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बेमौसम

मार्च खत्म होते ही अप्रैल का महीना गर्मी का कहर लेकर आया है। अगर देशी महीनों की बात करें तो चैत्र के बाद अप्रैल में गर्मी स्वाभाविक ही है। लेकिन बदलते प्रकृति के समीकरणों ने मार्च के महीने में ही दिल्ली वालों को पारे की गर्मी में पिघलने के लिए मजबूर कर दिया

मार्च खत्म होते ही अप्रैल का महीना गर्मी का कहर लेकर आया है। अगर देशी महीनों की बात करें तो चैत्र के बाद अप्रैल में गर्मी स्वाभाविक ही है। लेकिन बदलते प्रकृति के समीकरणों ने मार्च के महीने में ही दिल्ली वालों को पारे की गर्मी में पिघलने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद जैसे ही अप्रैल यानि कि बैशाख महीना शुरू हुआ तो बारिश का दीदार हुआ जो गर्मी से राहत तो दे सकता है लेकिन किसान की छाती पर फावड़े की तरह चला। बेमौसमी बारिश और ओला वृष्टि ने उत्तर भारत के किसानों को झंकझोर कर रख दिया। पंजाब और हरियाणा के किसान अब 14 दिसंबर के बाद सोना काटने अर्थात गेहूं की फसल की कटाई बैशाखी पर शुरू कर चुके हैं तो हमारी प्रभु से प्रार्थना है कि हे भगवान अब और बारिश कटाई पूरी होने तक न आए किसान अन्नदाता है। हर कोई उनकी खुशहाली की कामना करता है तो देश भी खुशहाल बनता है। लेकिन मैं किसानों की खुशहाली की दुआ के साथ-साथ बदलते मौसम और भविष्यवाणियों को लेकर ज्यादा चिंतित हूं। 
अचानक ही स्काईमेट की भविष्यवाणी आती है कि इस बार बारिश बहुत कम आयेगी और यह सामान्य से भी कम रहेगी। किसान के लिए यह संदेश उसके भविष्य के लिए अच्छे नहीं है। इसी कड़ी में उत्तर भारत में भारी गर्मी की भविष्यवाणी की गई और साथ ही जुलाई के महीने में मानसून सामान्य से भी कम रहने की बातें कहीं गई। इस भविष्यवाणी को किए अभी चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे कि सरकारी मौसम विभाग ने भविष्यवाणी कर डाली की मानसून निश्चित समय पर आयेगा और सामान्य भी रहेगा। सामान्य मानसून का मतलब है फसलों के लिए उत्साह जनक स्थिति इन दोनों विभागों के भविष्यवाणियों के आधार पर निष्कर्षों को निकालकर मैंने कई चैनलों पर डिबेट देखे। सोशल मीडिया पर भी मैं बहुत कुछ देख रही हूं। लेकिन एक चीज हैरान कर देने वाली है कि आखिरकार मौसम के बारे में हमारी भविष्यवाणियां सही क्यों नहीं ठहरती। अकसर लोग मौसम विभाग की भविष्यवाणियों पर फ​िब्तयां कसते हैं। आंधी-तूफान का आना या चक्रवातीय भविष्यवाणी या फिर बारिश को लेकर भविष्यवाणी अगर कसौटी पर अगर खरी नहीं उतरती तो मजाक उड़ने लगता है। मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि इनसेट से हमें जितनी जानकारियां मिल रही हैं उतनी ही प्राइवेट एजेंसियों को भी मिल रही हंै हालांकि प्राइवेट संस्थाओं से जुड़े लोग दूरसंचार विभाग को ज्यादा भुगतान कर लेटेस्ट टैक्रोलॉजी और लेटेस्ट अपडेट लेकर भविष्यवाणी कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्राइवेट विभागों ने यह सुविधा मोबाइल पर भी दे रखी है। सोशल मीडिया पर कहा जाता है कि मोबाइल पर मौसम की सूचना अगर स्काईमेट के सौजन्य से है तो वह ठीक सिद्ध होगी। ऐसी स्थिति से बचने के लिए कितना अच्छा हो अगर सभी विभाग और संगठन एकीकृत तरीके से काम करें। यदि किसी भविष्यवाणी की बात आती है तो वह संयुक्त स्तर पर कर ली जाये ताकि लोगों के लिए भ्रम की स्थिति न बनें। सुविधाएं आज टैक्नालॉजी की देन है। लोग सबकुछ समझ रहे हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि सूचना सही वक्त पर सामने आए और यदि वह सत्यता की कसौटी पर खरी उतरती है तो विश्वास बढ़ता है। मौसम की भविष्यवाणियों को लेकर हम इसी मंत्र से आगे चलें तो बहुत कुछ किया जा सकता है। 
पिछले दिनों बेमौसमी बारिश ने किसानों को जो दु:ख दिया अब इस अन्नदाता के लिए दुआ का वक्त है। हालांकि किसान संपन्न है। हाथ से कटाई की तकनीक बदल गई है। कई एकड़ भूमि पर मशीनों से कटाई हो रही है। ऐसे में बेमौसमी बारिश होना या न होना अलग  बात है लेकिन बारिश को लेकर भ्रम की स्थिति नहीं रहनी चाहिए। इस भ्रमजाल से बचने के लिए हमें प्रकृति के परिवर्तन को स्वीकार करना होगा। दुनिया पर जलवायु का वैश्विक असर हो रहा है। भारत या उसकी राजधानी दिल्ली या पंजाब, हरियाणा, हिमाचल भी अछूते नहीं रहे। मौसम के बदलते परिवेश में प्रकृति बदल रही है। आइए भविष्यवाणियों को लेकर संयुक्त रूप से काम करें और सब खुशहाल रहें लेकिन बैशाखी के मौके पर हमारे किसान भाई सदा खुशहाल रहें ये दुआएं मैं जरूर दूंगी। हमारे अन्नदाता किसान और परिवार हमेशा खुश रहें। देश को खुुशहाल रखें। जय जवान, जय ​किसान। किसान और जवान हैं तो हम सब हैं।

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