एक आस्था-एक धर्म, जय श्रीराम…

एक आस्था-एक धर्म, जय श्रीराम…
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भारत जैसे भूखंड में करोड़ों लोगों के हृदयार्विंद में बसने वाले प्रभु श्रीराम एक आस्था और धर्म के प्रतीक हैं। संपूर्ण मानव जाति को ध्यान में रखकर प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम की उपाधि मिली जिसमें सभी धर्म और जाति समुदाय के लोग हैं, जहां आज तक उनकी अविरल मनोरम छवि विद्यमान है।
''ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम-रोम प्रति बेद कहै'' तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा-बाल रूप श्रीराम ने माता कौशल्या को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड व्याप्त हैं। यह अतिश्योक्ति नहीं कि इस लेख के प्रेरणास्रोत बने पंजाब केसरी के प्रमुख संपादक श्री अश्विनी कुमार चोपड़ा जी और मेरी भावनाओं को अगर आज लेखनी में परिवर्तित करने की बलवती इच्छा हुई तो श्रेय उनके लिखित 'रोम-रोम में राम' सीरीज को मिलती है खासकर जब पंजाब केसरी की चेयरमैन और सात्विक विचारों वाली श्रीमती किरण चोपड़ा जी ने कल राम धुन से ओतप्रोत वीडियो सन्देश भेजा।
हिन्दू पंचांग के अनुसार जनवरी 22, 2024 को सोमवार पौष माह के शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि थी पर अयोध्या में भगवान राम के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हुई यानी रामलला विराजमान हुए। इस दिन कूर्म द्वादशी थी। सत्य है जब श्री राम का इस धरा पर हजारों वर्षों पहले अवतरण हुआ था शायद ही कोई प्रमुख समुदाय सनातन धर्म से हटकर दिखा हो। लेकिन बिडम्बना है जिस पुरुषोत्तम राम ने सबरी के जूठे बेर बहुत ही सहजता से खाये, केवट की नाव पर चढ़ने से पहले अपनी शांत कृतज्ञ प्रतिभा से सभी प्रश्नों का जवाब दिया हो, सभी विद्वानों और मर्मज्ञों को अपनी सदाचार धर्मज्ञता का परिचय दिया हो उनके जन्मस्थान की सुनिश्चिता उच्चत्तम न्यायालय के आदेश के पश्चात प्राप्त हुआ। क्या ये अब भी विवाद या किसी तरह के टिप्पणी से रहित हो जैसी अमन की कामना की जा सकती है, हमें ये भी साबित करना होगा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। श्रीराम किसी एक खास धर्म और जाति के प्रतीक होंगे परन्तु उनके अपने अनूठे चरित्र ने सभी मानव जाति के लिए बतौर उदाहरण बनकर बौद्धिक, मौलिक और वैयक्तिक मूल्यों को प्रभावित किया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अगवाई में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की, साथ ही देश-विदेश में लोगों को राम रस से सराबोर किया जो अतुल्य सराहनीय है। यह वास्तव में आत्मदृढ़ता तथा संकल्प का परिचायक है। श्री राम की छवि को किसी धर्म विशेष या समुदाय से जोड़ने की भूल ना करें क्यूंकि समाज में कैसी व्यवस्था हो, लोगों का घर से लेकर बाहर, सामाजिक मूल्यों को किस तरह जीया जाये यह राम चरित्र से बेहतर कहीं भी व्याख्यान में नहीं है और ना ही मूल्यों की कसौटी पर आंकलन किया गया। हर इन्सान जितनी खामियों के साथ जी रहा है उसे स्वयं इस बात की भली भांति समझ है कि राम को साधारण मानव की तरह समझना, अल्पबुद्धिमता का परिचायक होगा।
पूर्व काल में मानव जाति को संदेश देने के लिए नैतिक मूल्यों का उदाहरण स्वरूप जीना, सभी धर्मों को पूरा करना, वचन का पालन करना तथा जीवन के हर पहलू में अपने वचन या कर्मों से जीवन शैली को प्रभावित करने वाले व्यक्तित्व असाधारण, विलक्षण गुणों से युक्त सदाचारी करुणानिधान राम ने जो नींव रख दी है वो अनंत काल तक अविस्मरणीय रहेगा।
हमें अपनी पारस्परिक मतभेद और वैमनस्यता से परे हटकर सामाजिक उत्थान की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, करोड़ों की आस्था का सम्मान करना होगा। इसके अलावा बेहतर इंसानियत के लिए विभिन्न धर्मों के श्रेष्ठ सम्मानित व्यक्तित्व को सराहना भी एक महत्वपूर्ण कदम है समाज निर्माण में।
प्रभु श्रीराम केवल एक अविरल मनमोहक धर्मज्ञ व्यक्तितव ही नहीं बल्कि धर्मावतार हैं जिनके जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की प्राणप्रतिष्ठा होना एक ऐतिहासिक घटना है जिसका इंतज़ार लाखों करोड़ों आंखें बेसब्री से कर रही, जो भविष्य में राम राज्य जैसी व्यवस्था देश दुनिया में कायम करने का पहला आयाम।

– डॉ. अभिनाश झा

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