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पाकिस्तान : माकूल जवाब मिलेगा

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सेना अध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने पाकिस्तान की सेना और दहशतगर्दों की पैशाचिक कार्रवाइयों का करारा जवाब देने की जरूरत बताते हुए स्पष्ट किया है कि हम बर्बरता और पाशविकता का जवाब जरूर देंगे मगर हमारा स्तर वह नहीं हो सकता जो पाक का है। भारतीय जनरल ने पाकिस्तान द्वारा भारतीय फौज के जवानों के शवों के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार पर गहरा रोष प्रकट करते हुए उस बर्बरता को एक सिरे से नकारा है जो पाकिस्तान भारतीय फौजियों के साथ करता है। यही भारत की शक्ति है कि वह हैवानों के चेहरों से नकाब उठा कर उन्हें उनकी हकीकत बताने में यकीन रखता है। दुनिया की कोई भी फौज वैसी हरकतें नहीं करती है जैसा पाकिस्तान भारतीय फौज के जवानों के शहीद और वीरगति पाने पर करता है। जाहिर है इसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हमारी फौज को नई रणनीति पर विचार करना होगा मगर इसका खुलासा सार्वजनिक रूप से नहीं किया जा सकता।

जनरल ने इसी तरफ इशारा करते हुए चेताया है कि फौज की कार्रवाई माकूल होगी। दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने भारत द्वारा राष्ट्रसंघ महासभा के अवसर पर न्यूयार्क में उसके विदेशमन्त्री के साथ होने वाली बैठक को रद्द किए जाने को भारत का अभिमानी रवैया या ऐंठ कहकर अपनी बदहवासी जाहिर कर दी है क्योंकि पाकिस्तान में जिस तरह दहशतगर्दों को वहां की फौज अपनी अतिरिक्त बटालियन मानती है उसका पर्दाफाश हो चुका है। पाकिस्तानी सरजमीं पर पलने वाले दहशतगर्द जिस तरह सरहदों पर पाक फौजियों की मदद करते हैं और भारतीय रियासत जम्मू-कश्मीर में जिस तरह की हैवानियत को अंजाम देते हैं उससे यह जगजाहिर हो चुका है कि यह मुल्क दहशतगर्दों को अपनी सियासत का हिस्सा मानता है। अतः एेसे मुल्क के विदेशमन्त्री से भारत के विदेशमन्त्री की बैठक की कोई तुक नहीं बनती है।

किसी भी बैठक के लिए जरूरी है कि पाकिस्तान सबसे पहले एेलान करे कि वह अपनी हुकूमत के तहत चलने वाले सारे इलाके में भारत के खिलाफ दहशतगर्दी करने वालों को पनाह नहीं देगा और न ही एेसी किसी भी तंजीम को कोई रियायत देगा जिसे दहशतगर्द चला रहे हों। मगर क्या कयामत है कि अन्तरराष्ट्रीय रूप से घोषित आतंकवादी हाफिज सईद पाकिस्तान में समाज सेवा के नाम पर संगठन चलाता है और सियासी पार्टी भी बना लेता है और पाकिस्तानी सरकार और फौज खुशी-खुशी उसके कारनामों को कबूल कर लेते हैं। इतना ही नहीं मौलाना अजहर मसूद जैसा आतंकवादी भी पाकिस्तान में ‘शरीफ’ बना हुआ घूमता है। इसके बावजूद इमरान खान चाहते हैं कि श्रीमती सुषमा स्वराज उनके विदेशमन्त्री महमूद कुरैशी से भेंट करें। यह कुरैशी वही हैं जो 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए पाकिस्तानी दहशतगर्द हमले के वक्त भारत की राजकीय यात्रा पर आये हुए थे।

उस समय के भारतीय विदेशमन्त्री श्री प्रणव मुखर्जी ने उन्हें बोरिया-बिस्तर बांध कर इस्लामाबाद रवाना कर दिया था और इसके बाद पाकिस्तान को पूरी दुनिया में आतंकवादी देश घोषित करने के मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया था। भारत की यह कूटनीतिक महाविजय थी क्योंकि दुनिया के हर इस्लामी मुल्क तक ने पाकिस्तान के सामने यह शर्त रख दी थी कि पहले वह अपने यहां से दहशतगर्दी खत्म करे। इसके साथ ही पाकिस्तान को यह भी समझ लेना चाहिए कि उसके साथ बर्ताव को लेकर भारत की अंदरूनी सियासत में पूरी तरह एका रहा है। केन्द्र में चाहे भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस पार्टी की मगर दोनों ही पार्टियां पाकिस्तान के मुद्दे पर एक-दूसरे का समर्थन करती रही हैं। जब 1998 से 2004 तक स्व. वाजपेयी की सरकार थी तो लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने उन्हें पाक नीति पर पूर्ण समर्थन देने का एेलान किया था और जब डा. मनमोहन सिंह की सरकार थी तो भाजपा के नेताओं ने उस सरकार की पाक नीति का समर्थन किया था।

बेशक बाद में कुछ परिवर्तन आया मगर इसका मतलब पाकिस्तान के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर रियायत कभी नहीं रहा। हालांकि समय-समय पर भारत ने पाक के साथ रिश्ते सुधारने के लिए लीक से हटकर कदम भी उठाये मगर इसने दहशतगर्दों को पनाह देना कम नहीं किया। हद तो यह हुई कि जिस दिन भारत ने कहा कि सुषमा स्वराज न्यूयार्क में महमूद कुरैशी से मिल सकती हैं उसी दिन भारतीय सेना के जवान को शहीद करके उसका शव क्षत-विक्षत कर दिया गया और कश्मीर घाटी में तीन पुलिस अफसरों को अगवा करके उनकी हत्या कर दी गई। अतः बहुत साफ है कि हम अपने घर के अन्दर एक-दूसरे की आलोचना जरूर कर सकते हैं मगर जब पाकिस्तान का मुद्दा आयेगा तो पूरा भारत एक साथ उठ कर खड़ा होने से पीछे नहीं हटेगा। यही वजह रही कि न्यूयार्क में दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों की बैठक के मुद्दे पर सियासी कोहराम मच गया। इसलिए जनरल रावत ने यह कहकर कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते हैं, भारत की घोषित विदेश नीति का ही समर्थन किया है और अपने दायित्व के दायरे को नहीं लांघा है। इसलिए जरूरी है कि पाकिस्तान पहले उस सभ्यता का परिचय दे जो देशों के बीच में जरूरी शर्त होती है। उसके बाद ही बातचीत की अपेक्षा रखे और यह गलतफहमी निकाल दे कि भारत की फौज असभ्य को सभ्य बनाने की कला नहीं जानती है। जनरल रावत ने इसी तरफ संकेत दिया है।

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