राजस्थान, हिमाचल, छत्तीसगढ़ और झारखंड चार राज्यों ने पुरानी पैंशन स्कीम को बहाल कर दिया है। इनमें से चार कांग्रेस या कांग्रेस गठबंधन शासित राज्य हैं, जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, उसमें भी पुरानी पैंशन स्कीम बहाल करने के लिए समिति का गठन कर दिया गया है। इससे अन्य राज्यों में भी पुरानी पैंशन स्कीम को लागू करने का दबाव बढ़ गया है। पुरानी पैंशन स्कीम लागू करने के लिए महाराष्ट्र के 18 लाख सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए हैं। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वहां भी पुरानी पैंशन योजना राज्य सरकारों के गले की फांस बन गई है। महाराष्ट्र सरकार ने यद्यपि पुरानी पैंशन स्कीम पर विचार के लिए समिति के गठन की घोषणा कर दी है लेकिन हड़ताली कर्मचारी किसी भी कीमत पर पुरानी पैंशन स्कीम को लागू करने की घोषणा से कम मानने को तैयार नहीं हैं। यद्यपि आर्थिक विशेषज्ञ ओपीएस लागू करने के फैसले को घातक बता रहे हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह आर्थिक दिवालियेपन की रेसिपी है। इससे देश पर आर्थिक बोझ बहुत बढ़ जाएगा। ऐसी नीतियों को रोका जाना चाहिए जो भविष्य में वित्तीय आपदा का कारण बन सकती हैं, लेकिन समाज के एक बड़े वर्ग की राय पूरी तरह से अलग है।
दरअसल 1 अप्रैल, 2004 को तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पुरानी पैंशन योजना को बंद करने का फैसला किया था। इसके बाद 2004 में ही पुरानी पैंशन यो॓जना के बदले राष्ट्रीय पैंशन योजना शुरू की गई थी। पुरानी पैंशन व्यवस्था के तहत सरकार कर्मचारियों को सेवानिवृत्त होने के बाद एक निश्चित पैंशन देती थी। यह कर्मचारी के रिटायरमेंट के समय उनके वेतनमान पर आधारित होती थी। इसमें रिटायर कर्मचारी की मौत के बाद उनके परिजनों को भी पैंशन का लाभ दिया जाता था। लेकिन नई पैंशन योजना के तहत कर्मचारियों की सैलरी से 10 फीसदी की कटौती होती है। इसके साथ ही पुरानी पैंशन योजना के तहत कर्मचारियों को जनरल प्रोविडेंट फंड (जीपीएफ) की सुविधा भी मिलती थी। वहीं नई पैंशन स्कीम में यह व्यवस्था नहीं है। इसमें पैंशन के तौर पर कितनी रकम मिलेगी, इसकी गारंटी भी नहीं मिलती है। नई पैंशन योजना शेयर बाजार पर आधारित है, जबकि पुरानी पैंशन स्कीम में ऐसा कुछ भी नहीं था।
अभी तक भाजपा शासित राज्य आेपीएस को लागू करने के मामले में हिचकिचाहट जरूर दिखा रहे हैं लेकिन कुछ राज्य सरकारें ओपीएस पर लौटने पर असहमत भी दिखाई नहीं देती। अतः अब इस मुद्दे का हल भी खोजा जा रहा है। दरअसल भारत में ओल्ड पैंशन स्कीम का संबंध रिटायरमैंट के बाद सरकारी कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। अगर सरकारी कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा का आधार नहीं दिया जाएगा, तो गुड गवर्नेंस को जमीन पर उतार पाना सम्भव नहीं हो पाएगा। कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है कि अर्थशास्त्री अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन जब 60 वर्ष तक ओपीएस लागू होने के बाद देश का विकास नहीं रुका तो अब कौन सी वजह है कि देश आर्थिक दिवालियेपन पर आ जाएगा। दूसरी सबसे बड़ी बात मानवीय आधार की है। बुढ़ापे में पैंशन ही पति और पत्नी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है। संयुक्त परिवार इसलिए टूट रहे हैं कि औलाद बूढ़े मां-बाप का खर्च झेलने को तैयार नहीं हैं, जिनकी जेब खाली है। यह सामाजिक सच्चाई है कि वृद्ध मां-बाप का परिवारों में सम्मान या सेवा तभी होती है जब तक उनके खातों में पैसा है। हो सकता है कि धनी परिवारों में ऐसी दिक्कतें नहीं आएं लेकिन मध्यम वर्गीय या गरीब परिवारों में यह सच्चाई है। आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की जगनमोहन रेड्डी सरकार ने पैंशन का ऐसा फार्मूला पेश किया है जिसकी तरफ केन्द्र सरकार ने भी रुचि दिखाई है। इस गारंटीड पैंशन स्कीम या पक्की पैंशन स्कीम के तहत नई व पुरानी पैंशन स्कीमों का मिश्रित फार्मूला बनाया गया है। यह मिश्रित प्रणाली लागू होने से भविष्य की सरकारों पर आर्थिक बोझ भी घटेगा और कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी, साथ ही पैंशन कोष में धनराशि भी जमा होती रहेगी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को सुनाए अपने फैसले में साफ कहा था कि केन्द्र सरकार पुरानी पैंशन योजना को फिर से लागू करे और नई पैंशन नीति जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2004 में लागू की थी, उसे समाप्त करे। यह फैसला सीएपीएफ को लेकर आया जिसमें कहा गया कि सशस्त्र बलों की बहाली चाहे आज हो या कभी भी हो उसमें इस पुरानी पैंशन योजना को सरकार लागू करे। हालांकि संसद में इस पर सरकार ने कहा था कि यह फैसला गृह मंत्रालय के अंदर आता है। ऐसे में अभी इस पर कोई विचार नहीं किया गया है। वित्त मंत्रालय ने कहा कि यह मामला इतना सरल नहीं है। ऐसे में इस पर अभी सीधे कोई विचार नहीं किया गया है और इस पर अभी जवाब नहीं दिया जा सकता है, जबकि विपक्ष के कई नेता इसको लागू करने के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं।
केन्द्र सरकार ने पुरानी पैंशन योजना को कुछ शर्तों के साथ लागू करने का फैसला केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए सुनाया है, लेकिन यह मांग तेज हो गई है कि सभी को पुरानी पैंशन योजना का लाभ मिल सके। अब जबकि ओपीएस बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है और कोई भी राजनीतिक दल सत्ता खोना नहीं चाहता। अब देखना यह है कि इस मुद्दे का स्वीकार्य हल क्या निकलता है?
आदित्य नारायण चोपड़ा