संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा के 74वें सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया के सामने दो टूक घोषणा कर दी है कि 72 साल पहले लम्बी गुलामी से आजाद हुए भारत ने अपनी विकास यात्रा इस तरह पूरी की है कि आज यह अपने गरीब नागरिकों के लिए दुनिया की सबसे बड़ी ‘स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ चलाने वाला देश बन गया है और पिछले पांच सालों में 37 करोड़ लोगों के बैंक खाते खुलवा कर भारत की 130 करोड़ आबादी के लगभग समूचे हिस्से को सीधे बैंकिंग प्रणाली से जोड़ चुका है और स्वच्छता अभियान के तहत 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके इसने दुनिया के अन्य विकासशील देशों को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया है और नागरिकों की डिजीटल प्रणाली से पहचान जारी करके इसने 20 अरब डालर की धनराशि को भ्रष्टाचार की गंगा में बहने से रोकने में सफलता प्राप्त की है।
वास्तव में यह उपलब्धि कोई छोटी नहीं है जो हमने भारत की उस लोकतान्त्रिक प्रणाली के तहत अर्जित की है जिसे आजादी मिलने से पहले ही भविष्य में अपनाने की महात्मा गांधी द्वारा घोषणा करने पर ब्रिटिश संसद में बैठे अंग्रेज विद्वानों ने कहा था कि ‘भारत ने ऐसे अंधे में कुएं में छलांग लगाने का फैसला कर लिया है जिसके भीतर क्या है, उसे कोई नहीं जानता?’ यह घटना 1932 की है जब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत से अपने हाथ खींचने की तैयारी कर ली थी और 1935 में इसकी संसद ने नया ‘भारत सरकार कानून’ बनाया था जिसके तहत पहली बार भारत में प्रान्तीय एसेम्बलियों के चुनाव कराये गये थे।
अतः राष्ट्र संघ महासभा में जब श्री मोदी ने अपने भाषण की शुरूआत यह कहकर की कि वे उस देश के प्रधानमन्त्री के तौर पर यहां हैं जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र कहा जाता है और जहां हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े चुनाव हुए हैं और इन चुनावों में दुनियाभर में सबसे ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग करके उनकी सरकार को दूसरी बार पहले से भी बड़ा बहुमत देकर चुना है तो बापू के 150वीं जयन्ती वर्ष में भारत का वह सपना साकार हो गया जिसे आजादी की लड़ाई लड़ते हुए राष्ट्रपिता ने देखा था। श्री मोदी ने भारत की केवल वह ताकत बताई है जो इसके लोगों में छिपी हुई है और जिसका इल्म स्वतन्त्रता युद्ध लड़ते हुए गांधी बाबा से लेकर पं. नेहरू और सरदार पटेल व मौलाना आजाद तक को था।
राष्ट्र संघ में श्री मोदी उस राजनेता की तरह बोल रहे थे जिसका सपना समूची मानव जाति के उत्थान का होता है। अतः आतंकवाद के विरुद्ध उनका दुनिया के सभी देशों से एकजुट होने का आह्वान मानव अस्मिता को सर्वोच्च रखने का ही मन्त्र कहा जायेगा। उनका सारगर्भित भाषण इस बात का प्रतीक माना जायेगा कि उनकी नीति कार्य रूप में फैसलों को जमीन पर उतारने की है इसलिए उनका यह कहना उस पड़ौसी देश ‘पाकिस्तान’ के लिए काफी है कि आतंकवाद पनपाने वालों के लिए उनमें आक्रोश भी है क्योंकि भारत ऐसा देश है जिसने ‘युद्ध’ नहीं बल्कि ‘बुद्ध’ दिये हैं। दरअसल आतंकवाद के मुद्दे पर जिस तरह राष्ट्रसंघ के सभी देशों में एक राय कायम नहीं हो पा रही है, उस पर भी हमारे प्रधानमन्त्री ने गंभीर चिन्ता व्यक्त की है।
