भारत में उद्योग, साधन सम्पन्नता, आर्थिक प्रगति में बढ़ौतरी के साथ-साथ ही भ्रष्टाचार में भी बढ़ौतरी हुई है। भ्रष्टाचार के विरोध में लगातार कार्रवाई के बाद भी यह समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सरकार की जन कल्याणकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की शिकार हो जाती हैं। राज्य स्तर पर विभिन्न प्रकार के खनन पट्टे जारी करने में, राजकीय भूमि आवंटन, जनहित में केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाएं जैसे मनरेगा, प्रधानमंत्री सड़क योजना, आवास योजना और वन क्षेत्र की सभी योजनाओं में भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे हैं।
जहां-जहां सार्वजनिक धन का निवेश होता है, वहां सतत् निगरानी की जरूरत होती है। मगर तमाम उपायों के बावजूद भ्रष्टाचार हो रहा है। मोदी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देख रही है। पिछले दिनों केन्द्र ने कुछ विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों को जबरन रिटायर कर भेजा और लगातार अफसरों के कामकाज की समीक्षा भी की जाती है। मगर सार्वजनिक जीवन और सरकारी सेवाओं और योजनाओं में भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं।
उससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना को भ्रष्टाचारियों ने जमकर पलीता लगा दिया है, जिसकी बानगी स्वयं राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण की शुरूआती जांच में सामने आई है। बड़ी संख्या में फर्जी कार्ड बनाए गए। फर्जी ईलाज और आपरेशन हो रहे हैं और अस्पताल फर्जी बिल क्लेम कर रहे हैं। आयुष्मान भारत योजना में भ्रष्टाचार उसी तरह हुआ जिस तरह फसल बीमा योजना और शौचालय निर्माण में हुआ था। आयुष्मान योजना के तहत गुजरात में एक ही परिवार के नाम पर 1700 लोगों के कार्ड बनाए जाने, छत्तीसगढ़ में एक ही परिवार के नाम पर 109 कार्ड बनाने और उनमें से 57 की आंख की सर्जरी कराने और 171 अस्पतालों द्वारा फर्जी बिल भेजकर भुगतान लेने जैसे मामले शामिल हैं।
आयुष्मान भारत योजना की राशि के लिए महिलाओं का बिना जरूरत आपरेशन कर गर्भाशय निकालने के मामले में उज्जैन के गुरुनानक अस्पताल के डायरेक्टर के खिलाफ एफआईआर की तैयारी है। मामले में गठित जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा जरूरत नहीं होने पर भी महिलाओं के गर्भाशय निकाले गए। आरोप है कि अस्पताल में आयुष्मान भारत योजना की राशि के लिए 99 दिनों में 539 महिलाओं के गर्भाशय निकाले। इसमें कई गैर जरूरी आपरेशन शामिल हैं। वहीं जबलपुर के मेट्रो हास्पिटल में भी गड़बड़ी की शिकायत मिली है। अस्पताल ने कई मरीजों से योजना में तय पैकेज की राशि लेने के बावजूद ऊपर से भी पैसे लिए।
इसके अलावा जबलपुर संभाग के एक जिले में करीब महीने भर पहले एक अस्पताल के आयुष्मान मित्र द्वारा करीब 60 मरीजों का गलत तरीके से आयुष्मान कार्ड बनाने का मामला भी सामने आया है। जितने भी आयुष्मान कार्ड उस अस्पताल ने बनाए थे, सभी निरस्त कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में ऐसे 150 निजी अस्पताल चिन्हित किए गए हैं। जिन्होंने फर्जी इलाज करने से लेकर बोगस बिल बनाने तक का काम धड़ल्ले से किया है। इसमें से 47 अस्पतालों को योजना से बाहर कर दिया गया है। 1455 नकली गोल्डन कार्ड भी पकड़े गए हैं। निजी अस्पतालों ने आरोग्य मित्रों के जरिये नकली गोल्डन कार्ड बनवाए हैं और उन कार्डों पर बिना इलाज बिल तैयार कर दिए गए। कई मामलों में बिल की रकम भी बढ़ाकर चूना लगाया गया।
योजना के तहत फर्जी कार्ड बनाने का खेल पूरे पंजाब में चल रहा है। कई जिलों से 104 नम्बर हेल्पलाइन पर प्रतिदिन 20 से 30 शिकायतें आ रही हैं। शिकायत करने वालों का कहना है कि अस्पताल पहुंचने पर पता चलता है कि कार्ड अब मान्य नहीं रहा। लिमिट खत्म हो गई है या कार्ड किसी और के नाम से जारी हो रखा है। चार माह में अब तक दो हजार से अधिक शिकायतें पहुंची हैं। उनकी जांच आगे स्टेट हेल्थ एजेंसी भी कर रही है। एजेंसी ने अब तक 264 कार्ड फर्जी पाए हैं। इनमें से 144 रद्द कर दिए गए हैं। शेष को रद्द करने की प्रक्रिया जारी है। ये तो वो पीड़ित हैं, जिन्हें शिकायत करने की प्रक्रिया पता है। सैकड़ों ऐसे पीड़ित भी हैं, जिन्हें हेल्पलाइन नम्बर के बारे में पता ही नहीं है। जल्द ही फर्जीवाड़े का पूरा पर्दाफाश हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के करीब 50 करोड़ लोगों को मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए इस योजना की शुरूआत सितम्बर 2018 में की थी। इस योजना के तहत अब तक 70 लाख से ज्यादा लोगों का इलाज हुआ है। सरकार ने खर्च वहन करते हुए 4500 करोड़ से ज्यादा रकम का भुगतान भी किया है। इनमें से कितने बिल फर्जी हैं, इसका कोई निश्चित आकलन नहीं किया जा सकता। दरअसल इस योजना को लागू करने में आधारभूत कमियों के चलते घोटाले हो रहे हैं। आयुष्मान भारत के पैनल में अस्पतालों को शामिल करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है। जिनमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हो रही हैं।
कई निजी अस्पतालों ने पैनल में शामिल करने के लिए रिश्वत मांगे जाने की शिकायतें भी हैं। योजना के विभिन्न इलाज पर आने वाले खर्चे का वैज्ञानिक आकलन भी नहीं किया जाता। कुछ इलाज तो ऐसे हैं कि निर्धारित राशि में उनका इलाज हो ही नहीं सकता। इसलिए निजी अस्पताल गड़बड़ी कर इसकी भरपाई करने की कोशिश करते हैं। अधिकांश अस्पताल समय पर सरकार की अदायगी नहीं होने की शिकायत भी कर रहे हैं। अब सवाल अहम है कि क्या कोई भी सरकारी योजना भ्रष्टाचार से रहित है? आयुष्मान योजना का बंटाधार हो चुका है। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने के लिए योजना की मूलभूत कमियों को दूर करना होगा।