9/11 को अमरीका पर हुए हमले ने समूचे विश्व को हिलाकर रख दिया था। अमरीका पर तो मानो गाज ही गिर गई थी। विश्व थाने के दरोगा के घर पर चंद हमलावरों ने आक्रमण कर दिया था। भावनात्मक रूप से सारा अमरीका आहत हो गया था। ठीक ऐसे समय ‘सनक’ का सार्थक उपयोग हो गया था। बुश ने ओसामा बिन लादेन के खिलाफ बिगुल बजा दिया था। अहद लिया गया- सारे विश्व में जहां भी आतंकवाद होगा उसे समाप्त कर दिया जाएगा। बुश रोज तहरीरें देने लगे। जिन शब्दों का इस्तेमाल वह करते थे, वे अमेरिका के लोगों को अच्छे लगने लगे थे। अमेरिकावासी भी उन्माद की स्थिति में थे। उन्माद का उन्माद से मिलन हो गया था। रोज खबरें आतीं कि अलकायदा के इतने लोग मार दिए गए, ताबिलान के इतने लोग मारे गए।
तोरा-बोरा में भीषण गोलाबारी हुई तो अमेरिका के लोग गलियों और चौराहों पर खड़े होकर बड़ी स्क्रीन पर एक व्यक्ति को गुस्से में बोलते हुए पाते और वह व्यक्ति था जार्ज वाकर बुश। लोग उसके दीवाने हो गए। बुश अमेरिका की आंख के तारे हो गए, लेकिन इस अंधी दौड़ में एक ऐसी गलती कर गए जिसका खामियाजा अमेरिका को ही नहीं सारे विश्व को भुगतना पड़ रहा है। वह गलती थी ऐसे विषम दौर में बुश-मुशर्रफ मैत्री। तब दुष्ट पाकिस्तान ने बुश के सामने झुककर कहा-‘‘मेरे आका मैं आपका सेवक। आपका गुलाम। आप अलकायदा और तालिबान काे नेस्तनाबूद कर दो। यह हुक्म का गुलाम हर हाल में आपके साथ है।’’अमेरिका ने एक प्राणी की कू-कू को देख उसके गले में पट्टा डाल दिया। कुत्ता एक वफादार जानवर होता है, वह मालिक को नहीं काटता परन्तु उसने तो लादेन को अपने यहां शरण दी, अफगानिस्तान में वह अपने मालिक के खिलाफ षड्यंत्र में लगा रहा। समय पर यह साबित कर दिया कि कुत्ता अगर पागल हो जाए तो उसकी पूंछ भी सीधी हो जाती है और वह काटता भी है। भारत ने लाख समझाने का प्रयास किया कि पाक आतंकवादी देश है, उसका वजूद विश्व शांति के लिए खतरा है। पर अमेरिका के हुक्मरान चाहे वह क्लिंटन हो, ओबामा हो सबके सब दोगली नीतियां अपनाते रहे। विदेश मंत्री के रूप में हिलेरी क्लिंटन पािकस्तान पर नेमतें बरसाती रहीं जबकि अमेरिका जानता था कि उसकी मदद का इस्तेमाल पाक आतंकवाद को सींचने के लिए कर रहा है। अमेरिका नकेल कसता, लेकिन फिर भी उसे सहायता देता रहा।
एक तरफ अमेरिका सारे विश्व के सामने अपनी यह इमेज बनाना चाहता है कि वह आतंकवाद का सबसे बड़ा दुश्मन है। दूसरी तरफ अमरीका सबसे बड़े आतंकवादी देश को सीने से लगाकर रखे हुए है। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद लग रहा था िक समय नई करवट लेगा लेकिन उनके नेतृत्व में भी अमेरिका दोहरी चालें चल रहा है। अमेरिका और भारत के संबंध काफी मधुर हुए। आतंकवाद पर अमरीका ने भारत के सुर में सुर मिलाया लेकिन जब बात मोस्ट वांटेड हाफिज सईद की आई तो भारत को अमेरिका से निराशा ही हाथ लगी। अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने बुधवार को विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज से मुलाकात के दौरान पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाहों को लेकर चेतावनी दी थी। टिलरसन ने यह भी कहा था कि पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा। उधर पाक के विदेश मंत्री ने बयान दिया है कि अमरीका ने उसे जो आकंवादियों की सूची सौंपी है उसमें हाफिज सईद का नाम नहीं है। हाफिज सईद मुम्बई में हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड है। आतंकवादी गतिविधियों में सईद की भूमिका को लेकर उस पर एक करोड़ रुपए का ईनाम भी घोषित है। यद्यपि हाफिज इस साल जनवरी से नजरबंद है लेकिन वह रोजाना भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगलता है। यह वही शख्स है जो भारत के साथ लगते पाकिस्तान के सीमांत गांवों में घूम-घूम कर भारतीय सैनिकों के सिर काट कर लाने के लिए भड़काता रहा है लेकिन इस सबके बावजूद अमेरिका की आतंकी सूची में हाफिज का नाम शामिल नहीं होना चौंकाने के साथ-साथ कई सवाल भी खड़े करता है।
सूचियों का आदान-प्रदान भी रेक्स टिलरसन की पाकिस्तान की यात्रा के दौरान हुआ है। अमेरिकी सूची में हक्कानी नेटवर्क का नाम टॉप पर है। अफगान स्थित हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में अनगिनत अपहरण और अमेरिकी हितों के खिलाफ हमले किए हैं। पाक की आईएसआई और सेना का हक्कानी नेटवर्क को पूरा संरक्षण प्राप्त है। अमेरिका की सूची से यह स्पष्ट हो गया है कि उसकी रुचि अमेरिकी विमान, सैन्य सामग्री बेचने और अपने लिए रोजगार पैदा करने में है, उसे भारतीयों के हितों से क्या लेना-देना। यह बात तो पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिकी अपने हित पहले सोचते हैं। अमेरिका अफगानिस्तान में भारत के कंधे पर बन्दूक रख कर चलाना चाहता है। अमेरिका अगर सोचता है कि पाक को वह सीधा करके रख देगा साथ ही पुचकारता भी रहेगा तो यह उसकी भूल होगी। अमेरिका के टुकड़ों पर पलने वाले पाकिस्तान में आतंकवादी सरेआम नारे लगाते हैं- ‘‘इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन कौन- अमेरिका-अमेरिका।’’ भारतीय नेतृत्व को सतर्क रहकर काम करना होगा। भारत के लाख कहने पर भी ट्रंप ने एच-1 बी वीजा के रास्ते बंद कर दिए हैं। निश्चित रूप से इससे भारत प्रभावित होगा। अमेरिका की दोरंगी चालों को समझना ही होगा।