कंगाली के दौर में पहुंच चुके पाकिस्तान में लोगों को खाने के लाले पड़े हुए हैं। 20 किलोग्राम आटे की कीमत ग्यारह सौ रुपए हो गई है। लगभग ढाई हजार तंदूर की दुकानें आटे की कमी के चलते बंद हो गई हैं। अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें पहले ही काफी बढ़ चुकी हैं। उधर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मदद की गुहार लगा रहे हैं तो दावोस में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की वार्षिक बैठक में फिर शांति का राग अलापा है। इमरान खान ने स्वीकार किया कि भारत के साथ दुश्मनी के चलते उनके देश को बहुत नुक्सान हुआ है। भारत के साथ रिश्ते सुधारने के बाद ही दुनिया को पाकिस्तान की आर्थिक क्षमता का पता चलेगा।
पाकिस्तान बातचीत से भारत के साथ सभी मुद्दे सुलझाना चाहता है। इमरान खान की बयानबाजी में कितनी ईमानदारी है यह तो वही जानते हैं क्योंकि वह तो पाकिस्तानी सेना की कठपुतली हैं। भारत का स्टैंड स्पष्ट है कि आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते, इसलिए वार्ता का कोई औचित्य ही नहीं। पांच माह पहले पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने के फैसले के बाद भारत के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को भी खत्म कर दिया था। भारत ने तो पाकिस्तान को तरजीही राष्ट्र का दर्जा दे रखा था। इतिहास गवाह है कि भारत-पाक रिश्तों में जमी बर्फ जब भी िपघलने की शुरूआत हुई, शांति वार्ताओं की शुरूआत हुई, पाकिस्तान के आतंकी संगठनों, सैन्य प्रतिष्ठानों, आईएसआई और नान स्टेट एक्टर्स ने पलीता लगा दिया।
अटल जी ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए क्या कुछ नहीं किया। दोस्ती का पैगाम लेकर मैत्री बस से लाहौर गए, उधर लाहौर घोषणापत्र पढ़ा जा रहा था, इधर पाकिस्तान सेना के जवान और भाड़े के आतंकवादी कारगिल में घुसपैठ कर चुके थे। काश! पाकिस्तान के हुक्मरानों ने आतंकवाद की खेती करने पर िजतना धन बर्बाद किया उतना देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास कार्यों पर खर्च किया होता तो पाकिस्तान की तस्वीर भी दुबई की तरह दिखती। अफसोस तो इस बात का रहा कि पाकिस्तान में कभी भी लोकतंत्र मजबूत नहीं रहा। पाकिस्तान की सेना ने कई बार लोकतंत्र को अपने बूटों के तले रौंदा है। पाक की अवाम जानती है कि पाकिस्तान में सत्ता में रहने के लिए भारत विरोध केन्द्रित सियासत बहुत जरूरी है। इसलिए इमरान खान से कोई ज्यादा उम्मीद पहले भी नहीं थी न आज है।
पाकिस्तान इस समय कर्ज के अंधे कुएं में फंस चुका है। लगभग 60 अरब डालर के सीपीईसी प्रोजैक्ट के लिए पाकिस्तान दिसम्बर 2019 तक चीन से करीब 21.7 अरब डालर का कर्ज ले चुका था। इसमें 15 अरब डालर का कर्ज चीन की सरकार से शेष 6.7 अरब डालर का कर्ज वहां के वित्तीय संस्थानों से लिया गया है। पाकिस्तान के सामने इस कर्ज को वापस लौटाना अब बड़ी समस्या बन चुका है क्योंकि अर्थव्यवस्था के पूरी तरह ध्वस्त हो जाने से उसके पास महज दस अरब डालर का ही विदेशी मुद्रा भंडार रह गया है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान पर बोझ साबित हो रहा है।
इस प्रोजैक्ट की सारी जिम्मेदारी चीन की कम्पनियों को दी गई है। निर्माण सामग्री भी चीन से आ रही है, मजदूर भी चीन से लाकर बैठा दिए गए हैं। इस प्रोजैक्ट के चलते पाकिस्तान को स्थानीय स्तर पर न के बराबर रोजगार सृजित हुए हैं जिसके कारण वहां का सामान नहीं बिक पा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीतियां काफी खतरनाक हैं। पहले वह मदद करने के नाम पर परियोजनाएं शुरू करता है, फिर अपना जाल फैला कर उनकी जमीन हड़प लेता है। चीन ने अपना शिकंजा श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, मलेशिया, कजाकिस्तान तक फैला रखा है।
अफ्रीकी देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर काबू पाने के लिए भारी निवेश कर रखा है। उसने श्रीलंका को अपने कर्ज जाल में ऐसा फंसाया कि वहां की सरकार को हंबनटोटा बंदरगाह और उससे सटी अन्य जमीन चीन को सौंपनी पड़ी। दरअसल पाकिस्तान चीन के इरादों को भांप ही नहीं पाया। भारत विरोध की अंधी सियासत के चलते 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति अमेरिका के पालू माने जाने वाले परवेज मुशर्रफ ने माकरान में ग्वादर पोर्ट को विकसित करने का ठेका चीन को दिया। चीन को पाकिस्तान की रणनीतिक अहमियत उस समय समझ में आ गई थी। तब चीन के नेताओं ने मध्य एशिया, जिंगजियांग तथा चीन के लगते इलाकों में कारोबार करने के लिए ग्वादर बंदरगाह को अहमियत दी।
पाक अधिकृत कश्मीर के लोग आर्थिक गलियारे के निर्माण का विरोध करते आ रहे हैं। भारत पहले ही आर्थिक गलियारा परियाेजना को पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से गुजारने को अपनी सम्प्रभुता का हनन मानता है। भारत पीओके को अखंड जम्मू-कश्मीर का अंग मानता है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि पाक कर्ज उतारने के लिए पीओके का कुछ हिस्सा चीन को दे सकता है। अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान को भारत के कड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका ने भी पाकिस्तान को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर चेतावनी दे दी है। अमेरिका ने दो टूक कहा है कि इस परियोजना में पारदर्शिता नहीं है और चीन के वित्त पोषण से पाकिस्तान आैर अधिक कर्ज में फंसता जा रहा है। इमरान खान के सामने आगे कुआं और पीछे खाई है। देखना है वह कब तक प्रधानमंत्री का कांटे भरा ताज अपने सिर पर रख सकते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा