हालांकि इंडी गठबंधन ऐसे ही बना है जैसे कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा। बावजूद इसके राहुल गांधी और कुछ अन्य नेता कह रहे हैं कि 4 जून के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे। उनका यह कहना समझ से बाहर है। इसी प्रकार की भाषा तेजस्वी यादव ने बोली है। मोदी प्रधानमंत्री रहें अथवा नहीं, इसका फैसला इस प्रकार से नहीं, बल्कि जनता करेगी।जहां तक बात 400 पार की है इस पर 4 जून से पूर्व कुछ नहीं कहा जा सकता। जो लोग सोचते हैं कि 400 पार केवल एक नारा है, वे महंगाई, बेरोजगारी, हिंदू-मुस्लिम, आदि की दुहाई देते हैं कि भाजपा 400 पार तो क्या शायद 250 भी न ला पाए। कोई कहता है कि जीएसटी बहुत है या एंटी-इनकंबेंसी है। लालू यादव का तो कहना है कि 4 जून को इंडी गठबंधन सरकार बनाने जा रहा है। यह बात हकीकत से दूर मालूम होती है मगर वक्त क्या करवट ले ले, कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे जिस प्रकार से पिछले दस साल मोदी जी ने डट कर विकास कार्य किए हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इतने काम कराने के बाद तो जनता के बीच वोट मांगने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, मगर बावजूद इसके अब तक 195 रैलियां कर चुके हैं और एक चरण बाकी रहता है। कुछ लोगों का कहना है कि जो इंडी गठबंधन शुरुआत में बिल्कुल ज़ीरो था आज हीरो बन कर जीत की गुहार लगा रहा है। किसी का सोचना है कि जिस प्रकार से मोदी सरकार ने ईडी व सीबीआई के छापे मारे हैं उससे मोदी सरकार को काफी हानि हुई है। इसके अतिरिक्त देश में एक ऐसा भी गुट है जिसे प्रधानमंत्री मोदी बिल्कुल भी पसंद नहीं जिनमें अधिकतर नकारात्मक सोच के लोग हैं।
एक अन्य गुट उन मुस्लिमों का भी है जोकि सोचते हैं कि मोदी जी ने उनके लिए कुछ विशेष नहीं किया है। मगर तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि जहां कुछ लोग भारत में उनको गलियां दे रहे हैं वहीं पाकिस्तान में उनके कसीदें पढ़े जा रहे हैं कि काश मोदी जैसा ही दमदार, वफादार वजीर-ए-आज़म उनका भी होता।
इन चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर पर बातें करना तो चलता था मगर मुस्लिम, मटन, मंगल सूत्र, रिज़र्वेशन, अधिक बच्चे पैदा करने वाले भाषणों से किरकिरी फैली है, क्योंकि वे वही प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सदा ही कहा है कि मुस्लिम उनकी संतान की भांति हैं, वे उनके साथ बराबरी का सुलूक करना चाहते हैं और यह कि हर मुस्लिम के एक हाथ में क़ुरान और दूसरे में कंप्यूटर देखना चाहते हैं। कुछ लोगों ने शब्द, "मुजरा" पर भी आपत्ति जताई है। वह सब ठीक है, मगर जब मोदी जी को इन्हीं आपत्ति दर्ज कराने वालों ने टनों के हिसाब के साथ गालियां, कोसने और बददुआएं दीं तब इन में से किसी ने आपत्ति क्यों नहीं जताई। तुम्हारा खून तो खून और दूसरे का खून पानी। बदजबानी और बदगुमानी किसी भी ओर से नहीं होनी चाहिए।
जहां तक इंडी गठबंधन के प्रधानमंत्री चेहरे की बात है तो उसमें एक अनार, सौ बीमार वाली बात है। राहुल गांधी और खड़गे से लेकर ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव तक पंक्ति में खड़े हैं। भारत की राजनीित ही ऐसी है कि सभी को अधिकार है राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री बनने का, मगर गठबंधन में एका न होने की समस्या बनी ही रहती है, जैसे पंजाब में तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं, मगर दिल्ली में एक साथ हैं। जिस समय इंडी की बुनियाद पड़ी थी तब बिहार के दिग्गज नेता, नीतीश यादव इसका प्रधानमंत्री का चहरा थे, मगर बहुत जल्द ही गठबंधन का उनसे मोह भंग हो गया और नीतीश का उन से। आज वे मोदी के साथ हैं। यह सब ठीक है, क्योंकि भारत जैसे बड़े जनतंत्र में सभी को अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी है और कौन जीत रहा है या हार रहा है, सबको अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी है। जहां तक 4 जून की बात है, काफ़ी लोग सोच रहे हैं कि भाजपा सरकार बना लेगी और बहुत से मानते हैं कि शायद बहुमत न आए। जिस प्रकार से हर चुनाव भिन्न होता है, यह भी ऐसा ही है। इस चुनाव की सबसे विशेष बात यह भी है कि वोटर ख़ामोश हैं और भले ही कितने ही एग्जिट पोल आ जाएं, नतीजे अवश्य ही चौंकाने वाले होंगे। कोई अजब नहीं कि इस बार मतदाताओं की खामोश पोलिंग मोदी को चमत्कारी आंकड़ा पार करा दे।