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लोक जीता, भ्रष्ट तंत्र हारा

नोएडा में सन्नाटे के बीच हुए जोरदार धमाके के साथ उठे धूल के गुबार के बीच भ्रष्टाचार की नींव पर बने अवैध ट्विन टावर जमींदोज हो गए।

नोएडा में सन्नाटे के बीच हुए जोरदार धमाके के साथ उठे धूल के गुबार के बीच भ्रष्टाचार की नींव पर बने अवैध ट्विन टावर जमींदोज हो गए। 3700 किलो विस्फोटक की मदद से यह इमारतें कुछ ही सैकेंड में ध्वस्त हो गईं। इन टावरों को गिराने के लिए बायर और बिल्डर समाज के बीच एमराल्ड पोर्ट सोसायटी के बायर्स की बड़ी जीत हुई। सोसायटी के दूसरे टावर में रहने वाले बायर्स ने बिल्डर की तरफ से बनाए जा रहे ट्विन टॉवर के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई नोएडा अथाॅरिटी से शुरू हुई। हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुची और  अंततः लोक  की जीत हुई और भ्रष्ट तंत्र हार गया। कानूनी लड़ाई के चलते ट्विन टॉवर के 32 मंजिल बन चुके थे लेकिन रेजीडेंट वैलफेेयर एसोसिएशन पीछे नहीं हटी। भ्रष्टाचार के ​विरुद्ध इस लंबे संघर्ष में सर्वोच्च न्यायालय की साख और बढ़ी और उसने फैसला देकर ऐसी नजीर स्थापित की जो बिल्डरों के लिए एक सबक साबित होगी। आगे से कोई भी नियमों और कानूनों का उल्लंघन नहीं करे। अब दोनों टॉवर इतिहास बन चुके हैं और  इनकी तस्वीरें ही दिखाई देंगी। लेकिन सवाल सबके सामने है कि यह टावर कैसे खड़े हो गए। भ्रष्टाचार के यह टावर बिल्डर कम्पनी सुपरटेक नोएडा अथाॅरिटी के अफसरशाहों और राजनीतिज्ञों के सांठगांठ के चलते खड़ी हुई थी। यह जग जाहिर है कि नोएडा का बिल्डर माफिया कोई रातोंरात नहीं पनपा है बल्कि इसे भ्रष्ट सत्ता का वर्षों तक संरक्षण रहा है। आवासीय परियोजनाएं पारित होने से लेकर निर्माण तक में भ्रष्ट तंत्र काम करता है। लाखों फ्लैट खरीदार इस बात के भुक्तभोगी हैं कि एक बिल्डर कंपनी ने नहीं लगभग सभी बिल्डरों ने खुली लूट मचाई और  बुकिंग के नाम पर करोड़ों की उगाही की। एक प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ कि दूसरे प्रोजेक्ट का ऐलान कर दिया गया। नामी खिलाडि़यों और फिल्मी सितारों के चेहरों का सहारा लेकर पब्लिसिटी का ऐसा जाल बुना गया कि बिल्डर कंपनियों के बुने जाल में आम आदमी फंसता ही चला गया उन्हें आज तक न आशियाना मिला और न अपनी मेहनत की कमाई। अनेक एसोसिएशनें आज भी कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। खरीदारों को अपने खून-पसीने की कमाई वापस मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं है। एमराल्ड पोर्ट में टावर निर्माण में भवन कानूनों का खुला उल्लंघन किया गया। जब 2008 में फ्लैटों का कब्जा देना शुरू किया गया तो 2009 में फ्लैट बायर्स ने अपनी वैलफेयर रैजीडेंट एसोसिएशन बनाई। नेशनल बिल्डिंग कोड का नियम यह है कि किसी भी दो आवासीय टावरों के बीच कम से कम 16 मीटर की दूरी होना जरूरी है। लेकिन 9 मीटर की दूरी पर टावर खड़ा कर दिया गया। जब लोगों को बिल्डर ने फ्लैट दिए थे तब यहां ओपन स्पेस दिखाया गया था। जीने के लिए लोगों को स्वच्छ हवा की जरूरत होती है। लेकिन इतनी कम दूरी पर टावर बनाए जाने से लोगों को धूप और हवा मिलनी ही अवरुद्ध हो गई। तब नागरिकों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर दो राय है। एक वर्ग का कहना है कि इन टावरों को लीगलाइज कर दिया जाना चाहिए था लेकिन दूसरा वर्ग फैसले को उचित ठहराता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक इसलिए है कि क्योंकि भ्रष्टाचार जिस चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका था, उसे ध्वस्त करना भी जरूरी था। फैसले जनभावनाओं से नहीं कानून के अनुसार लिए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के शासनकाल में नोएडा समेत कई शहरों में बिल्डर माफिया पनपा। पूर्ववर्ती सरकारों ने विकास के नाम पर कृषि भूमि का अधिग्रहण किया और फिर भूमि का लैंडयूज बदल कर बिल्डर माफिया के हवाले की। तभी से ही बिल्डर माफिया अपनी मनमानी करने लगा। सरकारें कृषि भूमि को सस्ते दामों पर लेकर बिल्डरों के हवाले करती रहीं। इसके पीछे भी हर फाइल के एक-एक पन्ने से भ्रष्टाचार की बदबू आने लगी थी। अरबों रुपए का खेल हो गया। कितना धन ​विदेश में गया। कितना फर्जीवाड़े में गया। इस नेटवर्क के तार ढूंढने आसान नहीं हैं। जब से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई है तब से बिल्डर माफिया का नौकरशाही से नेटवर्क काफी हद तक टूट चुका है। हजारों एकड़ सरकारी भूमि भूमाफिया के कब्जे से मुक्त कराई गई है। भूमाफिया और बाहुबलियों की लोगों को लूटकर बनाई गई संपत्तियों पर बुल्डोजर चल रहे हैं। 
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे कदमों की सराहना हो रही है। ट्विन टॉवर तो ध्वस्त हो गए लेकिन यहां रहने वालों के सपने भी धूल में मिल गए। यद्यपि उन्हें पैसे लौटा दिए गए हैं लेकिन अपने आशियाने को सुंदर और सुविधाजनक बनाने के लिए खर्च किया गया धन व्यर्थ ही गया। नए सिरे से जिंदगी की शुरूआत करना आज के दौर में आसान नहीं है। उनके सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। नोएडा का विकास इसलिए किया गया था कि आम आदमी को एक अदद छत नसीब हो सके। बेहतर यही होगा कि सरकार बिल्डर बायर्स को लेकर के सख्त कानून बनाए ताकि किसी का घर उजड़ने की नौबत न आए।

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