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पं. नेहरू और आज की कांग्रेस

स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि 27 मई हालांकि बिना किसी बड़े जन-भागीदारी के आयोजन के ही गुजर गई मगर वर्तमान भारत में पं. नेहरू द्वारा किये गये भारत के निर्माण के कार्यों में जनता की भागीदारी स्वयं बोलती है।

स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि 27 मई हालांकि बिना किसी बड़े जन-भागीदारी के आयोजन के ही गुजर गई मगर वर्तमान भारत में पं. नेहरू द्वारा किये गये भारत के निर्माण के कार्यों में जनता की भागीदारी स्वयं बोलती है। वह आधुनिक भारत के निर्माता थे और इस देश की जनता को वैज्ञानिक सोच की तरफ ले जाने वाले महान व्यक्ति थे, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़ी गई आजादी की लड़ाई के मूल्यों को उन्होंने स्वतन्त्र भारत में स्थापित करने के लिए लोकतन्त्र को प्रतिष्ठापित करने में अपनी पार्टी कांग्रेस के भीतर भी कोई समझौता नहीं किया और अपने जीवन काल में ही उठी इस बहस को कि ‘नेहरू के बाद कौन?’ को बड़े चाव से पढ़ा और सुना। मगर आज हमें 2023 में यह समझने की जरूरत है कि पं. नेहरू की कांग्रेस की हालत क्या है? प्रथम लोकसभा चुनाव 1952 से लेकर अब तक 70 साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है और आज उनकी पार्टी की जगह उस पार्टी भाजपा ने ले ली है जिसके संस्थापक पं. नेहरू के ही मन्त्रिमंडल में रहे उद्योगमन्त्री श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। स्व. मुखर्जी 15 अगस्त, 1947 को गठित पं. नेहरू की राष्ट्रीय सरकार में हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने 1951 के शुरू में ही सरकार से इस्तीफा देकर पृथक जनसंघ पार्टी गठित की थी। 
श्री मुखर्जी ने दिसम्बर 1950 में पं. नेहरू व पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री लियाकत अली खां के बीच दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के धार्मिक व नागरिक अधिकारों को संरक्षण देने की बाबत समझौता किया था। इस समझौते से श्री मुखर्जी सहमत नहीं थे अतः उन्होंने मन्त्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। अगस्त 47 से दिसम्बर 50 तक नेहरू सरकार ने जितने भी फैसले किये उन सभी पर श्री मुखर्जी की सहमति थी जिनमें जम्मू-कश्मीर से मुतल्लिक सारे फैसले भी शामिल थे। अतः आज इस समझौते के 72 साल बाद हम भाजपा के जिस हिन्दू मूलक राष्ट्रवाद का उफान देख रहे हैं वही वर्तमान कांग्रेस की खराब हालत के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है।
लोकतन्त्र में यह पूरी तरह जायज भी है क्योंकि प्रत्येक राजनैतिक दल को संविधान के दायरे में अपनी विचारधारा के प्रचार-प्रसार का अधिकार होता है परन्तु नेहरू कांग्रेस की वह ताकत थी कि उसने इस विचार के ऊपर भारत के उस विचार को लोकप्रियता दिलाई जो भगवान बुद्ध के दर्शन से अभिप्रेरित थी और जिसमें इंसान और इंसानियत को सबसे ऊपर रखा गया था। महात्मा गांधी के इस सिद्धान्त को ही सर्वोपरि रख कर उन्होंने स्वतन्त्र भारत में हर हिन्दू-मुसलमान को सबसे पहले अच्छा नागरिक बनने की ताकीद की और लोकतन्त्र में मिले अपने अधिकारों का पूरा प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। एेसा प्रयोग उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस में ही सफलतापूर्वक किया और पांचवीं पास अत्यन्त गुरबत में पले एक नेता स्व. कामराज को अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। श्री कामराज दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के पिछड़े समुदाय से आते थे। पं. नेहरू ने 1963 के आखिर में श्री कामराज को पार्टी का अध्यक्ष बनाया और खुद प्रधानमन्त्री रहते हुए उनके निर्देशों पर चलना कबूल किया जबकि पं. नेहरू कैम्ब्रिज से पढे़ हुए थे और बैरिस्टर थे। उन्होंने देश के हित में एक फकीर और फक्कड़ का जीवन जीने वाले एेसे कामराज को सरपरस्त बनाया जो बचपन में जिस कपड़े की दूकान पर नौकरी करता था रात्रि को उसी के बाहर सो जाता था। इन्हीं कामराज ने बाद में स्व. लाल बहादुर शास्त्री और इन्दिरा गांधी जैसे दो प्रधानमन्त्री देश को तब दिये जब कांग्रेस पार्टी के नेता ही उन पर स्वयं प्रधानमन्त्री बनने के लिए दबाव डालते थे। तब कामराज ने कहा था कि ‘आप समझते क्यों नहीं, मुझे हिन्दी नहीं आती है और इस महान देश का प्रधानमन्त्री वही बन सकता है जिसे हिन्दी आती हो’। यह सारा फसाना लिखने की वजह यह है कि आज की कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी अपनी पार्टी को पं. नेहरू की राह पर ले जाने की पूरी कोशिश में हैं। 
बेशक बीच में जरूर एेसा दौर आया है जब कांग्रेस पार्टी इस रास्ते से हट गई थी मगर राहुल गांधी इसके अतीत के स्वर्णिम काल से प्रेरणा लेते लगते हैं। यह बेवजह नहीं है कि कर्नाटक राज्य के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस ने अपना अध्यक्ष बनाया है। श्री खड़गे एक दलित मिल-मजदूर के बेटे हैं। उनका बचपन बहुत कष्टों में बीता है। बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की है। नेहरू के रास्ते पर चल कर ही राहुल गांधी कांग्रेस को फिर से इस देश के लोगों में उनके ‘बुद्ध वाद’ को स्थापित कर सकते हैं जिसका मतलब करुणा, प्रेम, स्नेह, दया और भाईचारा अर्थात इंसानियत होता है। अतः जिस तरह भारत के सकल विकास में नेहरू के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता वैसे ही कांग्रेस पार्टी के विकास में नेहरू के विमर्श को भी नहीं भुलाया जा सकता। बेशक आज की कांग्रेस किसे ‘लुटे नवाब की जागीर’ की मानिन्द ही क्यों न हो मगर इसके अवशेषों में वे चिराग दबे पड़े हैं जिन्हें पुनः रौशन करके राहुल गांधी अपनी पार्टी को फिर से रोशन कर सकते हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में राहुल ने आज के कामराज को खोज कर वही काम किया है जो पं. नेहरू ने 1963 में किया था।  गौर से देखा जाये तो आज कांग्रेस को नेहरू के बताये रास्ते पर ही चलने की सख्त जरूरत है और हर राज्य में एक विधानचन्द्र राय (प. बंगाल के कांग्रेसी नेता ) बनाने की जरूरत है जो मुख्यमन्त्री  रहते हुए हुए पं. नेहरू को लिखे गये अपने खत की शुरूआत  ‘माई डियर जवाहर लाल’ से किया करते थे। नेहरू जी की पुण्यतिथि पर यही कहा जा सकता है-
‘‘भारत के सरताज थे नेहरू,
हिन्द के हमराज थे नेहरू।’’

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