जम्मू-कश्मीर में बीते तीन दिन में एक के बाद एक आतंकी घटनाओं ने सीमा पार से हो रही घुसपैठ के खतरों की ओर फिर से आगाह किया है। आगामी दिनों में विधानसभा चुनावों की तैयारी के बीच ये आतंकी हमले बताते हैं कि आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर में आम लोगों में खौफ पैदा करने में जुटे हैं। डोडा में आतंककारियों ने सेना की चौकी पर हमला कर दिया। यह कठुआ में आतंकियों की गोलीबारी में एक जने की मौत और दो अन्य के घायल होने के कुछ घंटों बाद ही हुआ। वहीं तीन दिन पहले ही आतंककारियों ने तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर कायराना हमला किया था। करीब छह साल से लोकतांत्रिक सरकार का इंतजार कर रहे कश्मीर में लोकसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं ने जिस तरह का उत्साह दिखाया, उससे भी आतंकी संगठन और उनके आका बौखलाए हुए हैं। अचानक आतंकी हमले बढ़ने के मद्देनजर कुछ सवाल सटीक और गंभीर हैं। क्या पाक परस्त आतंकवाद कश्मीर घाटी से जम्मू के राजौरी, पुंछ, डोडा आदि क्षेत्रों में शिफ्ट हो गया है? क्या वहां के घने जंगल आतंकियों की पनाहगाह हैं और वहां की पर्याप्त खुफिया सूचनाएं नहीं मिल पा रही हैं? क्या भारत में तीसरी बार मोदी सरकार बनने से पाकिस्तान, खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकवादी गुट बौखलाहट में हैं?
जम्मू-कश्मीर के सुरक्षा-हालात पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने जो शीर्ष बैठकें की हैं, वे बेमानी नहीं हैं, लेकिन उन्हीं से पाकपरस्त आतंकवाद को कुचला और जड़ से उखाड़ा नहीं जा सकता। कश्मीर घाटी और अन्य राज्यों में सक्रिय आतंकवाद या उग्रवाद के उदाहरण हमारे सामने हैं। सेना, सुरक्षा बलों, पुलिस और स्थानीय गुप्तचरों के साझा ऑपरेशन कई साल तक चलाने पड़े, तो आज घाटी लगभग आतंकवाद-मुक्त है। हम इन बैठकों को खारिज नहीं करते, क्योंकि कई विचार सामने आकर साझा किए जा सकते हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण-रेखा से जम्मू-कश्मीर की जमीन तक जो सेना सक्रिय रही है, उसके समानांतर सुरक्षा-बल तैनात और सक्रिय रहे हैं। स्थानीय सूचनाओं और गतिविधियों की सूत्रधार स्थानीय पुलिस रही है। ऐसी तमाम एजेंसियों को एक सर्कुलर के जरिए निर्देश और आदेश दिए जा सकते थे। उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार अपना आदेश दे सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन वर्ष 2016 में उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और वर्ष 2019 को पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के भीतरी इलाकों में हवाई हमले की अनुमति देकर प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया कि वार्ता और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। सिर्फ यही नहीं, पाकिस्तान के साथ व्यापार को भी बंद किया गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया गया।
सऊदी अरब समेत लगभग सभी खाड़ी देश पाकिस्तान के बजाय भारत को प्राथमिकता देने लगे। इससे हताश पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर को अशांत बनाए रखने के लिए पूरा जोर लगाया, लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद हालात बेहतर होते चले गए। आतंकियों पर सुरक्षा बलों का शिकंजा भी कसता गया। इससे बौखलाए पाकिस्तान ने पहले जम्मू संभाग के सीमावर्ती पुंछ और राजौरी जिलों में कई बड़े हमले किए और अब तीसरी बार भी मोदी सरकार बनते देख पाकिस्तान परस्त आतंकियों ने जम्मू के रियासी, कठुआ और डोडा में हमलों को अंजाम दिया।
