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या देवी- विद्यावन्त जनं कुरू

आज विजयदशमी या दशहरा है अर्थात देवी मां भवानी द्वारा पृथ्वी को मदमत्त राक्षसों से मुक्ति दिलाने का दिवस और राम की रावण पर विजय का महापर्व।

आज विजयदशमी  या दशहरा है अर्थात देवी मां भवानी द्वारा पृथ्वी को मदमत्त राक्षसों से मुक्ति दिलाने का दिवस  और  राम की रावण पर विजय का महापर्व। यह पर्व भारतीय संस्कृति के उस सात्विक पक्ष की शाश्वत विजय का उद्घोष है जो समय और काल के निरपेक्ष मानवीय मूल्यों की सामाजिक संस्थापना करता है। इसका धार्मिक पक्ष भी पूरी तरह निरपेक्ष है जो सद्गुण के शक्तिपुंज रूप में मां दुर्गा की अर्चना करता है। 
मां के परम दिव्य और दैदीप्यमान शक्ति स्वरूप के चरमोत्कर्ष का यह  ऐसा अनवरत स्पर्श भाव है जो व्यक्ति को अपने जन्म लेने का उद्देश्य भी खोलता है और बताता है कि मां की सेवा व सम्मान उसके लौकिक जीवन के कष्टों को कम करने में उत्प्रेरक का काम करते हैं। रावण पर राम की विजय के यशोगान निहितार्थ भारतीय संस्कृति में इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि वेद ज्ञाता महापंडित ऋषिपुत्र रावण ने  स्त्री के मातृत्व को ही चुनौती देने का कार्य  किया था। रावण के बल व एश्वर्य की कोई सीमा नहीं थी, उसके तप का कोई दूसरा उदाहरण नहीं था और उसकी बु​िद्ध का कोई ​अन्त नहीं था। 
भारतीय संस्कृति में उल्लिखित पहले शास्त्रार्थ (संवाद-परिवाद) में उसने ब्रह्म की पुत्री वेदवती को वैदिक ज्ञान की प्रतियोगिता में ही पराजित कर डाला था। इसके बावजूद वह  राक्षस कुल का अधिष्ठाता केवल अपने अहंकार में स्त्री मर्यादा को भंग करने की कुचेष्टा से बन गया। किन्तु राम – रावण युद्ध का दूसरा पक्ष पूर्णतः राजनीतिक है जो भारत की जनशक्ति के प्रचंड प्रताप का द्योतक है। 
राम ने सामान्य जन वनवासी बानर,भालुओं आदि की सेना तैयार करके रावण की दैवीय शस्त्र सुसज्जित महासेना का विनाश कर डाला और लंका पर विजय प्राप्त करके उसके वैभव को ठोकर मारते हुए राजसत्ता रावण के छोटे भाई विभीषण को सौंप कर जनसत्ता को ही प्रतिष्ठापित किया। इस प्रकार सद्गुणों की इन कथाओं को भारतीय संस्कृति में समाहित किया गया है जिससे व्यक्ति अपने सामाजिक जीवन में सदाचार की तरफ ही झुका रहे। इस सदाचार का कोई मजहब या धर्म कभी नहीं हो सकता।
व्यक्ति सदाचार पर चलने के लिए ही धर्म का पालन करता है। धर्म सदाचार का माध्यम होता है अतः तृणमूल कांग्रेस की सांसद श्रीमती नूसरत जहां द्वारा कोलकाता के दुर्गा मंडप में नवदुर्गा उत्सव में सक्रिय भाग लेने पर कुछ इस्लामी उलेमा जो शोर मचा रहे हैं वह निर्रथक हैं क्योंकि संस्कृति धर्म से कभी भी बंधी हुई नहीं होती है, दूसरी तरफ इसी शहर के  बेलाघाट में लगे दुर्गा पंडाल  का केन्द्रीय विचार सर्वधर्म समभाव या धर्म निरपेक्षता होने के चलते इसमें विभिन्न धर्मों के प्रतीकों का गुणगान होने पर शोर-शराबा मचाया जाना पूरी तरह नाजायज है। 
नुसरत जहां यदि​​ दुर्गा मंडप में ढोलक पर ताल देते हुए नृत्यभंगिमा में आती है तो इससे इस्लाम को कोई हानि नहीं होती है क्योंकि वह एक जैन व्यापारी से विवाह करने के बावजूद अल्लाह पर मुसलसल यकीन रखने वाली मुस्लिम महिला हैं और कुरान-ए- मजीद उनकी इबादत है। इसी प्रकार दुर्गा पंडाल से अजान का होना किसी भी रूप में हिन्दू धर्म की अवमानना नहीं है क्योंकि इसमें सिर्फ ईश्वर या अल्लाह का ही गुणगान है और भारत वासियों को गांधी बाबा यही सिखा कर गये हैं कि ‘ईश्वर- अल्लाह तेरो नाम – सबको सन्मति दे भगवान।’  प. बंगाल में दुर्गा पूजा पर्व को जो लोग केवल एक धार्मिक कृत्य मानते हैं उन्हें इस धरती की महान संस्कृति का रत्ती भर भी इल्म नहीं है, यह तो वह धरती है जिसमें काजी नजरुल इश्लाम जैसे मनीषी ने मां दुर्गा की अभ्यर्थना में रचनाएं की हैं।  
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना  हाल ही में नई दिल्ली से ढाका लौटी है किन्तु विजदशमी के दिन वह भी इस शहर में स्थित ठाका देवी के दर्शनों के लिए जाती हैं। प. बंगाल में लाखाें की संख्या में लगने वाले शहर से लेकर गांव तक दुर्गा पंडालों की व्यवस्था मुस्लिम नागरिक संभालते हैं। दुर्गा पूजा करने वाले ही जब दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं तो वे भवानी से समस्त जनों के कल्याण की प्रार्थना करते हैं, इसमें धर्म नहीं बल्कि मानव समाज के कल्याण का हित छिपा होता है। इसी प्रकार इस्लाम में किसी दूसरे धर्म के मानने वाले के साथ अन्याय करना भी कुफ्र के दायरे में आता है।
इस्लाम का मूल पैगाम यही है कि ‘अल्लाह महान है’ और दुर्गा सप्तशती कहती है कि ‘’विद्यावन्तं, यशस्वन्तं, लक्ष्मीवन्तं जनं कुरू –रूपं देहि, जयं देहि यशोदेहि द्विषो जहि’’, सीधा मतलब है कि इस धरती पर जो मनुष्य है वह धनवान हो, यशवान हो, विद्वान हो किन्तु धर्म के दायरे में जो स्वयं को विद्वान कहते हैं, भूल जाते हैं कि ईश्वर के साकार या निराकर स्वरूप से उसके अस्तित्व को विवाद के दायरे में नहीं ढाला जा सकता है, क्योंकि अल्लाह या ईश्वर का कोई धर्म नहीं हो सकता। 
विजयदशमी का सबसे बड़ा पैगाम यही है कि सद्गुण या सदाचार की तरफ हम चलते रहें और मां के पैरों के तले ही जन्नत का सबाब हांसिल करते रहें इसमें हिन्दू भी शामिल हैं और मुसलमान भी, अल्लाह की बनाई गई इस कायनात में हर पड़ौसी सुखी रहें और खुश रहें, यही तो पैगाम हमें धर्मों ने दिया है, फिर मुल्ला और पंडित क्यों ज्ञान बघारते हैं और धर्म के ठेकेदार नाहक ही परेशान होते हैं।

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