आज से लाॅकडाऊन का चौथा चरण शुरू हो रहा है जिसमें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास निहित हैं परन्तु देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता आनन्द शर्मा ने कुछ सवाल खड़े किये हैं जिनका सम्बन्ध देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और गौरव से है और इन्हें अर्थव्यवस्था को सुधारने के उत्साह में नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। ये सवाल देश के अन्तरिक्ष और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े हैं। सबसे पहले यह साफ हो जाना चाहिए कि इन दोनों वैज्ञानिक क्षेत्रों में गरीब समझे जाने वाले भारत ने अपने बलबूते पर प्रौद्योगिकी विकसित करके पूरी दुनिया को चौंकाने का काम किया है। अन्तरिक्ष व परमाणु विज्ञान में भारत ने पं. नेहरू व इन्दिरा गांधी के शासन काल में भारी जोखिम लेकर देश के बजटों में धन की व्यवस्था करके वे इन्तजाम बांधे थे जिनसे भारत अपना सर ऊंचा करके दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सके। पं. नेहरू ने महान वैज्ञानिक स्व. होमी जहांगीर भाभा को आजादी के मात्र एक साल बाद ही 1948 में परमाणु आयोग बना कर इसका अध्यक्ष तब बनाया था जब यह देश अपने भरण-पोषण के लिए पर्याप्त अनाज भी पैदा नहीं कर पाता था। इसी प्रकार इन्दिरा गांधी ने अन्तरिक्ष विज्ञान में भारत की पताका फहराने का फैसला तब किया था जब अमेरिका जैसा विकसित देश इसे सपेरों और बाजीगरों का देश कहा करता था। मगर 1974 में हमने परमाणु विस्फोट कर डाला और दुनिया को बता दिया कि भारत वैज्ञानिकों का देश भी है। इसी प्रकार अन्तरिक्ष विज्ञान में जब सीढि़यां चढ़नी शुरू कीं तो उसका फल हमें इस सदी के शुरू से मिलना शुरू हुआ और हम इस क्षेत्र में पूरी दुनिया में अकेले एेसे देश हो गये जो एक साथ सौ से भी अधिक उपग्रह छोड़ने में सक्षम हो गया। यह भारत के लोगों की उपलब्धि थी और उन गरीब लोगों की उपलब्धि थी जिन्हें पूरे दो सौ साल तक अंग्रेजों ने आधुनिक विज्ञान टैक्नोलोजी से महरूम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
अन्तरिक्ष और परमाणु क्षेत्र हमारी एेसी राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं जिनका उपयोग कारोबारी गतिविधियों में मुनाफा कमाने के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाने और जन कल्याण के लिए किया जाना है। ये सम्पत्ति आधुनिक भारत की एेसी धरोहर है जो आने वाली पीढि़यों का सरमाया बनेगी। इसके वाणिज्यिक उपयोग का अधिकार हम उस कार्पोरेट क्षेत्र को नहीं दे सकते जिसका उद्देश्य देश का विकास न होकर अपनी कम्पनी का विकास होता है। बेशक यह बाजार मूलक अर्थव्यवस्था का दौर है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार राष्ट्रीय सम्पत्ति से खाली होने के दौर में खिंचती चली जाये। यदि एेसा होता तो भारत की आजादी के बाद पूंजी मूलक उद्योगों को सरकार को स्वयं क्यों लगाना पड़ता।
अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर ने तो प्रथम प्रधानमन्त्री पं. नेहरू को लिख दिया था कि ‘‘स्टील जैसे उद्योग को लगा कर तुम क्या करोगे। भारत बहुत गरीब मुल्क है, स्टील उद्योग में बहुत बड़ी पूंजी लगती है। बेहतर है तुम हमसे इसे आयात करो।’’ इसी प्रकार अंतरिक्ष विज्ञान में डा. विक्रम साराभाई जैसे वैज्ञानिक ने वह आधारशिला रखी कि हम आज इस प्रौद्योगिकी में अमेरिका के बराबर आकर खड़े हुए हैं। क्या हम भूल सकते हैं कि 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझाैता करने में तत्कालीन विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने यदि होशियारी और बुद्धिमत्ता न दिखाई होती तो क्या आगे परमाणु परीक्षण करने का अधिकार हमारे हाथ में रहता? अपने परमाणु संयन्त्रों से सम्बन्धित गोपनीय विवरण की जानकारी हम किस प्रकार किसी व्यापारी की पहुंच तक जाने दे सकते हैं? पूरा भारत जानता है कि भाजपा ने 2008 में अमेरिका से परमाणु करार का कितना जबर्दस्त विरोध किया था। उसका कारण यही था कि भाजपा भारत के परमाणु संयन्त्रों के बारे में बहुत अधिक संवेदनशील थी, परन्तु यह प्रणव मुखर्जी ही थे जिन्होंने अपने बुद्धि बल से बिना ‘परमाणु अप्रसार सन्धि’ पर हस्ताक्षर किये भारत को वैध परमाणु शक्ति का दर्जा दिला कर इसे दुनिया का छठा परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बना दिया।
याद रखना चाहिए कि मनमोहन सरकार के दौरान जब अन्तरिक्ष क्षेत्र की एक निजी कम्पनी ने भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत का लाभ व्यापारिक मुनाफे के लिए उठाना चाहा था तो उसे अन्तरिक्ष घोटाले का नाम दे दिया गया था। भारत की एक घोषित अन्तरिक्ष व परमाणु नीति है, इसमें कोई भी बदलाव संसद की मंजूरी से ही किया जाना चाहिए क्योंकि संसद इस देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। यह बेवजह नहीं था कि 2008 में अमेरिका से परमाणु करार करने से पूर्व मनमोहन सरकार ने संसद का दो दिवसीय विशेष सत्र बुला कर इसकी मंजूरी ली थी और उसके बाद श्री प्रणव मुखर्जी ने आगे निर्णायक कदम बढ़ाया था। हम लोकतान्त्रिक देश हैं और यहां की चुनी हुई सरकार ‘लोक कल्याणकारी’ सरकार कहलाती है और इसे राजनीतिक दल ही चलाते हैं और उन्हें सिद्ध करना होता है कि उनका हर कदम राष्ट्रहित का पोषक होता है। आज का समय लाॅकडाऊन से लकवाग्रस्त अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने का है और इसके लिए मोदी सरकार जी-जान से जुटी हुई है। मनरेगा में 40 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त धन की व्यवस्था करके सरकार ने जनकल्याण को वरीयता में रखा है मगर कुटीर व छोटे उद्योगों से लेकर रोज कमा कर रोज खाने वालों के लिए उस घाटे की भरपाई करने की जरूरत भी है जो दो महीने तक उसे घर बैठने की वजह से उठाना पड़ा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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