जम्मू संभाग के राजौरी, पुंछ, कठुआ, डोडा से किश्तवाड़ तक आईबी गुप्तचर की सूचनाएं इतनी सटीक नहीं हो सकतीं, जितनी एक स्थानीय जासूस की गुप्तचरी सटीक हो सकती है और लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो सकता है। जम्मू में खुफिया-तंत्र की कमियां अब भी महसूस की जा रही हैं। वैसे जम्मू संभाग में आतंकी हरकतें अचानक नहीं बढ़ी हैं। ये आतंकियों की रणनीति हो सकती हैं। अलबत्ता 1990-2005 के सालों में जम्मू के घने जंगलात में आतंकी गतिविधियां और हमले निरंतर देखने को मिलते रहे। यह दीगर है कि घुसपैठ, गिरोहबाजी, अलगाववाद और पाक परस्त आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन और अभियान कश्मीर घाटी में ज्यादा किए जाते रहे। तब जम्मू को आतंकवाद-मुक्त करा लिया गया था। अब नए सिरे से आतंकियों ने अपने नेटवर्क जम्मू में फैलाए हैं और अचानक हमले बढ़ा दिए गए हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद नगण्य है। फिर भी 2024 में अभी तक 20 आतंकी हमले किए जा चुके हैं और 13 जून तक 42 नागरिकों और जवानों ने अपनी जिंदगी खोई है। भारत ऐसा नुकसान भी क्यों झेले? बहरहाल केंद्र सरकार से जो निर्देश मिले हैं, उनके मद्देनजर जम्मू-कश्मीर पुलिस महानिदेशक स्वैन का दावा है कि अब बचे-खुचे आतंकवाद को कुचल दिया जाएगा, मसल दिया जाएगा, घर-घर ढूंढ कर चुन-चुन कर मौत के घाट उतार दिया जाएगा।
आतंकियों को सीमा पार से मिल रही मदद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन दिनों सुरक्षा बलों को मुठभेड़ में मारे गए आतंकी के पास बड़ी संख्या में गोला-बारूद, पाकिस्तान में बनी चॉकलेट और दवाइयां बरामद हुए हैं। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि घुसपैठ कर हमारी सीमा में घुस आए आतंकियों के स्थानीय मददगार भी कम नहीं हैं। हमारे जवानों की शहादत भी इसलिए हो जाती है क्योंकि आतंकियों के इन मददगारों की कमर अभी पूरी तरह टूटी नहीं है। अमरनाथ यात्रा और संभावित विधानसभा चुनावों को देखते हुए अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। वहीं इन हमलों का चिंताजनक पहलू यह है कि अब तक आतंकी घटनाओं का केंद्र दक्षिण कश्मीर आदि इलाके होते थे, अब की बार ये हमले जम्मू क्षेत्र में हुए हैं। जम्मू के इलाके में आतंकी घटनाओं में वृद्धि शासन-प्रशासन के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। इन हमलों में पाकिस्तान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उल्लेखनीय है कि बीते 9 जून को हुए हमले की जिम्मेदारी जहां लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी गुट टीआरएफ ने ली तो डोडा में हुए हमले की जिम्मेदारी पाक पोषित जैश-ए-मोहम्मद के एक गुट कश्मीर टाइगर्स नामक आतंकी संगठन ने ली है। बहरहाल, भारतीय सेना व सुरक्षा बल आतंकवादियों को भरपूर जवाब दे रहे हैं। लेकिन इस माह के अंत में शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा का निर्बाध आयोजन सुरक्षा बलों के लिये बड़ी चुनौती होगी। जिसको लेकर विशेष चौकसी बरतने की जरूरत है।
बहरहाल हमारी सुरक्षा एजेंसियों और जवानों की अग्निपरीक्षा 'अमरनाथ यात्रा' है। यह 29 जून से शुरू हो रही है और अगले ही दिन जनरल उपेन्द्र द्विवेदी नए सेना प्रमुख का कार्यभार संभाल रहे हैं। वह कश्मीर और आतंकवाद से अनभिज्ञ, अपरिचित नहीं हैं। अमरनाथ यात्रा अगस्त तक जारी रहेगी। आतंकी हमला करने की फिराक में होंगे और हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने फुलप्रूफ योजना बनाई होगी। यात्रा के चप्पे-चप्पे पर 500 कंपनियों के जवान तैनात किए जा रहे हैं। खुफिया सूचनाओं पर तुरंत कार्रवाई की जा रही है। खासकर टीआरएफ आतंकी संगठन के साथ-साथ लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद के दहशतगर्दों पर भी निगाहें चिपकी रहेंगी। इस बार प्रशासन ने प्रत्येक तीर्थयात्री का 5 लाख रुपए का बीमा भी किया है। जम्मू-कश्मीर और आतंकवाद के संदर्भ में हमारे उन अनुभवी जनरलों की सोच कुछ भिन्न है, जो दशकों तक कश्मीर में कार्यरत रहे हैं और आतंकियों को ढेर किया है। वे जनरल हालिया आतंकी हमलों से क्षुब्ध हैं, क्योंकि आतंकियों ने उस दिन हमला करके भारत के गाल पर तमाचा मारा था, जब देश की सरकार शपथ ले रही थी। अब ऐसे रक्षा विशेषज्ञों की राय है कि पाकिस्तान के साथ जो युद्ध विराम किया हुआ है, तुरंत उस समझौते को रद्द किया जाए। यह युद्ध विराम एकतरफा और बेमानी है, क्योंकि पाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराता रहा है। आतंकियों को हथियार भी मुहैया कराता है। पाकिस्तान फिलहाल फटीचर देश की स्थिति में है। उसकी फौज पर निरंतर हमले करेंगे, तो उसकी फौज ही विकलांग हो जाएगी। वह पलटवार करने लायक भी नहीं रहेगी।
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