कांग्रेस का एक अतीत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और लाल बहादुर शास्त्री का रहा। दूसरा अतीत 1975 की तानाशाही का रहा। कांग्रेस को कौन सा अतीत अपनाना चाहिये, इस बात का फैसला वर्तमान नेतृत्व को करना है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के वित्त मंत्री और गृह मन्त्री पद पर विराजमान रहे पी. चिदम्बरम पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने कांग्रेस की उस चादर पर फिर बड़े दाग लगा दिये जिस पर पहले ही कई दाग हैं। जो व्यक्ति काला कोट पहन कर दूसरों के मुकदमें लड़ते समय कानून की दुहाई देता रहा हो उसे तो खुद गिरफ्तारी देकर कानून का सम्मान करना चाहिये था।
मनमोहन सिंह के शासन का काल खंड कांग्रेस का ऐसा काल खंड रहा जिसमें एक के बाद एक घोटाले ही सामने आये। सियासत में अर्श पर रहे लोगों को फर्श पर आना ही पड़ता है। चुनावी हार-जीत तो चलती रहती है लेकिन वो शख्स जो कभी सीबीआई और ईडी जैसी एजैंसियों का बॉस रहा हो, जो कभी उस संवैधानिक पद पर बैठा हो जिस पद पर कभी लौह पुरुष सरदार पटेल बैठे थे, उस पर ही गिरफ्तारी की तलवार लटक जाये यह न केवल कांग्रेस के लिये बल्कि देश के लिये भी शर्मसार करने वाली बात है। तमिलनाडु ने कांग्रेस को कामराज जैसे नेता दिये हैं और देश को चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य जैसे नेता। देश के गृहमंत्री पद पर रहते पी. चिदम्बरम पर गंभीर आरोप लगे थे।
शिवगंगा सीट पर मतदाताओं के वोट हासिल करने के लिये किस तरह सुबह-सुबह मतदाताओं को 5-5 हजार के नोट समाचारपत्रों में लपेट कर पहुंचाये गये थे, यह बात काफी चर्चित हुई थी और मामला अदालत में भी पहुंचा था। चाहिये तो यह था कि श्री चिदम्बरम को उसी वक्त मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिये था या फिर मतगणना में धांधली कर चुनाव जीतने के आरोपों के बाद उन्हें खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिये था। राष्ट्र के लोगों ने 2009 के चुनावों में अपना वोट देकर कांग्रेस को जिताया था। उन्हें उम्मीद थी कि यूपीए-2 भी अच्छा शासन देगी मगर हवा उल्टी ही बह निकली।
मैं कांग्रेस नेताओं को याद दिलाना चाहता हूं कि जिस लिट्टे ने राजीव गांधी की हत्या की हो उसके सरगना प्रभाकरण के बारे में चिदम्बरम ने कहा था कि वह हमारा दुश्मन नहीं था। सवाल यह भी था कि अगर प्रभाकरण हमारा दुश्मन नहीं था तो क्या दोस्त था? चिदम्बरम ने क्या कयामत ढहाई कि जो राजीव गांधी 1984 में चिदम्बरम को शिवगंगा सीट से जिता कर लाये थे और जिन्होंने सबसे पहले चिदम्बरम को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री बनाया था और आंतरिक सुरक्षा जैसे मामले का विभाग देकर श्रीलंका में भारत की सेना भेजे जाने के मामले पर राय भी मानी, उसी व्यक्ति ने प्रभाकरण को अपना मित्र बताया था।
जिस व्यक्ति के बारे में संसद की समिति यह घोषणा कर चुकी हो कि उसने 1997-98 में वित्त मंत्री पद पर रहते देश की मुद्रा विदेशों में छपवाकर भारत की प्रभुसत्ता को गिरवी रख दिया था। 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाले के दौरान भी वह मूकदर्शक बने रहे। चाहते तो वह बतौर वित्तमंत्री 2-जी स्पैक्ट्रम का आवंटन रद्द करवा सकते थे। आरोप है कि वित्त मंत्री पद पर रहते उन्होंने अपनी बेटी की हत्या में जेल में बंद इन्द्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी के आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की सीमा 3500 करोड़ की स्वीकृति दिलवाई जिसके लिये उन्होंने आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की सिफारिशों को दरकिनार किया। वित्त मंत्री के पास भी महज 600 करोड़ तक के निवेश की अनुमति देने का अधिकार था। इस मामले में उनके बेटे कार्ति की कंपनियों को रिश्वत के तौर पर करोड़ों का धन मिला।
आईएनएक्स मीडिया मामले में हाईकोर्ट ने उन्हें मुख्य साजिशकर्ता माना है। तब से ही बाप-बेटा गिरफ्तारी से बच रहे थे और अदालत भी इन्हें समय दे रही थी। अब तो प्रवर्तन निदेशालय ने भी सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया के लिये 111 विमानों की खरीद के मामले में उन्हें सम्मन जारी किया है। विमानों का यह सौदा 2006 में यूपीए शासनकाल में हुआ था। 2018 में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान इस सौदे में मनी लांड्रिंग के आरोपों की जांच के लिये आपराधिक मामले दर्ज किये गये थे। उनके बारे में मामले तो कई और भी हैं।
क्या ऐसे व्यक्ति की जगह बहुत साल पहले ही जेल में नहीं होनी चाहिये थी? लेकिन अफसोस! चिदम्बरम साहब वित्त मंत्री और गृहमंत्री पद पर बैठकर देश को ‘अमूल्य सेवायें’ देते रहेे। इनकी ‘अमूल्य सेवाओं’ (घोटाले) से तो देश को कब का मुक्त होना चाहिये था। कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व को समझना होगा कि कांगेस की जड़ों में मट्ठा डालने का काम ऐसे ही लोगों ने किया है। अब तो शिवगंगा की गंगा उल्टी बह रही है। कांग्रेस नेतृत्व को ऐसे लोगों से मुक्ति पानी होगी और कांग्रेस को ईमानदार और मानवीय स्वरूप देना होगा अन्यथा यही कहना पड़ेगा-
‘‘अब तलक कुछ लोगों ने, बेची न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला, कुछ और चलना चाहिये।’’