भारतीय जीवन मूल्यों की व्याख्या करके श्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि हजारों साल से भारत की मान्यता समस्त संसार को ‘अपना’ मानने की रही है मगर अफसोस की बात है कि पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने राष्ट्रसंघ के अंतर्राष्ट्रीय मंच को अपनी ओछी व मजहबी सियासत का जरिया बनाने की पुरजोर कोशिश में आतंकवाद का ही समर्थन कर डाला और जम्मू-कश्मीर को विवादास्पद बनाने की गरज से इस्लामी आतंकवाद तक की पैरवी कर डाली। इससे साबित होता है कि इमरान खान की जहनियत किसी दहशतगर्द तंजीम के फलसफे की कैफियत है। हकीकत यही रहेगी कि इमरान खान राष्ट्रसंघ के मंच पर खड़े होकर अपने हाथ में भीख का कटोरा लिये हुए नजर आये जब उन्होंने कहा कि उनके जैसे गरीब मुल्कों की मदद के लिए अमीर मुल्कों को आगे आना चाहिए और क्योंकि पाकिस्तान जैसे देश में सियासत करने वाले लोग अपने मुल्क से सरमाया चुरा कर ‘टैक्स हैवंस’ कहे जाने वाले मुल्कों में जमा कर देते हैं और विश्व की संस्थाएं जो मदद गरीब मुल्कों को देती हैं उसका इस्तेमाल आम लोगों की जिन्दगी तब्दील करने में नहीं हो पाता।
यही फर्क हमें बताता है कि 1947 में ही भारत से अलग होकर तामीर हुए इस मुल्क की असलियत क्या है? मगर देखिये किस ताबो-तर्ज से इस मुल्क का वजीरेआजम कश्मीर में धारा 370 को हटाये जाने पर आपे से बाहर हो रहा है कि वह राष्ट्रसंघ में खड़े होकर भारत के इस सूबे में खून-खराबा होने की धमकी दे रहा है और परमाणु युद्ध तक का अन्देशा दिखाकर भारत को डराने की कोशिश कर रहा है। सर से पांव तक लुटे-पिटे और ‘बेनंग-ओ-नाम’ पाकिस्तान के ये तेवर दिखाते हैं कि उसके घर तक के ‘बर्तन’ बिकने वाले हैं और वह अपने वजूद को बचाये रखने की गरज से कश्मीर को मुद्दा बनाना चाहता है मगर पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान वह मुल्क है जिसके भीतर शिया मुसलमानों से लेकर वोहरा मुसलमान और आगा खानी मुसलमान तक सुरक्षित नहीं हैं तो फिर अल्पसंख्यक हिन्दुओं और ईसाइयों की क्या बिसात! सौ नहीं हजारों चूहे खाकर बिल्ली हज पर जाने का नाटक कर रही है। जिस इमरान खान से अपना घर नहीं संभल रहा है वह कश्मीर को लेकर नौहागर (रुदाली) बन रहा है।
जम्मू-कश्मीर तो वह सूबा है जिसकी अवाम ने 1947 में ही पाकिस्तान के बनने का ही सख्त विरोध किया था मगर उन्हीं इस्लामी जेहादियों (आतंकवादियों) ने इसे जहन्नुम में बदलने के लिए पाकिस्तानी फौज के साथ मिलकर साजिश-दर-साजिश अंजाम देकर इसकी संस्कृति में जहर घोलने का काम किया और हर आतंकवादी की मौत पर अपनी छाती पीटी मगर आज इमरान खान पूरी दुनिया से उलटे पूछ रहे हैं कि उन ‘मुजाहिदों’ को आतंकवादी क्यों कहते हो जिन्हें अफगानिस्तान से सोवियत संघ को बाहर करने के लिए अमेरिकी इमदाद से खुद पाकिस्तान ने ही खड़ा किया था? खुदा का शुक्र है कि कम से कम हुजूर ने कबूल तो फरमाया कि दहशतगर्द तंजीमों की तामीर के लिए उनका मुल्क ही गुनहगार है।
अब वह फरमा रहे हैं कि उनकी सरकार उन्हें तबाह करने पर तुली हुई है। यह कैसा दो मुंहापन है जो पाकिस्तान के एक ‘गुमशुदा’ मुल्क होने की गवाही दे रहा है और उस पर यह हिमाकत कि कश्मीर से प्रतिबन्ध हटते ही और ‘पुलवामा’ हो सकते हैं जिनकी जिम्मेदारी भारत पाकिस्तान पर ही डालेगा! जाहिराना तौर पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के सात दिनों के अमेरिका दौरे ने पाकिस्तान को वह आइना दिखा दिया है जिसमें उसे अपनी शक्ल देखकर ही 1971 की याद आने लगी है लेकिन हैरत है कि चीन भी उसकी हिमायत में उतर कर अपने पुराने रुख से पल्टी मारने की कोशिश कर रहा है जबकि अमेरिका कह रहा है कि पाकिस्तान चीन में रहने वाले लाखों मुसलमानों के साथ होने वाली बेइंसाफी की बात क्यों नहीं करता? इमरान खान को समझना चाहिए भारतीय उपमहाद्वीप किसी भी सूरत में विश्व शक्तियों का जंगी अखाड़ा नहीं बन सकता।