लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

फर्जी मुठभेड़ों का आर्तनाद

हैदराबाद में महिला डाक्टर से बलात्कार और हत्या के मामले में चारों आरोपियों को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराए जाने पर सवाल तो पहले से ही उठ रहे थे।

हैदराबाद में महिला डाक्टर से बलात्कार और हत्या के मामले में चारों आरोपियों को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराए जाने पर सवाल तो पहले से ही उठ रहे थे। पुलिस को किसी भी हालत में पीट-पीट कर हत्या करने वाली भीड़ की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि हैदराबाद मुठभेड़ महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में पुलिस की नाकामी से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए की गई। 
अगर पुलिस भीड़ तंत्र के शोर से घबराकर या दबाव में काम करती है तो फिर कानून बचेगा कैसे आैर फिर अदालतें स्थापित करने का औचित्य ही क्या है। यद्यपि चारों आरोपियों की मौत पर देशभर में लोगों ने जश्न मनाया, पुलिस वालों पर फूल बरसाए गए, मिठाइयां बांटी गईं। यह सब जनभावनाओं के ज्वार में सही लगता है क्योंकि लोग बलात्कार मुक्त समाज चाहते हैं, अपराध मुक्त समाज चाहते हैं लेकिन पुलिस की कार्रवाई से देश के लिए भयानक परिपाटी शुरू होने का खतरा पैदा हो गया है। 
अगर पुलिस कानून को हाथ में लेकर ऐसा करने लगे तो न्याय की प्रक्रिया पर सवाल तो उठेंगे ही। सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद ​मुठभेड़ की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं। तीन सदस्यीय जांच पैनल सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस वी.एस. सिरपुरकर की अध्यक्षता में काम करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस मामले की जांच करने से रोक दिया है। 
तेलंगाना सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पुलिस मुठभेड़ को सही ठहराने के लिए अनेक तर्क दिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा-‘‘आप जांच तो होने दीजिए।’’ याचिका दायर करने वालों का कहना है कि चारों आरोपियों की हत्या पुलिस ने आलोचना के दबाव में की थी। मुठभेड़ के ​दिन जब संसद से लेकर सोशल मीडिया तक लोग जश्न मना रहे थे तो देश का बुद्धिजीवी वर्ग हैरत में था कि कितनी आसानी से हम पुलिसिया ‘इंसाफ’ पर जश्न मनाने लगते हैं। 
जिस पुलिस पर कोई भरोसा नहीं करता, वो रात ही रात में हीरो बन जाती है। देशभर में अनवरत होते पुलिस एनकाउंटरों के मध्य फर्जी मुठभेड़ों के आर्तनाद ने पुलिसिया कार्रवाइयों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इनाम आैर समय पूर्व प्रोन्नति के चक्कर में आनन-फानन में मुठभेड़ों काे गैर जिम्मेदाराना अंदाज में अंजाम​ दिए जाने की सैकड़ों दास्तानें पुलिस फाइलों में दर्ज हैं। पहले भी फर्जी मुठभेड़ों की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती थीं और आज भी बन रही हैं। 
अभी हाल ही में न्यायिक जांच आयोग ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सारकेगुडा में जून 2012 में हुई कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। इस मुठभेेड़ में सुरक्षा बल के जवानों ने 17 नक्सलियों के मारे जाने का दावा भी किया था। जांच आयोग ने 78 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मारे गए लोग नक्सली नहीं बल्कि आदिवासी थे। 7 वर्ष पहले हुई इस मुठभेड़ की जांच सामाजिक संगठनों ने की थी। जांच आयोग ने अपने समक्ष गवाहों के बयानों को ​िवसंगतियों से भरा बताते हुए कहा है कि इन गवाहियों में सच्चाई को झूठ से अलग करना असम्भव है। 
आदिवासियों को मारने से पहले जवानों ने उन्हें शारी​रिक रूप से प्रताड़ित भी किया। 7 वर्ष बाद मुठभेड़ की जांच रिपोर्ट आना भी अपने आप में अन्याय है। छत्तीसगढ़, तेलंगाना ही नहीं उत्तर प्रदेश पुलिस पर तो फर्जी मुठभेड़ों के अनचाहे दाग बहुत ज्यादा हैं। पुलिस वर्दी में रहकर भी अपराधियों जैसा व्यवहार करती है। इसके कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। जब भी एनकाउंटर बढ़े, उनमें फर्जी होने की आशंकाएं बढ़ेंगी लेकिन मानवाधिकार के नाम पर अपराधियों को कानून का डर न हो, यह भी ठीक नहीं है। 
पुलिस एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था। अदालत ने कहा था कि मुठभेड़ की तुरन्त एफआईआर दर्ज होगी, जब तक जांच चलेगी तब तक संबंधित पुलिस अधिकारी को अवार्ड नहीं मिलेगा। अगर पीड़ित पक्ष को लगता है कि एनकाउंटर फर्जी है तो वह सेशन कोर्ट में जा सकता है। राज्य सरकारें अदालती दिशा-निर्देशों का पालन तो करती हैं लेकिन फर्जी मुठभेड़ों पर लगाम नहीं लगाती। फर्जी मुठभेड़ों की बहस में नेता अपना राजनीतिक हित साधते रहते हैं क्योंकि वे खुद नहीं चाहते कि फर्जी एनकाउंटर बंद हों। 
पुलिस की तानाशाही व्यवस्था और गुमराह करने वाली पुलिसिया नीति कहीं न कहीं बहुत से ऐसे कार्यों को अंजाम देती है जिससे न्यायिक व्यवस्था शर्मसार जरूर होती है। दरअसल फर्जी मुठभेड़ों की ​निष्पक्ष जांच के लिए कोई स्वतंत्र निगरानी तंत्र नहीं। ​किसी एक मुठभेड़ पर शोर थमता नहीं कि पुलिस दूसरी कहानी दोहरा देती है। हैदराबाद मुठभेड़ में दूध का दूध और पानी का पानी होना भी चाहिए। पुलिस की कहानी जांच में कितना ठहरती है, यह भी देखना होगा। पुलिस तंत्र में व्यापक सुधार की जरूरत है। फर्जी मुठभेड़ों के मामलों में शिकायतों की त्वरित सुनवाई, तंत्र की जवाबदेही और निष्पक्ष जांच से ही इस पर विराम लग सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 + twelve =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।