इजराइल-हमास युद्ध को चलते एक महीना पूरा हो चुका है। पिछले महीने की 7 तारीख को इजराइल पर हमास के जबरदस्त हमलों ने सबको हिला कर रख दिया था। इसके बाद इजराइल ने हमास को खत्म करने का संकल्प लिया और उसने गाजा पर तीन तरफा हमला कर दिया। हमास के हमलों में इजराइल के 1400 लोगों की जान गई थी लेकिन इजराइली हमलों में 10 हजार फिलस्तीनियों की जान जा चुकी है। हमास ने जिन 240 फिलस्तीनियों को बंधक बनाया था उनमें से कुछ को रिहा किया जा चुका है लेकिन अभी भी बंधकों की रिहाई पर गतिरोध बना हुआ है। इस युद्ध के बीच इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की कुर्सी भी हिलती नजर आ रही है। इजराइल में विपक्ष और मीडिया लगातार यह सवाल पूछ रहा है कि क्या नेतन्याहू हमास हमले की जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे। हालांकि नेतन्याहू इन सब सवालों को खारिज करते आ रहे हैं और वह इस्तीफा देने से इन्कार करते आ रहे हैं लेकिन जनमत सर्वेक्षण बता रहे हैं कि इजराइल का बड़ा बहुमत उनके खिलाफ हो चुका है। रिपोर्टें बता रही हैं कि पूर्व रक्षामंत्री बेनी गैंटस को 48 फीसदी लोगों ने देश के अगले पीएम के रूप में पसंद किया है जबकि नेतन्याहू केवल 28 फीसदी लोगों की पसंद है। इजराइल में विपक्ष और नेतन्याहू की पार्टी की मिलीजुली सरकार चल रही है। वहां के संविधान के मुताबिक जब भी इजराइल युद्ध लड़ता है तो वहां विपक्ष भी वार कैबिनेट के जरिये सत्ता में आ जाता है। इस समय बेनी गैंटस इजराइल की वार कैबिनेट में शामिल हैं। नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के कई आरोपों में मुकद्दमा चल रहा है। विपक्ष का आरोप है कि नेतन्याहू युद्ध की आड़ में अपनी खुद की कुर्सी बचाने में लगे हुए हैं और वह अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए इसका पूरा सहारा ले रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र आरोप लगा रहा है कि इजराइल ने गाजा को बच्चों की कब्रगाह बना दिया है। फिलहाल युद्ध विराम या सैन्य अभियानों को अस्थायी रूप से रोकने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। जो मुद्दे उभर कर सामने आए हैं उनमें पहला हमास द्वारा 242 बंधकों की रिहाई , दूसरा गाजा को मानवता के आधार पर राहत सामग्री देना और तीसरा युद्ध विराम कराना।
इन तीन मुद्दों ने विश्व जनमत को दो समूहों में विभाजित कर दिया है। संघर्ष के एक किनारे पर 7 अक्तूबर को हमास द्वारा की गई आतंकवादी गतिविधियां हैं और दूसरी तरफ आईडीएफ का प्रतिशोध है जो गाजा में भारी विनाश, भूख और निर्दोषों की मौत के रूप में सामने आ रहा है। आज की तारीख में कोई भी राष्ट्र इस युद्ध में तटस्थ होने का दिखावा नहीं कर सकता। इज़राइल और हमास दोनों की रणनीतियां इस गंभीर समस्या को और अत्यधिक जटिल बनाकर विश्व शांति के लिए ख़तरा बढ़ाने का काम कर रहीं।
हमास के लिए 'करो या मरो' की स्थिति है। इसलिए उनके पास शुरू से ही स्पष्ट रणनीति रही है लेकिन इस रणनीति का अधिकांश हिस्सा रहस्य में डूबा हुआ है। कभी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इजराइल पहुंच जाते हैं तो कभी अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन तेल अवीव पहुंच जाते हैं लेकिन युद्ध विराम का मार्ग नहीं ढूंढा जा सका है। इजराइल ने गाजा शहर को पूरी तरह से घेर लिया है। ऐसा लगता है कि वह गाजा पट्टी को दो हिस्सों में विभाजित करना चाहता है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने छुपकर वेस्ट बैंक में अलफतेह मुख्यालय का दौरा किया था। इसके व्यापक राजनीतिक संकेत हैं। इजराइल गाजा शहर में हमास के नागरिक प्रशासनिक नियंत्रण और युद्ध क्षमता को पूरी तरह से नष्ट करने पर ध्यान केन्द्रित करेगा। यद्यपि युद्ध में हमास को अधिक नुक्सान होने की खबरें आ रही हैं लेकिन नुक्सान तो इजराइल का भी हो रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसा माहौल सृजत हो रहा है कि नेतन्याहू जाने वाले हैं। अमेरिका को भी यह लगता है कि नेतन्याहू के अधिक समय तक इजराइल का प्रधानमंत्री बने रहने की सम्भावना नहीं है। इसलिए वह सीधे युद्ध में उलझना नहीं चाहता।
इजराइल-हमास युद्ध बढ़ने के साथ अमेरिका के भी एक बड़े संघर्ष में शामिल होने का जोखिम है । मिडिल ईस्ट यानी मध्य पूर्व वह क्षेत्र है जहां पर करीब 45000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। ऐसे में अगर अमेरिका इस जंग में शामिल हुआ तो स्थिति काफी उलझ सकती है। तुर्की में 1885 अमेरिका सैनिक, इराक में 2500, सीरिया में 900, जॉर्डन में 2936, कुवैत में 13500, सऊदी अरब में 2700, बहरीन में 9000, कतर में 8000, यूएई में 3500 और कुछ अमेरिकी सैनिक ओमान में मौजूद हैं। इजराइल में कितने अमेरिकी सैनिक हैं इस बारे में कोई जानकारी नहीं है लेकिन यहां पर कम से कम एक अमेरिकी सैन्य अड्डा तो है। बहरीन में एक अमेरिकी नौसेनिक अड्डा है जो नौसेना के सेंट्रल कमांड और अमेरिकी पांचवें बेड़े का मुख्यालय है।
दुनिया देख रही है कि इजराइल अमेरिका की सहायता से अब अपनी हदें पार कर रहा है और जो कुछ हो रहा है वह अमानवीय है। अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर लोगों को भोजन, दवा से वंचित िकया जा रहा है। देखना होगा कि वैश्विक शक्तियां युद्ध रोकने में क्या रुख अपनाती हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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