भारत का ओलम्पिक गौरव

भारत का ओलम्पिक गौरव
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भारत का ओलम्पिक खेलों में इतिहास 124 साल पुराना है। पेरिस 1900 से लेकर पेरिस 2024 तक ओलम्पिक के साथ भारत का रिश्ता खास रहा है। इस दौरान बहुत उतार-चढ़ाव भी आए और कई बार दिल टूटने की घटनाएं भी हुईं। देशवासियों ने आंसू भी बहाए। फिर भी ओलम्पिक भारत के लिए बेहद खास रहा। भारतीय हॉकी का इतिहास काफी समृद्ध रहा। हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद को कौन भुला सकता है। पेरिस ओलम्पिक में पहलवान विनेश फोगाट के दुखद घटनाक्रम के बाद भारतीय हॉकी टीम ने ओलम्पिक में कांस्य पदक और भाला फैंक में नीरज चोपड़ा ने रजत पदक जीतकर भारत को काफी हद तक संतोष दिया है।
भारत के लिए हॉकी में स्वर्णिम युग की शुरूआत 1928 में एम्स्टर्डम ओलम्पिक से हुई थी। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने दिग्गज खिलाड़ी ध्यान चंद के नेतृत्व में 29 गोल किए और एक भी गोल खाए बिना अपना पहला स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद टीम ने 1932 लॉस एंजिल्स ओलम्पिक में भी स्वर्ण पदक जीता था और अपने खिताब का सफलतापूर्वक बचाव किया था। भारत ने फिर 1936 बर्लिन ओलम्पिक में लगातार तीसरा स्वर्ण पदक जीतकर स्वर्णिम हैट्रिक लगाई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के चलते 1940 और 1944 में ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं किया गया था और फिर 1948 में लंदन ओलम्पिक से भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपने पहले ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में हिस्सा लिया। भारत ने यहां भी अपनी छाप छोड़ी और हॉकी में लगातार चौथा स्वर्ण जीता। इसके बाद 1952 और 1956 में भी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल रही थी। भारत ने इस तरह लगातार छह ओलम्पिक में हॉकी में स्वर्ण पदक जीते थे।
भारतीय हॉकी टीम 1960 रोम ओलम्पिक में पाकिस्तान से एक गोल से हार गई थी अैर इस तरह उसका स्वर्ण पदक जीतने का सिलसिला टूट गया था। 1980 में मास्को आेलम्पिक में स्वर्ण जीतने के बाद से भारतीय हाकी का दबदबा गायब हो गया और टीम टो​क्यो 2020 से पहले कोई पदक नहीं जीत पाई थी। मैं उस इतिहास में नहीं जाना चाहता कि भारतीय हॉकी का पतन क्यों और कैसे हुआ और इसमें हॉकी फैडरेशन की क्या भूमिका रही। भारत ने टोक्यो ओलम्पिक में हाकी में 41 साल का सूखा समाप्त किया था और मनप्रीत सिंह की कप्तानी में कांस्य पदक जीता था। इस बार हाकी टीम की कोशिश पदक का रंग बदलने की थी लेकिन हरमन प्रीत सिंह की कप्तानी में भारत ने स्पेन को 2-1 से हराकर लगातार दूसरी बार कांस्य पदक जीता है। टीम में हरमन प्रीत सिंह, अनुभवी गोलकीपर श्रीजेश, ​िडफैंडर जरमनप्रीत सिंह सहित सभी खिलाड़ियों ने अपना पूरा दमखम दिखाया। गोलकीपर श्रीजेश की विदाई भी कांस्य पदक के साथ हुई। श्रीजेश का खेल हॉकी प्रेमियों को वर्षों तक याद रहेगा।
जहां तक भाला फैंक एथलीट नीरज चोपड़ा का सवाल है उससे पदक की उम्मीद तो पहले से ही थीं। टोक्यो ओलम्पिक के स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा पेरिस में अपने प्रदर्शन को दोहरा नहीं सके और उन्हें रजत पदक पर संतोष करना पड़ा। भाला फैंक में पाकिस्तान के नदीम अपने दूसरे प्रयास में 92.97 मीटर का ​िरकॉर्ड थ्रो कर स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे। इसमें कोई संदेह नहीं कि नीरज ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। एक अधिक वजन वाले 13 वर्षीय बच्चे से लेकर आत्मविश्वास हासिल करने के लिए खेलों को चुनने और ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले एथलीट बनने तक नीरज ​चोपड़ा ने एक लम्बा सफर तय किया है।
टोक्यो आेलम्पिक में इतिहास रचने के एक साल बाद नीरज चोपड़ा ने अमेरिका के ओरेगन में विश्व एथलेटिक चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतकर एक और इतिहास रचा था। नीरज चोपड़ा अब तक कई रिकॉर्ड कायम कर चुके हैं। हंगरी के बुडापेस्ट में विश्व एथलेटिक चैम्पियनशिप 2023 में नीरज ने स्वर्ण पदक जीता था और इस प्रतियोगिता में पाकिस्तान के नदीम अरशद को पीछे छोड़ दिया था। खेल में हार-जीत तो होती ही रहती है। बेहतर खिलाड़ी वही होता है जो उतार-चढ़ावों को खेल भावना से लेकर आगे बढ़ जाता है। नीरज खुद स्वीकार करते हैं कि कुछ कमियां जरूर रहीं फिर भी उन्हें आगे बढ़ना है। आगे बहुत कुछ जाकर ठीक करना है। जो सोचा था वो भले ही नहीं हो पाया लेकिन पदक पदक होता है। नीरज का यह कहना महत्वपूर्ण है कि पेरिस में न सही कहीं और सही, फिर से बजेगा हमारा राष्ट्रगान। यही जज्बा खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने की प्रेरणा देता है। भारतीय युवा भाला फैंक में ज्यादा रुचि नहीं रखते थे। नीरज चोपड़ा की लगातार विजय ने एथलीटों को भाला फैंक की और आकर्षित किया है। एशिया अब जेवेलिन थ्रो का हब बन चुका है। जरूरत है एथलीटों को ज्यादा स्पोर्ट और प्रोत्साहन की। भारतीय हाॅकी के भी स्वर्णिम दिन लाैट सकते हैं। अगर प्रतिभाओं को खोजकर तराशे जाने का सिलसिला तीव्र गति से जारी रहे। देशवासियों को पदक विजेता खिलाड़ियों पर गर्व है और वे भारतीय खिलाड़ियों के ​िलए आदर्श बनेंगे।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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