प. बंगाल में कानून की जीत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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प. बंगाल में कानून की जीत

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सर्वोच्च न्यायालय ने आज प. बंगाल में सीबीआई की कार्रवाई के बारे में जो फैसला दिया है उसका सन्देश केवल इतना है कि भारत के लोकतन्त्र का मतलब सिर्फ कानून का राज है बेशक शासन किसी भी पार्टी का हो सकता है। देश की सबसे बड़ी अदालत के न्यायमूर्तियों ने सीबीआई को आदेश दिया है कि शारदा चिट फंड मामले में वह कोलकाता के पुलिस कमिश्नर श्री राजीव कुमार से पूछताछ अपने दिल्ली मुख्यालय के स्थान पर ‘शिलांग’ में कर सकती है, मगर बिना किसी तंग करने के तरीके अपना कर और इस क्रम में उन्हें गिरफ्तार करने का अधिकार उसे नहीं होगा।

प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने अपनी राज्य की राजधानी के पुलिस कमिश्नर के पक्ष में सत्याग्रह भी इसीलिए छेड़ा था कि सीबीआई ‘शारदा जांच’ के नाम पर उनकी गिरफ्तारी करके राज्य की पुलिस में डर का माहौल बनाना चाहती है और इसके लिए उन्होंने आरोप लगाया था कि सीबीआई का चुनावों से ठीक पहले ऐसा कदम राजनीति से प्रेरित है। इसके विपरीत सीबीआई ने दलील पेश की कि श्री राजीव कुमार शारदा जांच से जुड़े कुछ तथ्यों को छिपाना चाहते हैं जिसकी वजह से वह उन्हें संभावित आरोपी के रूप में देख रही है मगर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले से साफ कर दिया है कि तथ्यों और सबूतों की रोशनी में ही किसी पर भी शक किया जा सकता है। अतः सीबीआई श्री राजीव कुमार से पूछताछ करे मगर ऐसी जगह जहां दोनों ही तरफ के पुलिस अधिकारी अपने अख्तियारों का बेजा इस्तेमाल न कर सकें। इसीलिए यह भारत के लोकतन्त्र की जीत है जिसमें सिर्फ कानून का राज चलता है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि अब तक जांच पूरी क्यों नहीं हुई। सीबीआई पहले क्या कर रही थी।

सीबीआई का काम यह देखने का नहीं है कि कौन नेता किस पार्टी का सदस्य है, उसका काम सिर्फ यह देखने का है कि किसने अपराध किया है क्योंकि कानून के राज का मतलब सिर्फ यही है कि कानून को अपना काम आंखें बन्द करके करना चाहिए। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि सीबीआई जैसी संस्थाएं भारत के लोगों से ही वसूले गये राजस्व से चलती हैं और लोगों को न्याय देना ही इनका लक्ष्य होता है। 1 अप्रैल 1963 को पं. जवाहर लाल नेहरू ने इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य उच्च पदों पर फैले भ्रष्टाचार को रोकना बताया था। अतः किसी भी राजनैतिक दल की सरकार का यह पवित्र कर्तव्य बनता है कि वह इस संस्था का उपयोग बिना किसी राजनैतिक प्रतिशोध की भावना से इस प्रकार करे कि स्वयं उसके विपक्षी दल उसकी नीयत पर शक न कर सकें।

भारत का लोकतन्त्र हमारे पुरखों द्वारा नई पीढ़ी के हाथ में सौंपा गया ऐसा नायाब तोहफा है जिसकी छाया में ही हमने पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट जगह बनाकर लोगों को चौंकाया है। इस व्यवस्था को हमेशा तरोताजा रखने की जिम्मेदारी भी हमारे पुरखों ने बहुत दूरदर्शिता के साथ ऐसी संस्थाएं बनाकर की जिससे भारत के हर नागरिक को किसी भी राजनैतिक दल की सरकार के छाते के नीचे हमेशा यह यकीन रहे कि उसके एक वोट से चुनी गई सरकार हमेशा हुकूमत की पायेदारी को कानून के राज से ही इज्जत बख्शेगी। सरकार की तसदीक करने के लिए संसद का मंच इसीलिए है कि इसमें हर पार्टी का चुना हुआ सदस्य अपनी बात बिना किसी खौफ के कह सके।

सांसदों को विशेषाधिकार देने का उद्देश्य उन्हें आम जनता पर अपना रुआब गालिब करने के लिए नहीं बल्कि जनता के ही सवालों को बिना किसी लालच या डर के बेलौस तरीके से उठाने के लिए दिया गया था। उनके इस अधिकार में सरकार का कोई दखल नहीं रखा गया। (बेशक दलबदल कानून के आने से इसमें रुकावटें आयी हैं) इसी प्रकार राज्य व केन्द्र सम्बन्ध भी हमने इस प्रकार तय किये हैं कि हर राज्य की पुलिस वहीं की चुनी हुई सरकार की ताबेदारी करते हुए केवल कानून की ही हिफाजत करने में ही अपनी पूरी ताकत लगाये और लोगों के कानूनी अधिकारों की मुहाफिज बने मगर पुलिस के इस हक की हिफाजत करना भी राज्य सरकार का ही काम होता है। अतः यह बेवजह नहीं था कि 1963 में जब सीबीआई का गठन किया गया तो यह शर्त रखी गई कि सीबीआई को किसी राज्य में अपनी कार्रवाई को अंजाम देने के लिए वहां की राज्य सरकार की सहमति भी लेनी होगी।

बेशक सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय उसे किसी भी राज्य में जांच करने का काम सौंप सकते हैं और ऐसी हालत में राज्य सरकार का कोई दखल नहीं होगा मगर ऐसी सूरत में संविधान अपना वह काम करेगा जो भारत के हर नागरिक को एक बराबर के अधिकार देता है और राज्य पुलिस के किसी भी अफसर की हैसियत कानून के सामने एक बराबरी पर आ जाती है। जाहिर है कि प. बंगाल में पुलिस बरक्स सीबीआई झगड़े में इसी सिद्धान्त का पालन हुआ है। इसमें न तो जीत पुलिस कमिश्नर की हुई है और न ही सीबीआई की बल्कि जीत कानून की हुई है।

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