कनाडा और भारत के रिश्ते अटूट हैं। कनाडा में पंजाब की झलक मिलती है, कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां आपको महसूस ही नहीं होता कि आप विदेश आए हैं, आपको लगेगा जैसे जालन्धर, लुधियाना या पंजाब के किसी शहर में घूम रहे हैं। 1903 में काम की तलाश में भारत से निकले कुछ सिख कनाडा गए। यह देश उनको इतना बेहतर लगा कि वे फिर लौट कर आए ही नहीं। 1903 के बाद यह सिलसिला थमा नहीं, आज भी हजारों लोग कनाडा जाकर बस जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि कनाडा में लोगों को अपनी तरह से जीवन जीने की पूरी स्वतंत्रता है। अप्रवासियों के लिए यह देश सबसे बेहतर है। पूरी दुनिया का सबसे आजाद देश है कनाडा। अप्रवासियों के लिए यह सबसे अधिक सहिष्णु देश है। कनाडा की शिक्षा ने उसे खास बना दिया है।
शिक्षा के मामले में कनाडा दुनिया में दूसरे नम्बर पर है जबकि आस्ट्रेलिया पहले नम्बर पर है। देश की अर्थव्यवस्था भी काफी मजबूत है। ऐसे स्वतंत्र और सहिष्णु माहौल में पंजाब मूल के लोग तरक्की न करें, हो ही नहीं सकता। मेहनतकश पंजाबियों ने कनाडा के सर्वांगीण विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। भारत और कनाडा के बीच संबंधों की गहराई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कनाडा में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 11 लाख से अधिक हो गई है। वहां हर स्तर पर भारतीयों की मौजूदगी महसूस की जा सकती है। कनाडा के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में भारतीयों की बढ़ती भूमिका की वजह से ही भारत के प्रति कनाडा सरकार के रुख में परिवर्तन हुआ है। भारतीय छात्र कनाडा में पढ़ने के लिए जाते हैं लेकिन उनमें से अधिकतर वहीं के ही हो जाते हैं। भारतीय यहां नौकरी और बिजनेस के लिए आते हैं लेकिन इस बार बात कुछ अलग है।
कनाडा के हाऊस ऑफ कामंस में भारतीय मूल के 20 सांसद हैं जिनमें 18 लिबरल और दो कंजरवेटिव पार्टी से हैं। पंजाबी को तीसरी बड़ी भाषा का दर्जा हासिल है। भारत के लिए यह गौरव की बात है कि कनाडा की रक्षा का जिम्मा भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक हरजीत सिंह सज्जन संभाल रहे हैं। नवदीप बैंस विज्ञान एवं आर्थिक विकास मंत्री हैं जबकि अमरजीत सिंह सोढ़ी इंफ्रास्ट्रक्चर मंत्री हैं। बंदिश घग्गड़ लघु व्यापार और पर्यटन मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो को कई बार भारतीय रंग में रंगा देखा गया। भारतीय मूल की सिख महिला आैर मानव अधिकार कार्यकर्ता पलविंदर कौर शेरगिल कनाडा सुप्रीम कोर्ट आफ ब्रिटिश कोलम्बिया में जज हैं। पलविंदर कौर शेरगिल पहली पगड़ीधारी सिख महिला हैं जो जज के तौर पर नियुक्त की गई हैं।
अब 38 वर्षीय सिख वकील जगमीत सिंह को कनाडा की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में चुना गया है। वह देश के एक प्रमुख राजनीतिक दल का प्रमुख होने पर पहले अश्वेत राजनीतिज्ञ बन गए हैं। न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी वर्तमान में कनाडा की संसद में तीसरे स्थान पर है, जिसके पास 338 सीटों में से 44 सीटें हैं। हालांकि यह पार्टी कभी सत्ता में नहीं आई, 2015 के चुनाव में इस पार्टी ने 59 सीटें गंवा दी थीं। जगमीत सिंह ओंटारियो प्रांत से सांसद हैं। उन्होंने तीन उम्मीदवारों को हराया था और 53.6 फीसदी वोट हासिल किए थे। अब वह कनाडा के अगले प्रधानमंत्री के लिए आधिकारिक दावेदार बन गए हैं। जगमीत सिंह का परिवार पंजाब में बरनाला के गांव ठीकरीवाला में रहता था।
जगमीत सिंह शहीद सेवा सिंह ठीकरीवाला के पड़पौत्र हैं। जगमीत सिंह की सफलता पर उनके पैतृक गांव में लोग गर्व महसूस कर रहे हैं। सवाल यह नहीं है कि जगमीत सिंह कनाडा के प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं, कनाडा की किसी बड़ी पार्टी का प्रतिनिधित्व करना ही अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। जगमीत सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी पार्टी को मजबूत बनाना है। देखना होगा कि वह किस तरह अपनी पार्टी को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाते हैं।
दरअसल सिखों के कनाडा जाने और वहां बसने का सिलसिला २० वीं शताब्दी में शुरू हुआ, उस समय भारत में ब्रिटिश शासन था। उस समय पंजाब के लोगों के पास दो विकल्प थे, या तो वे फौज में भर्ती हो जाएं या फिर बाहर कहीं चले जाएं। दूसरे वे लोग थे जो पंजाब में खेती करते थे पर लगान और फिर खराब परिस्थितियों में पलायन कर गए। कनाडा पहुंचे सिखों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। इनमें से एक घटना कामागाटा मारू जहाज की भी है। लाला हरदयाल की गदर पार्टी को ब्रिटिश कोलम्बिया में भरपूर समर्थन मिला था। कनाडा में बसे सिख आर्थिक रूप से मजबूत तो हैं ही, राजनीतिक रूप से भी मजबूत हैं। कनाडा की राजनीति में उनकी अहम भूमिका रही है। संसद में ही नहीं कई पंजाबी मूल के लोग राज्यों में भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। कनाडा में पंजाबी सिखों की संख्या इतनी ज्यादा है कि लगभग सभी दल भारतीयों के वोट को रिझाना चाहते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि जगमीत सिंह कनाडा की सियासत में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।