संस्कार किसे कहते हैं और व्यक्ति के जीवन में इसका क्या महत्व है तो जवाब यही है कि एक गरिमामयी व्यक्तित्व को महान बनाने वाले आचार-व्यवहार तत्व ही संस्कार होते हैं। एक देश की संस्कृति इन्हीं संस्कारों से बनती है, जिसका आधार माता-पिता और बुजुर्ग बनाते हैं।
इन्हीं माता-पिता और बुजुर्गों के सम्मान की सुरक्षा के लिए हमने वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब बनाया, हमने ओल्ड हाउस का नाम न देकर वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान की संस्था को एक क्लब का नाम दिया। हर तरफ टेंशन ही टेंशन है और खुशी नहीं है। एक सबसे दु:ख की बात यह है कि देश और दुनिया के नक्शे पर बुजुर्गों की हालत सबसे खराब है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत के यूथ ने बहुत तरक्की की है, लेकिन टूटते घरों में बुजुर्गों के दु:ख-दर्द को अपमान और नरक जैसी जिंदगी हमारे अपनों ने ही उन्हें दी है।
अमर शहीद लाला जी के अधूरे सपने को पूरा करते हुए आैर बुजुर्गों से रोजाना मिकर उनकी बातें समझते हुए वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब बना और उनके सम्मान की सुरक्षा के लिए हमने अपना उद्देश्य बनाया। आज यह एक संस्कृति है कि हमने सदा खुश रहना है और यह कदमों की धूल नहीं माथे की शान है और आओ चलें उनके साथ जिन्होंने हमें चलना सिखाया और यही संदेश दुनिया को देना है। ‘हमारी संस्कृति हमारा अन्दाज’ का मकसद एक ही है कि दूसरों का मार्ग कांटों से भरकर या उनकी खुशियां छीनकर हम खुद खुशियां न लें, बल्कि उनके रास्ते से कांटें हटाएं और सबके साथ सबके कल्याण की भावना के साथ चलें। यही हमारी संस्कृति है, यही हमारा अन्दाज है।
मिल-जुलकर रहना, परिवारों में झगड़े न करना और बुजुर्गों का सम्मान करना ये बातें पढ़ने और कहने की रह गई हैं। इन सब पर अमल करना ही भारतीय संस्कृति है। हमने इसी संस्कृति को अपनाया है। ‘हमारी संस्कृति हमारा अन्दाज’ इस नई थीम के साथ पूरी दुनिया में स्थापित हो, हमारी यही कोशिश है। हम इस नई संस्कृति से जुड़े अभियान को लेकर अब सिंगापुर में मिलेंगे। अब यही क्लब ‘हमारी संस्कृति हमारा अन्दाज’ को लेकर सिंगापुर पहुंच रहा है।
देश की संस्कृति को अगर हमारे बुजुर्ग वहां रैम्प पर एक फैशन शो के माध्यम से प्रस्तुत करें तो पूरी दुनिया में एक सही संदेश जाएगा। आज बुजुर्गों के सम्मान और उनकी खुशी का संदेश जब उन्हीं के माध्यम से दिया जाएगा तो मुझे लग रहा है कि हम अपनी संस्कृति की पवित्र धारा को आगे बढ़ा रहे हैं। इस ‘हमारी संस्कृति हमारा अन्दाज’ में पार्टिसिपेट करने वाले हमारे सीनियर सिटीजन की उम्र 65 से शुरू होती है और 87-90 तक यह सीमा है।
हंसना-गाना और खुश रहना और अच्छा व्यवहार रखना ये बातें हमें बुजुर्गों ने सिखाई परन्तु आज के भागमभाग और तनाव भरे माहौल के बीच अगर बुजुर्ग हंसते हैं और एक कम्पीटिशन के माध्यम से रैम्प पर उतरते हैं तो मुझे लगता है हम अपनी उस संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसकी नींव हमारे बुजुर्गों ने रखी है। यूं तो हम अपने देश में वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की दर्जनों ब्रांचेज के मंचों पर बुजुर्गों की खुशी के लिए तरह-तरह की स्पर्धाएं आयोजित करवाते रहते हैं, परंतु अब पिछले 4 साल से विदेशों में भी बुजुर्गों ने धूम मचानी शुरू कर दी है।
पिछली बार 102 बुजुर्गों को लेकर दुबई गए थे अब 120 को लेकर सिंगापुर 4 डाक्टरों को साथ लेकर जा रहे हैं। वहां के हिस्टोरिकल एंड प्रेस्टीजिअस क्लब, कमला क्लब जिसे नेहरू जी ने 1950 में अपनी पत्नी का नाम दिया था और इंडिया वुमेन एसोसिएशन जो बहुत ही पुरानी 1950 से चली आ रही है और साथ ही इंडियन अम्बैसी के जावेद जी सारा अरेंजमेंट कर रहे हैं।
सिंगापुर में बसे भारतीय बहुत ही खुश हैं, इंतजार में हैं कि उनके भारत के लोग अपने भारतीय अन्दाज और संस्कृति अपने अनुभवी लोगों द्वारा दिखाने आ रहे हैं। हर किसी से मेरी यही अपील है कि जिन्दगी में संस्कारों को आगे बढ़ाओ।
सच बोलना, सादगी में रहना, परोपकार करना, प्यार से आगे बढ़ना ये सब संस्कार ही हैं, जो हमारी संस्कृति को बनाते हैं। भारतीय संस्कृति की पहचान भी यकीनन यही है। इसीलिए भारतीय संस्कृति का दुनिया में परचम सबसे ऊंचा है। हम भारतीय लोग अपने संस्कारों और संस्कृति के लिए जाने जाते हैं और हमारी यह पहचान बनी रहे, इसके लिए आने वाली पीढ़ी को हमारे बुजुर्गों की तरफ से आशीर्वाद और मेरी तरफ से गुडलक और आप सबसे हमें आशीर्वाद चाहिए।