लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

घरेलू हिंसा पर आदेश का मामल

NULL

दुनिया चलाने के लिये हर समाज में कुछ न कुछ नियम-कानून स्थापित किये गये हैं। अगर कोई व्यक्ति इन नियमों और कानूनों का उल्लंघन कर कोई कृत्य करता है तो उसे असामाजिक कहते हैं। मनोविकार की प्रवृतियों की परिभाषा काफी कुछ इस एक शब्द असामाजिक से ही प्रभावित है। देखने में आ रहा है कि समाज में गुस्साजनित समस्यायें पहले की अपेक्षा काफी हद तक बढ़ गई हैं। गुस्साजनित समस्यायें न केवल घरों में बढ़ी हैं बल्कि समाज में भी उसके कई रूप सामने आ रहे हैं। घरेलू हिंसा की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। महिलाओं के संदर्भ में सदियों से चली आ रही रूढ़ियां, परम्परायें आज उपयुक्त प्रतीत नहीं होतीं। इसलिये उदारतापूर्वक इनमें परिवर्तन को स्वीकारना चाहिये। इसे सहज, स्वाभाविक रूप से लिया जाना चाहिये।

वर्तमान में परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिये महिलाओं का आगे आना अनिवार्य है लेकिन आज भी अनेक लोग महिलाओं के नये व्यक्तित्व को सहन नहीं कर पा रहे हैं। दहेज के लिये महिलाओं को प्रताड़ित करना, उनसे क्रूरतापूर्ण व्यवहार करना आज भी जारी है। दूसरी ओर महिलाओं की स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों की चर्चा सुर्खिया में है। महिलायें खुलकर अपने अधिकारों की रक्षा के लिये सामने आ रही हैं। वह पहले से कहीं अधिक जागरूक हैं। समाज में परिवर्तन का दौर जारी है इसलिये नियम और कानून भी बदल रहे हैं। लड़कियों का विवाह होता है तो वह अंजान परिवेश में जाकर सामंजस्य स्थापित करती हैं, जिम्मेदारियां निभाती हैं और एक नया जीवन आरम्भ करके आखिरी सांस तक जूझती रहती हैं। कभी वह सफल रहती हैं तो कभी विफल रहती हैं लेकिन अगर ससुराल में उसके साथ मारपीट होनी शुरू हो जाये, पति भी उसका साथ न दे तो उसके सामने जिन्दगी से लड़ने का विकल्प ही बचता है।

वैवाहिक जीवन में कलह में फंसी महिलाओं के लिये सुप्रीम कोर्ट ने राहत भरा आदेश दिया है। अब दहेज या अन्य प्रकार की यातनाओं के खिलाफ महिलायें देश के किसी हिस्से में मुकद्दमा दर्ज करा सकती हैं। सीआरपीसी के सेक्शन 177 के मुताबिक कोई भी आपराधिक मामला उसी जगह दर्ज ​हो सकता है जहां वह घटना घटी है। अगर किसी महिला पर उसके ससुराल में अत्याचार हो रहा है तो सिर्फ ससुराल के इलाके के थाने में ही शिकायत दर्ज करा सकती है। महिलाओं पर दहेज के लिये दबाव बनाया जाता है या फिर किसी वजह से मानसिक या शारीरिक यातनायें दी जाती हैं, ऐसे में सिर्फ ससुराल के इलाके में पड़ने वाले थाने या कोर्ट में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है। कई बार ऐसे मामले महिला के मायके में ट्रांसफर हो जाते हैं लेकिन उसके लिये एक अलग कानूनी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इससे महिलाओं के लिये बहुत दिक्कतें पेश आती थीं। कोई भी महिला जिसे अपने ससुराल से निकाल दिया गया हो या फिर वह जगह उसे छोड़कर भागना पड़ा हो तो वहां जाकर मुकद्दमा दर्ज कराना मुश्किल होता था।

रूपाली देवी ने अपने पति के खिलाफ मानसिक और शारीरिक यातना देने का मुकद्दमा दर्ज कराया था लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे यह कहकर खारिज कर दिया था कि कानून के मुताबिक मामला मायके में दर्ज हो ही नहीं सकता। रूपाली ने सुप्रीम कोर्ट में उस आदेश को चुनौती दी थी और कहा कि वह ससुराल में मुकद्दमा नहीं लड़ सकती। वहां उसके ससुराल वालों का रसूख है और वह शहर उसके लिये अजनबी है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने अंततः इस विवाद को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। इस आदेश का दूसरा पहलू भी है। यह बात पहले ही सामने आ चुकी है कि देश में दहेज कानूनों का जमकर दुरुपयोग हुआ है। सुप्रीम कोर्ट कई बार स्वीकार कर चुका है कि धारा 498-ए का जमकर दुरुपयोग हुआ है और दहेज से जुड़े अधिकतर मामले झूठे पाये जाते हैं। देश में कोई भी कानून एकपक्षीय नहीं हो सकता और न ही होना चाहिये। इस दृष्टि से सुप्रीम कोर्ट का आदेश एकपक्षीय ही नजर आता है। जो आदेश महिलाओं के लिये लागू होता है तो उसे पुरुषों पर भी लागू होना चाहिए। अगर किसी लड़की ने दिल्ली में शादी की है और सम्बन्ध बिगड़ने पर वह कहीं दक्षिण भारत में नाैकरी करने चली जाती है और वह वहां मुकद्दमा दर्ज कराए तो स्थिति पति के लिये वैसी ही होगी जैसी कभी महिलाओं के लिये थी। कानून में संशोधन के प्रस्ताव समाज में एक बहस को जन्म देते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर भी बहस जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का भी दुरुपयोग होगा यह निश्चित है। ऐसे मामलों की भरमार हो जायेगी जिनका निपटारा सालों नहीं हो सकेगा। न्यायपालिका को यह सोचना होगा कि इससे कितने घर टूट जायेंगे। शादी एक पवित्र बन्धन होता है, समाज को भी परिवारों को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए न कि तोड़ने का। समाज के लिये शादी जैसी संस्था अब भी उपयोगी है। महिलाओं की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। क्या महिलाएं अपराध नहीं करतीं, क्या वह बलात्कार के झूठे मुकद्दमे दर्ज नहीं करातीं? क्या प्रेमी से मिलकर पति और ससुराल वालों की हत्यायें नहीं करतीं? क्या सम्पत्ति के लालच में महिला अपने मां-बाप का कत्ल नहीं करतीं? अगर समाज में यह सब घटित हो रहा है ताे फिर एकपक्षीय कानून का कोई अर्थ नहीं रह जाता। महिलाओं को सशक्त बनाना जरूरी है लेकिन इसके लिये दूसरे पक्ष को कमजोर बनाना भी सही नहीं। न्यायप​ालिका, सरकार और समाज को सोचना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seven + nine =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।