियर

1947 में देश विभाजन की मानवीय त्रासदी के बाद धीरे-धीरे दिलों पर लगे जख्मों के दाग तो धुंधले हो गए लेकिन उसने जिन समस्याओं को जन्म ​दिया वे आज तक समाप्त नहीं हो रहीं।

1947 में देश विभाजन की मानवीय त्रासदी के बाद धीरे-धीरे दिलों पर लगे जख्मों के दाग तो धुंधले हो गए लेकिन उसने जिन समस्याओं को जन्म ​दिया वे आज तक समाप्त नहीं हो रहीं। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासन की समस्या ने बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया। पूर्वोत्तर के राज्यों के मूल निवासियों के लिए यह एक बड़ी सामाजिक समस्या है। अवैध प्रवासन असम के मूल निवासियों के लिए बड़ा भावनात्मक मुद्दा है। इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द असम की राजनीति कई दशकों से घूम रही है। असम इसी मुद्दे को लेकर कई बार जला, हिंसक छात्र आंदोलन भी हुए। 
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लम्बी कवायद के बाद आंदोलनकारी छात्र संगठनों से 1985 में असम समझौता ​किया। इस समझौते में एक प्रावधान यह भी रखा गया था कि 25 मार्च, 1971 यानी बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध की शुरूआत के बाद आए सभी धर्मों के अवैध नागरिकों को वहां से निर्वासित किया जाएगा। भाजपा ने 2014 के चुनावों में अवैध घुसपैठियों को बाहर करने का चुनावी वादा किया था। साथ ही यह भी कहा था कि सताए गए हिन्दुओं के लिए भारत एक प्राकृतिक निवास बनेगा और यहां शरण मांगने वालों का स्वागत किया जाएगा। 
जाहिर है यह आशय पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए और अवैध रूप से रह रहे हिन्दुओं से था। भाजपा ने घुसपैठियों को बाहर करने की बात कर असम में अपनी पकड़ मजबूत की, जिसका लाभ भी उसे मिला। इसी बीच असम में नागरिकों की पहचान के लिए नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स (एनआरसी) का काम शुरू हुआ। एनआरसी की दूसरी और अंतिम सूची आने पर 19 लाख लोग सूची से बाहर किए गए यानि इन्हें अवैध नागरिक माना गया। इस सूूची में काफी अनियमितताएं सामने आईं। ​किसी का पिता एनआरसी में शामिल है तो उसकी बेटी का नाम नहीं। ​किसी की पत्नी को वैध नागरिक माना गया लेकिन उसके बच्चों को बाहर कर दिया गया। 
कारगिल युद्ध में भारतीय सेना में रहकर युद्ध लड़ने वाले जवान को भी अवैध नागरिक ठहरा दिया गया। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा। उनके ​ऐलान के बाद भाजपा की ही असम सरकार ने केन्द्र सरकार से राज्य में हाल में जारी एनआरसी सूची को रद्द करने की मांग कर डाली। असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने संवाददाता सम्मेलन कर एनआरसी तैयार करने की पूरी प्रक्रिया को ही सवालों के घेरे में ला खड़ा किया और गृहमंत्री अमित शाह से इसी सूची के वर्तमान स्वरूप काे अस्वीकार करने की मांग की। 
असम की भाजपा सरकार ने पूरे देश में एक राष्ट्रीय एनआरसी का समर्थन किया है, जिसमें असम को भी शामिल किया जाए। हेमंत सरमा का कहना है कि अगर राष्ट्रीय एनआरसी के लिए अहर्ता वर्ष 1971 है तो यह सभी राज्यों के लिए एक होना चाहिए। उन्होंने एनआरसी पूर्व राज्य कोआर्डीनेटर प्रतीक हजेला को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि असम सरकार को अलग-थलग करके प्रक्रिया पूरी की गई, जिसका खामियाजा जनप्रतिनिधि भुगत रहे हैं और अब उन्हें सवालों के जवाब देने मुश्किल हो रहे हैं। 
दूसरी ओर केन्द्र सरकार का कहना है कि एनआरसी से बाहर रहे लोगों को ट्रिब्यूनल जाने का अधिकार है। ऐसे लोगों के पास अगर पैसा नहीं है तो असम सरकार को उसके वकील का खर्च उठाना होगा। एनआरसी पर आक्रामक रुख अपनाने वाली असम सरकार का यू-टर्न काफी नाटकीय है। सवाल यह भी है ​​कि असम सरकार सूची से बाहर रह गए 19 लाख लोगों को कैसे राज्य से बाहर करेगी क्योंकि बांग्लादेश इन्हें लेना स्वीकार नहीं करेगा। 19 लाख लोगों का भविष्य क्या होगा? सवाल यह भी है कि राज्य सरकार किस-किस को केस लड़ने के लिए वकील नियुक्त करके खर्चा उठाएगी। एनआरसी की गूंज वैश्विक स्तर पर होने लगी है। 
आरोप लगाया जा रहा है कि एनआरसी के जरिये धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि सूची से बाहर रहे 19 लाख लोगों में से 13 लाख हिन्दू धर्म के लोग हैं। उधर प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होकर पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा का परचम फहराने में हेमंत बिस्व सरमा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जब उन्होंने ही एनआरसी को रद्द करने की मांग कर डाली तो जाहिर है कि एनआसी भाजपा के गले की फांस बन गई है। 
केन्द्र की भाजपा सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक की बात कर रही है। इससे भी असम सहित पूर्वोत्तर के राज्य भीतर ही भीतर उबल रहे हैं। राज्यों को चिंता यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए ​हिन्दुओं, ईसाइयों, सिखों और पारसियों को नागरिकता देने के लिए आसान प्रावधान किए तो इन राज्यों की सांस्कृतिक विविधता के ताने-बाने को खतरा पहुंच सकता है। फिलहाल एनआरसी का मुद्दा उलझ कर रह गया है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी लागू की जाती है तो उसका ड्राफ्ट बहुत ही निष्पक्षता और ईमानदारी से तैयार किया जाए ताकि घुसपैठियों की पहचान हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four − 1 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।