सोमवार की सुबह वह खबर आ ही गई जिस पर न केवल भारतीय फिल्म उद्योग को बल्कि हर भारतीय को गर्व महसूस हुआ। भारत के लोगों की दिलचस्पी के केन्द्र में एसएस राजामोली की फिल्म आर.आर.आर. का गाना नाटू नाटू रहा जिसने ऑरिजनल सॉंग की श्रेणी में ऑस्कर अवार्ड जीत लिया। भारत की डाक्यूमेंटरी फिल्म द ऐलीफैंट व्हिस्परर्स ने डाक्यूमेंटरी की श्रेणी में ऑस्कर जीत लिया। ऑस्कर अवार्ड समारोह की प्रस्तोता भी भारतीय अभिनेत्री दीपिका पादुकोण रही। 95 अकादमी अवार्ड समारोह में भारत का डंका बज गया। नाटू नाटू गीत ने पहले ही बेस्ट ऑरिजनल सॉंग का अवार्ड जीता था। यह गाना आजकल हर किसी की जुबां पर था। इस बात की उम्मीद पहले से ही थी कि यह गाना ऑस्कर अवार्ड में इतिहास रच सकता है। आखिर इस गाने ने इतिहास क्यों रचा।
ऑरिजनल सॉंग कैटेगरी की परिभाषा यही है कि किसी फिल्म के लिए दुनिया की किसी भी भाषा में इस्तेमाल किया गया गाना अगर पहले से मौजूद किसी गाने की नकल नहीं है तो वो वास्तविक है। इसका अर्थ यह भी है कि उस गाने में पहले किसी गाने, ट्यून कंटेंट या अर्थ का असर न रहे। राजामाेली, संगीतकार किरावाणी और गीतकार चंद्रबोस ने इस गाने पर 17 जनवरी, 2020 में काम करना शुरू कर दिया था। 19 महीने बाद यह गाना तैयार हुआ। गाने में तेलंगाना और आंध्र के 1920 के दशक की भाषाओं के शब्दों का सहारा लिया गया। इस गाने को काल भैरव और राहुल सिपली गुंज ने गाया। फिल्म में रामचरण तेजा और जूनियर एनटीआर जोशीले तेज रफ्तार लय पर ऐसे थिरके कि पर्दे पर तूफान उठ खड़ा हुआ। इस गाने में नाटू शब्द का सीधा मतलब एकदम देसी और अपनी माटी की खुशबू का इजहार है। यह गाना अपने आप में फिल्म का एक अक्स है। फिल्म में आजादी की लड़ाई के दो नाटू योद्धा ब्रिटिश साम्राज्य से टकरा जाते हैं। कभी भारतीयों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि लट्टू की तरह नचाने वाला यह गीत ऑस्कर अवार्ड में सबको पछाड़ देगा। यद्यपि सिनेमा प्रेमियों का एक वर्ग इस का श्रेय दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग को देता है लेकिन यह उपलब्धि समूचे भारत की है।
तमिल भाषा की डाक्यूमेंट्री द ऐलीफैंट व्हिस्पर्स ने डाक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जैक्ट श्रेणी में भारत के लिए पहला ऑस्कर जीता है। इस फिल्म का निर्देशन कार्तिकी गुंजाल्विस ने किया है जबकि इसकी निर्माता है गुनीत मोंगा। दो महिलाओं की प्रतिभा ऑस्कर सम्मान जीतने में सफल रही है। भारतीयों को संतोष है कि आजतक किसी भारतीय फीचर फिल्म को ऑस्कर अवार्ड नहीं मिला। कम से कम भारत की दो महिलाओं ने भारत की धूम मचा ही दी। यह फिल्म हाथियों और उनकी देखभाल करने वालों के बीच अटूट बंधन पर आधारित है। यह फिल्म मनुष्य की अन्य जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति और उनके सह अिस्तत्व की ओर ध्यान आकर्षित करती है तथा मनुष्य और वन्य प्राणियों के रिश्तों की संवेदनशीलता को दिखाती है। ऑस्कर में भारत पहले भी 6 पुरस्कार जीत चुका है। जैसे ही भारत में प्रभावी सिनेमा दौर शुरू हुआ वैसे ही फिल्म मदर इंडिया (1958) ने ऑस्कर में धमक दी। महबूब खान की इस फिल्म को ऑस्कर के सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म (बेस्ट फॉरेन लेंगवेज फिल्म) में नामांकन मिला। फिल्म पुरस्कार जीतने के काफी करीब तक पहुंची।
सन् 1961 में इस्माइल मर्चेंट की फिल्म ‘द क्रिएशन ऑफ वुमन’ को बेस्ट शॉर्ट सब्जेक्ट (लाइव एक्शन) की श्रेणी में नामांकन मिला। सन् 1979 में केके कपिल की ‘ऐन इनकाउंटर विद फेसेस’ को बेस्ट डाक्यूमेंट्री (शॉर्ट सब्जेक्ट) श्रेणी में नामांकित किया गया लेकिन यह फिल्म भी ऑस्कर पाने में असफल रही। भारत को पहला ऑस्कर भानु अथैय्या ने दिलाया। उन्हें फिल्म ‘गांधी’ (सन् 1983) के लिए बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन श्रेणी में ऑस्कर दिया गया। इसी के साथ भानु ऐसी पहली भारतीय बनी, जिन्होंने ऑस्कर जीता।
सन् 1992 में भारतीय फिल्मकार सत्यजीत रे को ऑस्कर संचालकों ने लाइफटाइम अवार्ड से नवाजा था। 2002 में आमिर खान की फिल्म लगान ने अंतिम पांच में जगह बना ली थी लेकिन वह असफल साबित हुई लेकिन साल 2009 में कमाल हो गया। तीन भारतीयों ने ऑस्कर में भारत की पताका लहरा दी। तीनाें के तीनों ने तीन अलग-अलग श्रेणियों में ऑस्कर जीत लिया। फिल्म थी, ‘स्लम डॉग मिलेनियर’। इसके लिए रसूल पूकुट्टी को ‘बेस्ट साउंड मिक्सिंग’, एआर रहमान को ‘बेस्ट आरिजनल स्कोर’ और गुलजार व एआर रहमान को संयुक्त रूप से ‘बेस्ट ओरिजनल सॉंग’ की श्रेणी में ऑस्कर अवार्ड दिए गए।
यहीं से एआर रहमान ने दुनिया में अपनी छाप छोड़ी। साल 2011 में फिल्म ‘127 आवर्स’ के लिए उन्हें दो श्रेणियों (बेस्ट ओरिजनल स्कोर, बेस्ट ओरिजन सॉंग) में नामांकन मिला। साल 2013 में बांबे जयश्री ने लाइफ ऑफ पाई में शानदार गाना दिया। उन्हें ‘बेस्ट ओरिजनल सॉंग’ श्रेणी में नामांकन मिला। इस बार ऑस्कर अवार्ड से भारतीय फिल्म उद्योग काे दुनियाभर में नई पहचान मिली है। सवाल मुंबई फिल्म उद्योग और दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के बीच अंतर करने का यह अवसर नहीं है। फिल्मों के स्तर को लेकर बहस छेड़ने का भी यह वक्त नहीं है। यह मौका है खुद पर गर्व करने का। ऑस्कर अवार्ड ने दुनियाभर में भारतीय फिल्म उद्योग की बढ़ती धमक का अहसास करा दिया है। यह अवसर है विजेताओं काे बधाई देते हुए जश्न बनाने का।
आदित्य नारायण चोपड़ा